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Punjab Election: क्या चरणजीत चन्नी का भदौर से चुनाव लड़ना जोखिम भरा फैसला है?

अगर भदौर सुरक्षित सीट नहीं तो फिर CM Charanjit Channi अपने गढ़ चमकौर साहिब के साथ-साथ यहां से खड़े क्यों हो रहे हैं?

आदित्य मेनन
पंजाब चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>चरणजीत सिंह चन्नी</p></div>
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चरणजीत सिंह चन्नी

क्विंट हिंदी 

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कांग्रेस ने नामांकन दाखिल करने की डेडलाइन से ठीक पहले पंजाब चुनाव (Punjab Election) के लिए उम्मीदवारों की एक और लिस्ट जारी की. जारी लिस्ट के अनुसार पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी रूपनगर जिले की अपनी वर्तमान विधानसभा सीट चमकौर साहिब के साथ-साथ बरनाला जिले के भदौर से भी चुनाव लड़ेंगे.

चूंकि चन्नी दो सीटों से आगामी पंजाब चुनाव लड़ने वाले एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार होंगे, इसलिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किए जाने से पहले इस फैसले को औपचारिक रूप से पार्टी के एक और कदम के रूप में देखा जा सकता है.

अब सवाल है कि क्या भदौर सुरक्षित सीट है?

नहीं, दूर-दूर से भी नहीं. 2017 में कांग्रेस सिर्फ 21% वोट के साथ यहां तीसरे पायदान पर रही थी जबकि AAP को 45% वोट मिले थे. ऐसे में कांग्रेस को भदौर सीट पर जीत के लिए बड़े उलट-फेर की जरूरत है.

इतनी ही नहीं यह उन 7 सीटों में से एक है, जहां 2019 के लोकसभा चुनावों में भी AAP आगे चल रही थी, जिसमें कांग्रेस ने देश के दूसरे राज्यों की अपेक्षा पंजाब में अच्छा प्रदर्शन किया था.

यानी कुल जमा यह है कि AAP अपने सबसे खराब प्रदर्शन के समय भी भदौर में सबसे आगे रही और कांग्रेस यहां से हार गई, जो राज्य के बाकी हिस्सों में आगे थी.

यही कारण है कि सुखबीर बादल, भगवंत मान, नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह, जो सभी अपने प्रभाव के मूल क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, से उलट सीएम चन्नी ने जोखिम उठाया है.

ऐसे में दो सवाल उठते हैं:

  1. चन्नी दूसरी सीट से चुनाव क्यों लड़ रहे हैं?

  2. भदौर से ही क्यों, किसी और सीट से क्यों नहीं?

यह याद रखें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर लड़ने वाले कांग्रेस के एकमात्र उम्मीदवार, उसके मुख्यमंत्री चेहरा कैप्टन अमरिंदर सिंह थे. कैप्टन ने पटियाला के अपने गढ़ बोरो के अलावा उस समय के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की सीट लांबी से चुनाव लड़ा था.

सीएम चन्नी के दूसरी सीट से चुनाव लड़ने के पार्टी के फैसले के पीछे के कुछ कारण कैप्टन के समान हैं, लेकिन कुछ अलग भी हैं- और इन्हीं में हमारे दो सवालों के जवाब छुपे हैं.

1. विपक्ष को उसके गढ़ में ललकारना

बावजूद इसके कि कैप्टन अमरिंदर 2017 में लांबी से चुनाव हार गए, सीनियर बादल के खिलाफ चुनाव लड़कर उन्होंने यह संकेत दे दिया कि कांग्रेस अभी भी तेजी से अलोकप्रिय होते बादल परिवार के खिलाफ मुख्य विपक्ष है. याद रहे उस समय AAP मुख्य विपक्ष के ओहदे के लिए कांग्रेस के साथ कम्पटीशन कर रही थी.

इसी रणनीति से AAP के जरनैल सिंह ने लांबी और भगवंत मान ने सुखबीर बादल की सीट जलालाबाद से 2017 में चुनाव लड़ा था.

लेकिन चन्नी की स्थिति थोड़ी अलग है. 2017 में कैप्टन पंजाब के सीएम के खिलाफ मैदान में थे जबकि चन्नी आगामी चुनाव के वक्त खुद मुख्यमंत्री हैं.

चन्नी इस चुनावी लड़ाई को अपने विरोधियों के गढ़ में ले जा रहे हैं- जो इस मामले में आम आदमी पार्टी है. पिछले चुनाव में AAP ने भदौर से जीत हासिल की थी. यह सीट AAP के सीएम उम्मीदवार भगवंत मान के लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है.

