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मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों (Assembly Elections 2023) की उलटी गिनती शुरू हो गई है. इसमें से MP, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस का जनाधार है, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इन राज्यों में BSP प्रमुख मायावती भी एक्टिव नजर आ रही हैं.
मायावती मध्य प्रदेश में 9 और राजस्थान में 8 रैलियां करने जा रही हैं. इन राज्यों में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. ऐसे में ये जानना अहम है कि-
मायावती कैसे अपना प्रभाव छोड़ सकती हैं? कहां-कहां असर पड़ सकता है? पिछले चुनावों में क्या हासिल किया था, आने वाले चुनावों के लिए क्या समीकरण हैं? और इन राज्यों में दलित-आदिवासी आंकड़े क्या कहते हैं?
मध्य प्रदेश में 2018 के चुनावों में मायावती ने सिर्फ 2 रैलियां की थीं, लेकिन इस बार वो ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य रिजन में कम से कम 9 रैलियां करने जा रही हैं.
मायावती 6 नवंबर को निवाड़ी और अशोकनगर; 7 नवंबर को छतरपुर, सागर, दमोह; 8 नवंबर को सतना, रीवा; 10 नवंबर को दतिया, सेंवड़ा और 14 नवंबर को भिंड और मुरैना में जनसभा करेंगी.
मायावती के इस बार ज्यादा एक्टिव होने का एक कारण ये है कि हर चुनाव के साथ बीएसपी का प्रदर्शन खराब होता जा रहा है. मध्य प्रदेश के चुनावों में बीएसपी का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2008 में था, जब 7 सीटों पर जीत मिली थी. 2013 में 4 सीट पर जीत मिली, तो 2018 के चुनावों में पार्टी सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई. अब इससे नीचे जाने पर BSP का आधार बिल्कुल खत्म हो सकता है, इसलिए मायावती खुद मैदान में हैं. राजनीतिक विश्लेषक दीपक तिवारी ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा,
मायावती जिन क्षेत्रों में रैलियां करने जा रही हैं वो सब उत्तर प्रदेश की सीमा से लगते हुए इलाके हैं. इन इलाकों में बेहतर प्रदर्शन का कुछ लाभ बीएसपी को 2024 लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में मिल सकता है.
इसका सबसे बड़ा कारण है कि कांग्रेस-बीजेपी से कई नेता बीएसपी में गए हैं. नागौद में पूर्व कांग्रेस विधायक यादवेंद्र सिंह बीएसपी से लड़ रहे हैं. मुरैना में पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के बेटे राकेश रुस्तम सिंह चुनाव लड़ रहे हैं. लहार से रसाल सिंह अब तक बीजेपी से लड़ते थे इस बार बीएसपी से लड़ेंगे, भिंड में बीएसपी से बीजेपी में शामिल हुए विधायक संजीव कुशवाहा वापस बीएसपी में चले गए हैं.
इसके अलावा सुमावली में कांग्रेस ने पहले कुलदीप सिकरवार को टिकट दिया था, फिर बदलकर अजब सिंह कुशवाह को दे दिया. अब कुलदीप बीएसपी से लड़ेंगे जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. राजनगर में बीजेपी के ओबीसी नेता घसीराम पटेल को टिकट न मिलने के कारण अब वो बीएसपी से चुनाव लड़ेंगे.
दीपर तिवारी कहते है, मध्यप्रदेश में दलितों का भाव कुछ इस तरह का है कि बीएसपी को वोट देने से बीजेपी को जीत मिल जाती है, क्योंकि वोट बंट जाते हैं. इसी के चलते दलित वोटरों का बीएसपी से मोहभंग हो गया.
पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक विवेक श्रीवस्तव ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि राजस्थान में दलितों का बीएसपी के प्रति थोड़ा सा लगाव है, इसीलिए पार्टी हर बार 5 से 6 सीट जीतती हैं. इसके अलावा बीएसपी कई जगह दूसरे नंबर पर भी रहती है. इस बार भी उम्मीद है कि बीएसपी 5 से 7 सीट जीत सकती है. इसमें मायावती के रैलियों की अहम भूमिका रहने वाली है.
हालांकि, इसमें एक रोचक आंकड़ा भी है. 2018 के चुनावों में बीएसपी ने बीजेपी को अच्छा-खासा नुकसान पहुंचाया था. चुनावों में 30 सीटें ऐसी थीं, जहां बीएसपी को जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिला था. इसका सीधा मतलब है कि बीएसपी ने इन सीटों पर हार-जीत का समीकरण तय किया. इन 30 में से 17 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. 10 बीजेपी को मिली और 3 अन्य को खाते में गई. यदि इन 17 सीटों पर बीएसपी नहीं होती, तो बीजेपी की जीत संभव थी और उस स्थिती में पार्टी को राज्य में 73 की जगह 90 सीटें मिलतीं.
2018 के चुनावों में भी बीएसपी के 6 उम्मीदवार जीते थे, लेकिन बाद में ये सभी कांग्रेस में शामिल हो गए. BSP ने तब 200 में से 190 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4.03% वोट शेयर हासिल किया. बीएसपी तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली पार्टी रही थी.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीएसपी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) के साथ चुनाव लड़ रही है. 230 सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा में BSP 178 जबकि GGP 52 सीटों पर मैदान में है.
एमपी में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 47 और अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं. छत्तीसगढ़ में 29 सीटें एसटी-आरक्षित हैं और 10 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं. मध्य प्रदेश की आबादी में दलित लगभग 17 प्रतिशत हैं, जबकि आदिवासी 22 प्रतिशत से अधिक हैं.
90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव के लिए, बीएसपी 53 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि GGP 37 निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारेगी. गोंडवाना पार्टी की आदिवासियों में पकड़ मानी जाती है. छत्तीसगढ़ में दलितों की आबादी 15 फीसदी है, जबकि आदिवासियों की हिस्सेदारी 32 फीसदी है. छत्तीसगढ़ में, बीएसपी ने जिन 35 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से 2 पर जीत हासिल की थी और उसका वोट शेयर 3.87 प्रतिशत था.
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की आदिवासियों के बीच पकड़ है और बीएसपी दलितों के बीच जनाधार वाली पार्टी है. हालांकि, दीपक तिवारी कहते हैं कि अगर आदिवासी बंटेंगे तो वे बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही बंटेंगे. जिस तरह से कांग्रेस ने पिछली बार आदिवासी इलाकों की 75% से ज्यादा सीटें जीती थीं, इस बार भी कमोबेश वही ट्रेंड हो सकता है.
छत्तीसगढ़ में 7 और 17 नवंबर, मध्य प्रदेश में 17 नवंबर और राजस्थान में 25 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और नतीजे तीन दिसंबर को आएंगे.
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