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पंजाब (Punjab) और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) विधानसभा चुनावों के मौजूदा दौर में दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा किए जा रहे कड़े प्रयासों में बाधा आती दिख रही है. पंजाब और उत्तर प्रदेश दोनों जगह दलित एक प्रमुख फैक्टर है लेकिन बीजेपी को दलित समुदाय तक अपनी पहुंच बनाने में ज्यादा सफलता नहीं मिली है. इसके कई कारण हैं.
लेकिन राज्य के अन्य समुदायों की तरह दलित भी आगामी चुनाव में बीजेपी को एक हारी हुई पार्टी के रूप में में देखते हैं. राज्य में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच सीधा मुकाबला बन रहा है. दरअसल, दलित इस बात से काफी खुश हैं कि कांग्रेस ने जहां चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का पहला दलित मुख्यमंत्री नियुक्त किया है वहीं मौजूदा आप नेता प्रतिपक्ष हरपाल सिंह चीमा भी दलित हैं.
यह पहली बार है जब दलितों ने बड़ी संख्या में होने के बावजूद पंजाब की राजनीति में इतनी प्रमुख भूमिका निभाई है और वे काफी हद तक बीजेपी के प्रति उदासीन रहे हैं.
अभी हाल ही में बीजेपी और चुनाव आयोग दोनों ने कांग्रेस के मुख्यमंत्री चन्नी द्वारा पंजाब में मतदान को 14 फरवरी की निर्धारित तिथि से स्थगित करने के आह्वान का तेजी से समर्थन किया क्योंकि यह दलित संत रविदास की वार्षिक वर्षगांठ समारोह के बहुत करीब था. राज्य में बड़ी संख्या में संत रविदास के अनुयायी हैं.
पंजाब से इतर उत्तर प्रदेश में बीजेपी मजबूत स्थिति में है. वहीं यूपी में भी आने वाले चुनावों में दलित वोट महत्वपूर्ण होगा. 2014 में जब मोदी की हवा चली तो बीजेपी को दलित समुदाय ने वोट किया जिसने परंपरागत रूप से कभी पार्टी का समर्थन नहीं किया था.
बीजेपी ने 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में और 2019 के लोकसभा चुनावों में न केवल निम्न पिछड़ी जातियों का बल्कि गैर-जाटव दलित वोटों का बहुमत भी हासिल किया. साथ ही साथ कई बीएसपी सपोर्टर जाटव यूवी वोट बैंक को भी बीजेपी साधने में कामयाब रही.
हालांकि, उत्तर प्रदेश में एक बार फिर सियासी नैरेटिव बदल रहा है.
बीजेपी के लिए इससे भी ज्यादा नुकसानदेह बात यह हो सकती है कि उसके नए गैर-जाटव दलित वोट बैंक में दरारे हैं, साथ ही निचली पिछड़ी जातियों का लाभ भी नहीं मिलता दिख रहा है.
एक दलित एक्टिविस्ट ने बताया कि, "जहां तक जाटवों का सवाल है, वे बीएसपी को वोट देंगे अगर वह किसी निर्वाचन क्षेत्र में जीत की स्थिति में है, लेकिन अगर नहीं, तो वे बीजेपी को हराने के लिए सबसे पसंदीदा उम्मीदवार चुनने की संभावना रखते हैं. पासी, जो जाटवों के बाद दूसरा सबसे बड़ा दलित समूह है इसने पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बाजेपी के लिए भारी मतदान किया था, लेकिन अब वे समाजवादी पार्टी के गठबंधन के लिए बड़ी संख्या में मतदान करेंगे. वाल्मीकि, धोबी और खटीक जैसे अन्य छोटे गैर-जाटव दलित समूहों में भी विभाजन हैं, जो परंपरागत रूप से बीजेपी की ओर झुके हुए हैं."
दलित एक्टिविस्ट ने कहा कि दलितों में बीजेपी के प्रति मोहभंग और गुस्सा है. यह गुस्सा मुख्य रूप से पिछले पांच सालों में गंभीर आर्थिक संकट और दलितों पर हुए अत्याचारों की वजह से उपजा है. ये अत्याचार सबसे ज्यादा दलित महिलाओं के खिलाफ हुई है. उन्होंने आगे कहा
इस तरह दलितों का बीजेपी के प्रति मोहभंग केवल बीजेपी को इस चुनाव में महंगा साबित नहीं होगा बल्कि 2024 में भी नरेंद्र मोदी को नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि उन्हीं की वजह से दलित वोट बीजेपी की तरफ आ पाया था.
(लेखक दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार हैं और 'बहनजी: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती' के लेखक हैं. यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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