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कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी संभालने के बाद राहुल गांधी ने जिन राज्यों में सबसे पहले गठबंधन किया था, उनमें कर्नाटक एक था. मई 2019 में कांग्रेस ने जनता दल (सेक्युलर) के साथ हाथ मिलाया और पार्टी नेता एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद के लिए समर्थन दिया.
कर्नाटक में गठबंधन अब भी बना हुआ है, लेकिन बीजेपी की तुलना में कांग्रेस को नुकसान झेलना पड़ सकता है. दक्षिण भारत में कर्नाटक इकलौता राज्य है, जहां बीजेपी की संभावनाएं प्रबल दिख रही हैं.
पोल आइज के सर्वे के मुताबिक दक्षिण भारत के इस राज्य में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन 17 सीटों पर आगे है, जबकि बीजेपी को 11 सीटों पर बढ़त प्राप्त है.
अगर सर्वे सही साबित होता है, तो बीजेपी को 2014 लोकसभा चुनाव की तुलना में 6 सीटों का नुकसान है. पिछले आम चुनाव में बीजेपी को कर्नाटक की 28 में से 17 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. उधर कांग्रेस को 9 और जेडीएस को महज 2 सीटों से संतोष करना पड़ा था. विधानसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक बीजेपी को लोकसभा की 13 सीटों पर, जबकि कांग्रेस को 11 और जेडीएस को 4 सीटों पर बढ़त थी.
वोट शेयर के लिहाज से सर्वे का अनुमान है कि कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को 51 फीसदी वोट मिल सकते हैं, जबकि बीजेपी को 45 फीसदी.
गठबंधन के असर पर नजर दौड़ाएं तो लोकसभा और विधानसभा चुनावों के नतीजों की तुलना दिलचस्प है.
अगर कांग्रेस और जेडीएस 2014 लोकसभा चुनाव के अखाड़े में गठबंधन के रूप में उतरते, और वोटों का ट्रान्सफर पूरी तरह होता, तो उन्हें 13 सीटों पर जीत हासिल होती और बीजेपी को 15 सीटों पर.
अगर 2018 विधानसभा चुनाव में भी दोनों का साथ बना होता, और गठबंधन के वोट पूरी तरह ट्रान्सफर हो जाते, तो यूपीए को 21 लोकसभा सीटों पर बढ़त होती और बीजेपी को 7 पर.
लिहाजा पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में गठबंधन को काफी फायदा होता दिख रहा है. उस लिहाज से इस बार यूपीए के लिए 17 सीटों का अनुमान विधानसभा चुनाव के नतीजों के अनुसार 21 सीटों की तुलना में कम है.
इसके एक या दो मायने निकाले जा सकते हैं:
इस कारण कई सीटों पर अनुमान लगाना कठिन हो गया है. सर्वे के मुताबिक कर्नाटक की 28 सीटों में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को 8 सीटों पर भारी बढ़त मिलती दिख रही है. दूसरी ओर बीजेपी को 4 सीटों पर अच्छी-खासी बढ़त है. 3 सीटों पर यूपीए को और 4 सीटों पर बीजेपी को थोड़ी बढ़त मिली हुई है.
लेकिन बाकी 9 सीटों पर मुकाबला इतना नजदीकी है कि किसी तरह का पूर्वानुमान लगाना कठिन है. किसी भी पक्ष की ओर 2-3 फीसदी वोट अधिक पड़ते हैं तो फैसला बदल सकता है.
इसकी वजह स्पष्ट रूप से क्षेत्रीय है. कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को पुराने मैसूर इलाके में भारी बढ़त प्राप्त है, जहां बीजेपी की तुलना में दोनों मजबूत स्थिति में हैं. तुमकुर में गठबंधन मजबूत है, जहां से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा हसन, चामराजनगर, मांड्या, चिकबल्लपुर तथा बैंगलोर ग्रामीण में गठबंधन को बढ़त दिख रही है.
दूसरी ओर, उडुपी, तटीय कर्नाटक के चिकमगलूर, धारवाड़ तथा उत्तर में मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र में पड़ने वाले बगलकोट तथा दक्षिणी बेंगलुरु सीटों पर बीजेपी की स्थिति मजबूत है. मगर अंदरूनी बगावत दोनों पार्टियों के एक-एक मजबूत गढ़ को कमजोर बना रहे हैं. मांड्या में कांग्रेस नेता स्वर्गीय अम्बरीश की विधवा सुमनलता ने जेडीएस उम्मीदवार निखिल कुमारस्वामी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने की चेतावनी दी है, जो मुख्यमंत्री के बेटे भी हैं.
दूसरी ओर दक्षिणी बेंगलरु में तेजस्वी सूर्या को उम्मीदवार बनाए जाने से बीजेपी की राज्य इकाई में असंतोष है. यहां से वो दिवंगत केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार की पत्नी को उम्मीदवार बनाना चाहते थे. दक्षिणी बेंगलुरु में जो भी हो, लेकिन सर्वे के मुताबिक विधानसभा चुनाव की तुलना में बीजेपी की स्थिति बेंगलुरु – दक्षिणी बेंगलुरु, मध्य बेंगलुरु और उत्तरी बेंगलुरु में काफी मजबूत हुई है.
ये मजबूती मोदी फैक्टर के कारण हो सकती है (खासकर पुलवामा हमले के बाद). इसके अलावा विधानसभा चुनाव में तुलनात्मक दृष्टि से कम लोकप्रिय पार्टी नेताओं का चयन भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है.
सर्वे के मुताबिक 16 सीटों पर कांटे की टक्कर है, लिहाजा यूपीए को 17 और बीजेपी को 11 सीटों पर जीत का आंकड़ा बदलने की भी काफी संभावनाएं हैं.बीजेपी के पक्ष में और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के खिलाफ 3 फीसदी का भी स्विंग हो जाता है, तो समीकरण उलट सकते हैं. 2014 चुनाव के समान बीजेपी को 17 सीट और यूपीए को 11 सीट मिल सकती हैं.
दूसरी ओर, कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पक्ष में 3 फीसदी का स्विंग उसका आंकड़ा 20 तक पहुंचा सकता है और बीजेपी 8 सीट पर सिमट सकती है. तटीय कर्नाटक और मुंबई-कर्नाटक में बीजेपी का मजबूत आधार और पुराने मैसूर क्षेत्र में जेडीएस की मजबूती और राज्य के दूसरे हिस्सों में उसकी कमजोरी इतना तो जरूर साफ करते हैं कि राज्य में कोई भी पक्ष पूरी तरह नेस्तनाबूद नहीं होगा.
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