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मैनपुरी सीटः डिंपल फिर जीतेंगी रण या SP का किला भेद पाएगी BSP और BJP? जानिए समीकरण

Mainpuri Lok Sabha Seat: 2014 और 2019 में मोदी लहर के बावजूद ये सीट बीजेपी के खाते में नहीं आ पाई थी.

प्रियम वर्मा
चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>मैनपुरी सीटः क्या SP का किला भेद पाएगी BSP या परिणाम बदल पाएगी BJP, जानिए समीकरण </p></div>
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मैनपुरी सीटः क्या SP का किला भेद पाएगी BSP या परिणाम बदल पाएगी BJP, जानिए समीकरण

फोटो- क्विंट हिंदी

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ड‍िंपल यादव (Dimple Yadav) ने मंगलवार, 16 अप्रैल को मैनपुरी लोकसभा सीट (Mainpuri Lok Sabha Seat) से नामांकन दाखि‍ल कर दिया. समाजवादी पार्टी का गढ़ कही जाने वाली इस सीट पर अबकी बार लड़ाई रोचक हो गई है. समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव हैं तो मायावती ने शिव प्रसाद यादव पर दांव लगाकर चुनौती बढ़ा दी है.

वहीं बीजेपी ने प्रदेश सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह को प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में देखना रोचक ये है कि' 400 पार' के दावे के साथ उतर रही बीजेपी ने जयवीर सिंह को प्रत्याशी क्यों चुना है और मायावती की यादव वोट काटने की कोशिश कितनी कारगर साबित हो सकती है. 

28 सालों से एसपी का राज

मैनपुरी लोकसभा में पांच विधानसभा सीटें आती हैं. मैनपुरी, भोगांव, किश्नी (सुरक्षित), करहल और जसवंत नगर. इनमें से तीन सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है. मैनपुरी और भोगांव बीजेपी के खाते में हैं. इनमें से करहल सीट से अखिलेश यादव खुद विधायक हैं और जसवंत नगर सीट से उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव विधायक हैं.

इस लोकसभा सीट से मुलायम सिंह यादव पहली बार 1996 में एसपी के टिकट पर जीते थे. इसके बाद से मैनपुरी सीट पर समाजवादी पार्टी ही जीतती आई है. 2014 और 2019 में मोदी लहर के बावजूद ये सीट बीजेपी के खाते में नहीं आ पाई थी. मुलायम सिंह के निधन के बाद 2022 में उपचुनाव हुए, जिसमें एसपी से डिंपल यादव और बीजेपा से रघुराज सिंह शाक्य चुनाव मैदान में थे.

डिंपल यादव को कुल 6,18,120 (64.08 फीसदी) वोट मिले जो मुलायम सिंह यादव को मिले वोट से 10 फीसदी अधिक थे. वहीं, रघुराज सिंह शाक्य को 3,29,659 (34.18 फीसदी) वोट मिले जो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को मिले वोट से लगभग 10 फीसदी कम थे. इस तरह से डिंपल यादव को लगभग तीन लाख मतों से जीत हासिल हुई थी.

क्या बीएसपी का दांव फंसा सकता है पेंच?

मैनपुरी लोकसभा सीट से बीएसपी ने अपना टिकट बदलकर भरथना से विधायक रहे शिवप्रसाद यादव को प्रत्याशी बना दिया है. इससे पहले पार्टी ने डॉ. गुलशन को अपना उम्मीदवार बनाया था. यादव समाज से ताल्लुक रखने वाले शिवप्रसाद यादव बीजेपी में भी रह चुके हैं. उन्होंने 2023 में बीजेपी छोड़कर अपनी पार्टी बना ली थी.

बता दें, डिंपल यादव कमरिया यादव समाज से आती हैं तो शिवप्रसाद यादव घोसी समाज से हैं. मैनपुरी लोकसभा में 30-35 फीसदी घोसी समाज के यादव हैं. ऐसे में अब मुकाबला रोचक हो सकता है. जसवंत नगर और करहल को मुलायम की जमीन माना जाता है. इस गढ़ में घोसी और कमरियाबाद को फैलाकर बीएसपी सेंध लगाना चाहती है. 

कितना लुभा पाएगा क्षत्रिय चेहरा?

बीजेपी ने इस बार मैनपुरी से क्षत्रिय चेहरे पर दांव लगाया है. जयवीर सिंह का मैनपुरी से पुराना नाता रहा है. वह घिरोर विधानसभा क्षेत्र से 2002 और 2007 में बीएसपी के टिकट पर विधायक रह चुके हैं. वहीं 2022 में बीजेपी ने उन्हें मैनपुरी विधानसभा सीट पर एसपी के दो बार के विधायक राजकुमार यादव के सामने मैदान में उतारा था.

बता दें, पर्यटन मंत्री रहते हुए जयवीर सिंह ने जिले में धर्मस्थलों पर काफी काम करवाया. साथ ही जिले में अंतरराष्ट्रीय स्तर का ऑडीटोरियम और संग्रहालय के निर्माण की योजना मंजूर कराई. बीजेपी इन कामों के लाभ की उम्मीद लोकसभा चुनाव में कर रही है.

