Madhya Pradesh Election Results 2023: अब इसे मध्यप्रदेश बोले या मामा प्रदेश? एंटीइंकम्बेंसी जैसे तमाम राजनीतिक टर्म्स को धता बताते हुए एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश बीजेपी की झोली में डाल दी है. 230 विधानसभा सीटों वाली मध्य प्रदेश में अबतक के रुझानों में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलता दिख रहा है और भगवा पार्टी एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है.
यह चुनावी नतीजे खास हैं. एग्जिट पोल से लेकर 17 नवंबर को सूबे में वोटिंग से पहले तक राजनीतिक एक्सपर्ट्स यही भविष्यवाणी कर रहे थे कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर होने वाली है- लेकिन ये तमाम अनुमान विफल साबित हुए हैं. बीजेपी ने सूबे में एक तरह से कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया है.
आइए आपको आसान भाषा में वो 6 फैक्टर्स समझाते हैं जो बीजेपी की प्रयोगशाला कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में पार्टी के प्रचंड जीत में मददगार साबित हुए हैं.
1. शिवराज से मोहभंग नहीं- अब भी 'मामा' इमेज कारगर
2018 के चुनावों के बाद कांग्रेस के 15 महीने के शासन को छोड़ दें, तो 2003 से लगातार बीजेपी एमपी की सत्ता पर काबिज है और सीएम की कुर्सी पर शिवराज सिंह चौहान कायम हैं. ऐसे में राजनीतिक समझ का अंकगणित कहता है कि जनता का सीएम शिवराज से 'मोहभंग' हो जाना चाहिए था. यानी इस चुनाव में एंटीइंकम्बेंसी बड़ा फैक्टर होना चाहिए था. लेकिन नतीजे साफ-साफ बयान कर रहे हैं कि ऐसा नहीं है.
ऐसा लगता है कि जनता के बीच (खासकर सूबे की 2.7 करोड़ महिला मतदाताओं के बीच) सीएम शिवराज की 'मामा' इमेज अभी भी बरकरार है. सीएम शिवराज ने जनवरी 2023 में 'लाडली बहना योजना' लाकर आखिर में चुनावी नैरेटिव को बदल दिया. अभी एमपी में 1.3 करोड़ महिलाओं को इस योजना के तहत हर महीने 1250 रुपए की आर्थिक सहायता मिल रही है. सीएम शिवराज ने इसे बढ़ाकर 3000 तक करने का चुनावी वादा भी किया है. ऐसा लग रहा है कि यह रणनीति जमीन पर काम कर गयी.
2. पीएम मोदी स्टार कैंपेनर साबित हुए
बीजेपी ने इस बार एमपी में शिवराज सिंह चौहान के नाम पर चुनाव नहीं लड़ा. बीजेपी के चुनावी कैंपेन का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया और पार्टी इस बात पर स्पष्ट जवाब देने से बचती रही कि मध्य प्रदेश में जीत हासिल करने पर क्या शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री होंगे.
बीजेपी ने यह सूझबूझ भी दिखाई कि उसने शिवराज को साइडलाइन किये बिना पीएम मोदी को आगे रखा. पीएम मोदी भी अपने चुनावी रैलियों में लगातार यही बोलते रहे कि "यह मोदी की गारंटी है". चुनाव आदर्श आचार संहिता लागू होने से लगभग 15 दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूबे में लगभग 15 रैलियां कीं.
इतना ही नहीं बीजेपी ने अपने तमाम हेवीवेट को एमपी के सियासी अखाड़े में झोंक दिया था. पार्टी किसी भी सूरत में यहां बैकफुट पर न जाना चाहती थी और न दिखना चाहती थी. बुंदेलखंड में अलग-अलग दिनों में मुख्यमंत्री चौहान के साथ असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी भी थे.
3. दलितों-आदिवासियों और महिलाओं पर हमलों को चुनावी मुद्दा बनने नहीं दिया
अब इसे बीजेपी की कूटनीतिक समझबूझ कहें या फिर कांग्रेस की रणनीतिक चूक. सूबे में जब चुनावी माहौल सरगर्म हो रहा था तभी पेशाब कांड और उज्जैन में 12 साल की नाबालिग से हैवानियत की खबरें सुर्खियां बटोर रही थीं. कांग्रेस इसे दलितों-आदिवासियों और महिलाओं के साथ क्रूरता पर प्रशासनिक उदासीनता के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश भी कर रही थी. लेकिन जब चुनाव पास आया तो यह मुद्दे शांत पड़ते दिखें. शिवराज हो-हंगामे के बीच भी इन मुद्दों से मुकाबला करते रहे- उन्होंने अपनी इमेज क्लीन रखी. कभी वो पेशाब कांड के पीड़ित के पांव पखारते नजर आए तो कभी उज्जैन रेप के आरोपी के घर बुलडोजर एक्शन का ऑर्डर देते दिखें.
