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Madhya Pradesh Election Results 2023: 2024 की चुनावी मूवी का ट्रेलर आ गया है और बीजेपी की परफॉरमेंस धाकड़ दिखी. बीजेपी ने चार राज्यों में से मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में एकतरफा बाजी मारी है, जबकि कांग्रेस के हाथ सिर्फ तेलंगाना की कुर्सी लगी है. जिस मध्यप्रदेश में कांटे की टक्कर बताई जा रही थी, उसे बीजेपी ने पूरी तरफ से भगवा रंग में रंग डाला है.
कमलनाथ के 'नाथ' बनने के सपनों को झटका लगा है और शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर साबित किया है कि एमपी में उनके कद का कोई नेता नहीं है.
इन सवालों का जवाब खोजने से पहले चलिए आपको एमपी के नतीजे बताते हैं.
230 विधानसभा सीटों वाले मध्यप्रदेश में बीजेपी ने 163 सीटों पर जीत हासिल की है. दूसरी तरफ कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस को केवल 66 सीटों से संतोष करना पड़ा है. अगर वोटिंग परसेंट की बात करे तो बीजेपी को कुल वोटों का 48.56% वोट मिला है जबकि कांग्रेस 40.42% वोट हासिल करने में सफल रही है. अगर 2018 के एमपी चुनावों की बात करें तो बीजेपी और कांग्रेस, दोनों को 41% वोट परसेंट मिले थे.
अब एक-एक कर उन पॉइंट्स पर बात करते हैं जिसका जिक्र हमने ऊपर किया था.
एमपी में बीजेपी ने शिवराज सिंह के नाम पर चुनाव नहीं लड़ा बल्कि उन्हें साइडलाइन किए बिना चुनावी कैंपेन का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. पार्टी इस बात पर स्पष्ट जवाब देने से बचती रही कि जीत मिलने पर क्या शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री होंगे. ऐसे में जब पार्टी फिर से सरकार बनाने की स्थिति में है तो यह सवाल बड़ा हो जाता है कि इसे शिवराज की जीत कहे या पीएम मोदी की?
द क्विंट के पॉलिटिकल एडिटर आदित्य मेनन के अनुसार यह जीत शिवराज की मानी जाएगी. चुनाव से पहले एंटीइंकम्बेंसी का फैक्टर हावी माना जा रहा था और कांग्रेस फ्रंटफुट पर नजर आ रही थी. लेकिन शिवराज ने नैरेटिव बदलने में समय जाया नहीं किया. उनकी 'लाडली बहना योजना' पार्टी के लिए संजीवनी साबित हुई. पार्टी की ओर से चेहरा नहीं बनाए जाने का शिवराज ने कोई खुला विरोध नहीं किया बल्कि उन्होंने अपने इमोशनल अपील से 'मामा' इमेज बरकरार रखी.
कमलनाथ ने इस बार बीजेपी के 'हिंदुत्व' का मुकाबला करने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति पर जोर दिया. कभी कमलनाथ प्रियंका गांधी के साथ नर्मदा आरती में शामिल होते नजर आते तो कभी बाबाओं का आशीर्वाद लेते. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए चांदी की ईंटें दान कीं तो कभी खुद को कट्टर हनुमान भक्त के रूप में पेश भी किया. यहां तक कि कांग्रेस ने चुनाव से पहले बजरंग सेना का हाथ भी थामा.
इन रणनीतियों की मदद से कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने वोटरों को यह दिखाने की कोशिश की कि हिंदू से जुड़े मुद्दों पर बीजेपी का कॉपीराइट नहीं है. लेकिन अब जब नतीजे सामने आए हैं तो ऐसा लग रहा है जैसे जनता ने कांग्रेस के 'सॉफ्ट हिंदुत्व' को नकार दिया है.
क्या कांग्रेस कॉन्फिडेंस की सीमा लांघकर ओवरकॉन्फिडेंस के पाले में चली गयी थी? कई राजनीतिक विश्लेषकों का तो यही मानना है. नतीजे आने के पहले बधाई वाला पोस्टर लग गया था. चुनाव से पहले पार्टी ने जितने भी सर्वे कराए थे उसमें वह आसानी से जीत हासिल करती दिख रही थी. जब नतीजे आये तो एकदम उलट. अब पार्टी की इस करारी हार की जिम्मेदारी भी कमलनाथ के कंधे पर आएगी. उनपर यह सवाल उठेगा कि क्या वो ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद के बिना कांग्रेस की नैया पार कराने में सक्षम नहीं है?
ऐसे में मध्यप्रदेश में पार्टी के अगुआ के रूप में कमलनाथ की क्षवि प्रभावित होगी.
एमपी चुनाव के बीच INDIA गठबंधन के सहयोगियों के बीच रार की खबरें भी सरगर्म थी. अखिलेश यादव खुलकर कांग्रेस पर निशाना साध रहे थे. दरअसल समाजवादी पार्टी एमपी में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन कमलनाथ के साथ सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन सकी.
लगे हाथ BSP की भी बात कर लेते हैं. मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी ने 181 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे. 2018 में 2 सीट जीतने वाली इस पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली है और वोट परसेंट भी 5.01% से गिरकर 3.3% पर गया है.
एमपी के चुनावी नतीजे ठीक गुजरात की तरह ही हैं. जब राजनीतिक विश्लेषक एंटीइंकम्बेंसी फैक्टर की बात कर रहे थे तब बीजेपी ने ऐसा रिजल्ट दिया जो ऐतिहासिक है. एमपी में बीजेपी ने 2003 में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया था जब उसने 173 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. बीजेपी इस बार भी 163 सीटें जीतकर अपने उसी प्रदर्शन को दोहराते दिख रही है.
अब सबकी नजर बीजेपी मुख्यालय पर होगी जहां अगले मुख्यमंत्री के नाम पर मंथन होगा. यकीनन शिवराज ने अपने प्रदर्शन से पार्टी आलाकमान को खुद के नाम पर विचार करने के लिए विवश कर दिया है. इस सेमीफाइनल के बाद बीजेपी अगर 2024 के फाइनल में भी मध्यप्रदेश फतह करना चाहती है तो वह शिवराज को साइडलाइन नहीं कर सकती है. अब शिवराज के पास खुद को पावरप्लेयर साबित करने के लिए एमपी चुनाव के ऐतिहासिक जीत की एक और चमचमाती ट्रॉफी है.
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