यह उन 7 विधानसभा क्षेत्रों में से है, जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में AAP आगे चल रही थी. बाकि बचे 6 भी भदौर के आसपास के क्षेत्र में हैं.

अप्रत्यक्ष रूप से सीएम चन्नी के दो अन्य विरोधियों- कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिद्धू- का भी भदौर से कनेक्शन है. 1857 के विद्रोह के बाद, भदौर की स्वतंत्र रियासत पटियाला के शाही परिवार के नियंत्रण में आ गयी. इस शाही परिवार, जिसके वर्तमान मुखिया कैप्टन अमरिंदर हैं, की जड़ें मेहराज में हैं, जो भदौर से 30 किलोमीटर से भी कम दूरी पर है. यह शाही परिवार सिद्धू वंश से है, जिसके नवजोत सिद्धू भी एक हिस्सा हैं.

बेशक इस तरह बहुत ही अप्रत्यक्ष अर्थ में इन दोनों नेताओं का संबंध भदौर से जुड़ता है. शायद इसका चन्नी के यहां से चुनाव लड़ने के फैसले पर कोई असर नहीं है. ऐसा लगता है कि चन्नी का भदौर आने का उद्देश्य AAP और नीचे चर्चा किए गए दूसरे कारकों पर अधिक है.

2. खुद के लिए एक अखिल-दलित पहचान बनाना

पंजाब के दलितों को दो बड़े समूहों में बांटा जा सकता है: चमार, रविदासी, रामदासिया और अद धर्मी एक समूह बनाते हैं और दूसरी तरफ मजहबी सिख और बाल्मीकि दूसरा समूह. प्रोफेसर सुरिंदर एस जोधका के अनुसार, दो समूह पंजाब की दलित आबादी में क्रमश: 41.59% और 41.9% हैं.

दूसरे समूह की तुलना में पहले समूह की शिक्षा, वित्तीय संसाधनों और सरकार में प्रतिनिधित्व तक बेहतर पहुंच रही है. राजनीतिक रूप से, दोनों वर्गों में वोट देने की प्रवृत्ति अलग-अलग है. पहला समूह जहां कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी का अधिक समर्थक रहा है वहीं दूसरी ओर मजहबी पहले वर्ग की तुलना में अकाली दल के प्रति अधिक झुके रहे हैं.
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चन्नी रामदसिया हैं, इसलिए पहली समूह से हैं. उनकी सीट चमकौर साहिब में दलितों के पहले समूह की आबादी अधिक है और दूसरे समूह की कम संख्या है.

लेकिन भदौर में रविदासी, रामदसिया और चमारों की तुलना में मजहबी सिख थोड़े अधिक हैं. इसलिए यहां से चुनाव लड़ना चन्नी का अखिल दलित वर्गों का समर्थन हासिल करने का तरीका है.

दूसरा फैक्टर क्षेत्र है. मालवा में मजहबी सिख और हिंदू बाल्मीकि दलितों के बीच बहुसंख्यक हैं जबकि दोआबा क्षेत्र में रविदासी, रामदासिया और चमार. अगर सीएम चन्नी दोआबा क्षेत्र की किसी आरक्षित सीट से चुनाव लड़ते तो मजहबियों में यह संदेश जाता कि चन्नी का लक्ष्य सिर्फ रविदासियों, रामदासियों और चमारों को एकजुट करना है.

लेकिन यह सिर्फ एक कारण है कि मालवा की किसी एक सीट से लड़ना महत्वपूर्ण क्यों है.

3. मालवा में कांग्रेस को बढ़त देने का प्रयास

दूसरा कारण यह कि कांग्रेस के पास मालवा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाला कई बड़े नेता नहीं है.

माझा में कांग्रेस के पास पंजाब में पार्टी प्रमुख नवजोत सिद्धू, कार्यकारी अध्यक्ष सुखविंदर डैनी बंडाला, उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा और ओपी सोनी, वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर बाजवा, सुखबिंदर सरकारिया, अरुणा चौधरी और पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख प्रताप सिंह बाजवा के रूप में कई बड़े नाम हैं.

इससे कम दोआबा में कांग्रेस के पास परगट सिंह, संगत सिंह गिलजियान, राणा गुरजीत और सुखपाल खैरा जैसे कुछ ही बड़े चेहरे हैं, लेकिन पार्टी वहां उच्च दलित और हिंदू आबादी पर निर्भर है.