4. घोषणापत्र में कल्याणकारी योजना या फिर फ्रीबीज
दिल्ली-पंजाब में AAP की जिस फतह को बीजेपी 'फ्रीबीज' बांटने की जीत बताती है, वो अपने चुनावी घोषणापत्र में ठीक वही रणनीति अपनाते भी दिखी.
बीजेपी ने लगभग 30 लाख जूनियर स्तर के कर्मचारियों के लिए वेतन और भत्ते में वृद्धि और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का वेतन 10,000 रुपये से बढ़ाकर 13,000 रुपये करने का वादा किया है. रोजगार सहायकों का मानदेय दोगुना (9,000 रुपये से 18,000 रुपये) करने और जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, जिला अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और उपसरपंच और पंच जैसे नेताओं का मानदेय तीन गुना करने का भी वादा किया.
इसके साथ ही उन्होंने मेधावी छात्रों को 135 करोड़ रुपये की लागत से ई-स्कूटर के साथ-साथ 196 करोड़ रुपये की लागत से 78,000 छात्रों को लैपटॉप देने की भी गारंटी दी है.
5. पार्टी के खिलाफ आवाज उठाने से बचना फायदेमंद साबित हुआ
बीजेपी ने शिवराज को अपना सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया और इसके अलावा 3 केंद्रीय मंत्रियों और 7 सांसदों को मैदान में उतारकर यह सुगबुगाहट भी तेज कर दी कि आलाकमान इस बार फेरबदल की फिराक में है. लेकिन शिवराज ने बगावती रुख नहीं अपनाया.
शिवराज ने ठीक वही किया जो उनके जैसा मंझा राजनेता करता- उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष नहीं किया बल्कि पार्टी के ईमानदार कार्यकर्त्ता की तरह उन्होंने अपना सबकुछ झोंक दिया. शिवराज ने सूबे में 166 रैलियों को संबोधित किया और पार्टी की जीत के लिए उर्वर जमीन तैयार की.
6. चुनावी अभियान में हिंदू मंदिरों की चर्चा
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार देशदीप सक्सेना ने बीजेपी की जीत के फैक्टर की चर्चा करते हुए क्विंट हिंदी के लिए लिखा कि एमपी के चुनावी बयार में शिवराज सरकार मंदिरों की चर्चा करती रही. राज्य सरकार ने चार मंदिरों- सलकनपुर में देवीलोक, ओरछा में रामलोक, सागर में रविदास स्मारक और चित्रकूट में दिव्य वनवासी लोक के विस्तार और स्थापना के लिए 358 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.
सागर में जिस रविदास मंदिर का भूमिपूजन इस साल अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी ने किया था, उसका निर्माण 100 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा है.
14 साल पहले छिंदवाड़ा में कांग्रेस के दिग्गज नेता कमल नाथ द्वारा बनाई गई 101 फुट ऊंची हनुमान प्रतिमा का मुकाबला करने के लिए, इस साल अगस्त में शिवराज ने छिंदवाड़ा में एक पुराने हनुमान मंदिर के 350 करोड़ रुपये के नवीकरण परियोजना की घोषणा की.
7. मैदान में 3 केंद्रीय मंत्री समेत 7 एमपी
इसके अलावा 3 केंद्रीय मंत्री समेत 7 एमपी और एक राष्ट्रीय महासचिव के चुनावी मैदान में होने का भी फायदा पार्टी को मिलता दिख रहा है. अब सबकी नजर 'अगला मुख्यमंत्री कौन' के अहम सवाल पर होगी- और इसके जवाब में लिए पार्टी आलाकमान की राह तक रहे होंगे. अभी के लिए शिवराज ने साबित कर दिया है कि अभी भी मध्यप्रदेश में उनके कद का कोई दूसरा नेता नहीं है- चाहे वो बीजेपी हो या फिर कांग्रेस.
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