मैनपुरी की पहली महिला सांसद बनीं डिंपल यादव

लोकसभा सीट पर जीत का रिकॉर्ड बनाने वाली डिंपल ने मैनपुरी की पहली महिला सांसद बनकर इतिहास रचा है. जी हां, उनसे पहले कभी कोई महिला प्रत्याशी जीत के करीब तक नहीं पहुंच सकी थी. बता दें, मैनपुरी लोकसभा सीट पर साल 1999 के चुनाव तक कोई महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ी थी. पहली बार 2004 में कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी के रूप में सुमन चौहान को लड़ाया लेकिन वो जमानत भी नहीं बचा सकीं थी.  

इसके बाद 2009 में बीजेपी ने मशहूर भजन गायिका तृप्ति शाक्य को प्रत्याशी बनाया था लेकिन वो भी संतोषजनक प्रदर्शन नहीं कर पाई थीं. यही हाल 2014 में भी रहा जब बीएसपी के टिकट पर लड़ी डॉ. संघमित्रा मौर्य भी कुछ कमाल नहीं कर सकीं. उस चुनाव में निर्दलीय मैदान में उतरी राजेश्वरी को भी बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था.

इस उपचुनाव में एसपी से डिंपल यादव और निर्दलीय प्रत्याशी सुषमा देवी, दो महिला प्रत्याशी मैदान में थीं. इसी समय डिंपल यादव बीजेपी प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य को पराजित कर पहली महिला सांसद बनीं.
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सीट पर एक नजर

जीत का सफर

देश में 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए. उस समय मैनपुरी लोकसभा सीट का नाम मैनपुरी जिला पूर्व था. पहले चुनाव में मैनपुरी पूर्व से कांग्रेस के बादशाह गुप्ता जीते थे.बाद में इस सीट का नाम बदलकर मैनपुरी कर दिया गया.

  • 1957- प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बंशी दास धनगर जीते. 

  • 1962- कांग्रेस के बादशाह गुप्ता ने वापसी की और जीत कर दूसरी बार सांसद बने. 

  • 1967 और 1971- कांग्रेस के टिकट पर महाराज सिंह सांसद चुने गए. 

  • 1977- भारतीय लोकदल के रघुनाथ सिंह वर्मा ने कांग्रेस के महाराज सिंह को हराया. बीएलडी का जनता पार्टी में विलय हो गया. 

  • 1980- रघुनाथ सिंह वर्मा जनता पार्टी (सेक्यूलर) के टिकट पर जीते. 

  • 1984- कांग्रेस ने बलराम सिंह यादव को टिकट दिया. वो सांसद चुने गए. 

  • 1989- समाजवादी नेता और कवि उदय प्रताप सिंह जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते 

  • 1991- उदय प्रताप सिंह जनता पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए. 

  • मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई. साल 1996 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से चुनाव लड़े और जीते. 

  • 1998 और 1999- एसपी के बलराम सिंह यादव सांसद चुने गए. 

  • 2004- मुलायम सिंह यादव जीते लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसी साल कराए गए उप-चुनाव में उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव मैनपुरी से सांसद चुने गए. 

  • 2009 और 2014- मुलायम सिंह यादव सांसद बने. 

  • 2014- मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ और मैनपुरी दोनों जगहों से जीते थे. बाद में उन्होंने मैनपुरी लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. 

  • 2014- उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव के परिवार के तेज प्रताप यादव एसपी के टिकट पर सांसद चुने गए.  

जातीय समीकरण

इस सीट पर पिछड़े वोटरों की बहुलता है. यहां सबसे ज्यादा यादव मतदाता हैं जिनकी संख्या करीब 3.5 लाख है. मैनपुरी लोकसभा सीट में शाक्य और ठाकुर समाज की भी अच्छी संख्या है. यहां करीब 1 लाख 50 हजार ठाकुर मतदाता हैं.

वहीं ब्राह्मण 1 लाख 20 हजार, शाक्य एक लाख 60 हजार, जाटव एक लाख 40 हजार और एक लाख लोधी राजपूत मतदाता होने का अनुमान है. इसके अलावा वैश्य और मुस्लिम मतदाता भी एक लाख के करीब हैं, जबकि कुर्मी मतदाताओं की संख्या भी एक लाख से ज्यादा बताई जाती है. 

जातीय समीकरण से लेकर मतदाताओं का आंकलन भले ही 1996 से चले आ रहे परिणामों की पैरवी कर रहा हो लेकिन इस बार दोनों विपक्षी पार्टियों ने प्रत्याशी बदलकर एक उम्मीद भरी चुनौती तो एसपी के सामने पेश कर ही दी है. दोनों उम्मीदवारों के इतिहास और विकास को देखते हुए अब देखना ये है कि एसपी अपना जीत का किला बचा पाएगी या इस बार बीजेपी और बीएसपी की कोशिश रंग लाएगी. 

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