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पंजाब चुनाव 2022: जमीन, रोजगार और सम्मान के लिए दलितों का संघर्ष

"जो खुद में सक्षम हैं वो कभी नहीं चाहते कि दलित इज्जत की जिंदगी जी सके, कोई जमीन का टुकड़ा मांग सके."

हिमांशी दहिया
पंजाब चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>जमीन, रोजगार और सम्मान के लिए दलितों का संघर्ष</p></div>
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जमीन, रोजगार और सम्मान के लिए दलितों का संघर्ष

फोटो- क्विंट

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पंजाब (Punjab) की कुल आबादी में 32 फीसदी दलित हैं लेकिन फिलहाल केवल 3.5 फीसदी दलितों के पास ही खुद की खेती के लिए जमीन है. जो इस बात का सबूत है कि पंजाब में दलितों को जमीन, जीवन और इज्जत के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा है.

पंजाब में 2016 के अक्टूबर में एक मजदूर बलविंदर सिंह की 72 साल की मां गुरदेव कौर पर पंजाब के झलूर गांव के ऊंची जाति के सिख किसानों ने हमला कर दिया था.

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दरअसल दलित समुदाय की मांग थी कि उन्हें पंजाब विलेज कॉमन लैंड एक्ट, 1961 के तहत उपजाऊ जमीन का 33% मालिकाना हक दिया जाए. इसके बाद झलूर में हिंसा हो गई.

बलविंदर ने बताया कि, "5 अक्टूबर 2016 को झलूर में दलित समुदाय और ऊंची जाति के सिख किसानों में जमीन को लेकर झगड़ा हुआ था. तब हमारे साथ धक्का-मुक्की हुई डमी बोली लगाई गई एक दलित को किसी ऊंची जाति के किसान का सहारा था, उसने जमीन लेकर उन लोगों को दे दी."

बलविंदर ने कहा, "हमने अपने गांव में ये मांग रखी थी क्योंकि वो पंचायती जमीन है उस जमीन को हम कम दाम में लेने के लिए मजदूर एकजुट हुए थे."

उन्होंने आगे बताया, "बहुत लोग जख्मी हुए थे. मेरी माता वहां पड़ी थी घर में आकर उनकी टांग काट दी गई, पानी की टंकी तोड़ दी गई, उसका पानी नीचे गिरने लगा. वहां मां को पानी देने के लिए भी कोई नहीं था, मेरे परिवार के बाकी सदस्य वो अलग-अलग जगह छुपे हुए थे. जिन किसानों के पास ज़मीन भी नहीं है वो भी जाति देख कर हमपर हमला करने आए."

जिसके पास जमीन है वही इज्जत से रह सकता है

एक अन्य मजदूर गुरदास सिंह ने कहा कि, "हम जहां धरना दे रहे थे वहां कुछ जाट हथियार लेकर पहुंचे, हमने प्रशासन से मदद मांगी. ऊंची जाति वाले किसानों को प्रशासन का भी साथ है उन्हें पूरी छूट दी गई कि तुम्हारे पास दो घंटे हैं."

गुरदास सिंह ने आगे बताया कि, "हर चीज जमीन से ही पैदा होती है अगर जमीन ठीक नहीं तो कुछ नहीं उगेगा कोई भी कारोबार नहीं चलता."

मजदूर माखन सिंह ने बताया कि, "जो खुद में सक्षम हैं वो कभी नहीं चाहते कि दलित इज्जत की जिंदगी जी सके, कोई जमीन का टुकड़ा मांग सके."

लगातार पिछले 2 साल से धरना और प्रदर्शन के बाद 2018 में दलितों को झलूर में खेती की जमीन मिली, लेकिन इसकी उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी.

बलविंदर ने बताया कि, जो मेरा भतीजा है वो अपनी मेहनत से पुलिस में भर्ती होने वाला था, उसे जवाइनिंग लेटर मिलना था लेकिन 15 दिन बाद उसपर एक FIR दर्ज हो गई. झूठा केस बनाया गया जब 2016 में हिंसा हुई थी तब वो यहां था भी नहीं."

उन्होंने कहा, बड़े संघर्ष के बाद हमने मिलकर एक कमिटी बनाई. झलूर जबर विरोधी एक्शन कमिटी, महीने भर संघर्ष चला, DC ऑफिस के सामने धरना दिया गया और वहां के विधायक के घर के बाहर भी धरना दिया गया.

गुरदास ने कहा कि, यहां समानता वाली कोई बात नहीं लेकिन हमने अपने संघर्ष से अपना हक पाया जो जमीन कानूनी रूप से हमारी थी वो हमें मिल गई, लेकिन समानता अब भी दूर का ख्वाब है.

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