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चंडीगढ़ नगर निगम चुनावों (Chandigarh Municipal Corporation elections) में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने शानदार प्रदर्शन करते हुए शहर के 35 वार्डों में से 14 पर जीत हासिल की है, जो बहुमत से थोड़ा कम है. बीजेपी ने 12 वार्ड, जबकि कांग्रेस ने 8 और शिरोमणि अकाली दल ने 1 वार्ड अपने नाम किया.
पिछली बार 2016 में बीजेपी ने 26 में से 20 वार्डों में जीत हासिल की थी. लेकिन तब से लेकर मौजूदा नतीजों तक, यह संख्या काफी गिर गई है - कुल सीटों के लगभग 80 प्रतिशत से सिमट कर लगभग एक तिहाई तक.
इस आर्टिकल में इन दो पहलुओं पर ध्यान देंगे-
चंडीगढ़ में AAP की सफलता का दायरा क्या है?
पंजाब में आगामी विधानसभा चुनावों के संदर्भ में इन नतीजों का क्या अर्थ है?
AAP का प्रदर्शन अपने आप में महत्वपूर्ण है क्योंकि ये चंडीगढ़ में उसका पहला चुनाव था. वार्डवार नतीजों पर नजर डालें तो AAP उम्मीदवार बीजेपी के कई टॉप-रैंक वाले उम्मीदवारों को पटखनी देने में कामयाब रहे.
उदाहरण के लिए, बीजेपी के मौजूदा मेयर रविकांत शर्मा को AAP के दमनप्रीत सिंह ने हराया है. पूर्व मेयर दवेश मौदगिल AAP के जसबीर सिंह से हार गए.
बीजेपी सांसद किरण खेर की तरफ से 1984 के दंगों का हवाला देकर वोट मांगने की अपील का भी कोई नतीजा नहीं निकला.
AAP के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चंडीगढ़ निगम चुनाव में AAP के प्रदर्शन को "पंजाब में आने वाले बदलाव का संकेत" कहा है.
लेकिन क्या चंडीगढ़ की जीत में पंजाब विधानसभा चुनाव का भविष्य खोजा जा सकता है? इस संबंध में पिछले नतीजे बहुत निर्णायक नहीं हैं.
2016 में बीजेपी ने चंडीगढ़ में जीत हासिल की थी, लेकिन कुछ महीने बाद पंजाब में उसे हार का सामना करना पड़ा. यहां तक कि पंजाब के शहरी इलाकों के नतीजे भी चंडीगढ़ के नतीजों से बिल्कुल उलट रहे.
जबकि अकाली दल ने डेरा बस्सी और AAP ने खरड़ सीट अपने नाम की थी. यानी चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव, 2016 के नतीजों का पड़ोसी सीटों पर बहुत अधिक असर नहीं दिखा था.
लेकिन 2011 में चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में कांग्रेस बीजेपी से काफी आगे थी. कांग्रेस कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में हार गई, लेकिन उसने पंजाब के शहरी इलाकों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया और शहरों में नतीजे मोटे तौर पर चंडीगढ़ की तरह ही थे.
कांग्रेस ने चंडीगढ़ से सटी सीटों पर भी अच्छा प्रदर्शन किया, खरड़, साहिबजादा अजीत सिंह नगर और राजपुरा में जीत हासिल की जबकि डेरा बस्सी पर उसे अकाली दल से हार का सामना करना पड़ा.
2011 की जनगणना के अनुसार चंडीगढ़ की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 80% और सिखों की आबादी 13% है. पंजाब में लुधियाना, जालंधर और बठिंडा में हिंदू बहुसंख्यक हैं, जहां इस समुदाय की आबादी क्रमश: 66% , 75% और 62% है. अमृतसर में सिख और हिंदू दोनों 48-49 प्रतिशत के आसपास हैं.
हालांकि, बड़ा अंतर भाषाई आधार पर है. 2011 की जनगणना के अनुसार चंडीगढ़ में 66% लोगों ने हिंदी को अपनी भाषा और 21% ने पंजाबी को अपनी भाषा के रूप से दर्ज किया. पंजाब में 90% ने अपनी भाषा को पंजाबी के रूप में सूचीबद्ध किया है, जबकि 8% लोगों ने हिंदी कहा बताया.
लेकिन चंडीगढ़ नगर निगम के नतीजे अभी भी महत्वपूर्ण है क्योंकि AAP ने हिंदू बहुल शहर में जीत दर्ज की है. पंजाब में AAP को शहरी हिंदू मतदाताओं में अपेक्षाकृत कमजोर माना जाता है. चंडीगढ़ का रिजल्ट बताता है कि आबादी का यह हिस्सा अब AAP को एक संभावित विकल्प मानता है. इसका पंजाब के शहरों में कुछ हद तक असर हो सकता है.
चंडीगढ़ के नतीजे से दूसरी बड़ी बात बीजेपी के वोट शेयर में गिरावट है. यदि यह गिरावट चंडीगढ़ में हिंदी भाषी शहरी मतदाताओं में हो रही है, तो पंजाब में पंजाबी भाषी शहरी मतदाताओं में तो यह गिरावट और अधिक हो सकती है.
बीजेपी के गिरते आधार पर कब्जा करने में कौन सी पार्टी सक्षम है, उसे कम से कम पंजाब के शहरी इलाकों में फायदा हो सकता है.
इस बीच AAP के पास चंडीगढ़ में अपने प्रदर्शन का जश्न मनाने के लिए कई कारण हैं और यह निसंदेह रूप से पंजाब में चुनावी लड़ाई से पहले उसका मनोबल बढ़ाएगा.
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