लेकिन मालवा क्षेत्र- जहां पंजाब की 117 सीटों में से सबसे अधिक 69 सीटें हैं - में कांग्रेस को सबसे कमजोर कहा जाता है. ऐसे में कांग्रेस AAP और अकाली दल को मालवा में हावी होने नहीं दे सकती थी, इसलिए भदौर से चन्नी का चुनाव लड़ने इसी का तोड़ लगता है.

4. एकमात्र क्षेत्र जहां कांग्रेस बढ़त हासिल कर सकती है

2017 चुनाव में कांग्रेस 25 में से 22 सीटें जीतकर माझा में टॉप पर थी और अब उसे यहां बड़ा नुकसान होने की संभावना है. हालांकि उसे दोआबा में कुछ बढ़त मिलने की उम्मीद है, लेकिन इससे माझा और मालवा के कुछ हिस्सों में होने वाले नुकसान की भरपाई मुश्किल है.

ऐसे में 2017 चुनाव में AAP द्वारा जीते गए क्षेत्र - बरनाला, मानसा, फरीदकोट जैसे जिलों में ही कांग्रेस बढ़त हासिल कर सकती है. बरनाला (जिसमें भदौर विधानसभा आता है) और मनसा ही ऐसे दो जिले हैं जिनमें कांग्रेस एक भी सीट जीतने में असफल रही थी.

कांग्रेस ने भदौर और उससे लगी 7 सीटों- मनसा, सुनाम, बरनाला, महल कलां, निहाल सिंघवाला, रामपुरा फूल और मौर- में से केवल एक - रामपुरा फूल जीती थी. इनमें से तीन- भदौर, महल कलां और निहाल सिंघवाला- आरक्षित सीटें हैं.

आसपास की दूसरी आरक्षित सीटें जिसपर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था, उनमें जगराओं, रायकोट, बठिंडा ग्रामीण, बुढलाडा और दिर्बा शामिल हैं.

यह 12 सीटें ( विशेष रूप से 8 आरक्षित सीटें) एक महत्वपूर्ण क्लस्टर हैं जहां कांग्रेस को अपने नुकसानों की भरपाई करने की उम्मीद है. हालांकि, ऐसा कहना करने से आसान है.

इन सीटों से AAP के कई विधायक अब पाला बदलकर कांग्रेस में हैं, इसलिए हो सकता है कि पार्टी उनके खिलाफ नाराजगी को भुना न पाए.

साथ ही अगर कांग्रेस पार्टी 2017 की 'लहर' के दौरान भी इन सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाई थी, तो उसके लिए लगभग पांच साल बाद रिजल्ट को बदलना मुश्किल होगा, जब उसे कुछ हद तक सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है.

भले ही कांग्रेस सीएम चन्नी के कारण दलितों के बीच समर्थन बढ़ाने में सफल हो गई हो, लेकिन इन क्षेत्रों में दबदबा रखने वाले जाट सिखों के बीच उसका समर्थन कम हुआ है.

5. संकेत देना कि यह चन्नी का चुनाव है

यह सच है कि चन्नी अपने तीन दशक से अधिक लंबे राजनीतिक करियर में आज जहां तक ​​पहुंचे हैं, वहां तक ​​पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है, लेकिन उन्हें भाग्य का साथ भी मिला है.

चन्नी 2015 में कैप्टन और बाजवा गुट के बीच मतभेदों के बाद आम सहमति के रूप में विपक्ष के नेता बने. फिर 2021 में कैप्टन, सिद्धू और सुखजिंदर रंधावा गुटों के बीच मतभेदों के बीच चन्नी मुख्यमंत्री के कुर्सी तक पहुंच गए.

भाग्य में बहुत विश्वास रखने के लिए जाने जाने वाले चन्नी ने एक बड़ा जोखिम उठाया है. अगर वह दोनों सीटों पर हार जाते हैं और कांग्रेस चुनाव हार जाती है तो उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है. अगर चन्नी दोनों सीटों पर हार जाते हैं और कांग्रेस चुनाव जीत जाती है, तो इसका फायदा नवजोत सिंह सिद्धू को होगा.

लेकिन अगर चन्नी किसी तरह मालवा में कांग्रेस को बचाने और उसे पंजाब में सबसे बड़ी पार्टी बनाने में कामयाब रहते हैं, तो यह चन्नी के लिए व्यक्तिगत तौर पर एक महत्वपूर्ण जीत होगी.

क्या भाग्य इस बार भी चन्नी का साथ देगा?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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