advertisement
राजस्थान (Rajasthan Election Result 2023) में बीजेपी (BJP) की सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया है, राज्य में हमेशा की तरह कायम रहने वाला रिवाज इस बार भी कायम रहा, यानी पिछली बार कांग्रेस (Congress) की सरकार थी तो इस बार बीजेपी की सरकार बनी है.
यहां आपको ऐसे 10 सावालों के जबाव देते हैं जिससे आपको राजस्थान के चुनावी नतीजों से जुड़ी हर बड़ी बात का जवाब मिल जाएगा. साथ ही आपको राजस्थान का सारा गणित भी समझ आ जाएगा.
राजस्थान में बीजेपी ने बहुमत का आंकड़ा पार कर जीत हासिल की है. वहीं कांग्रेस को करारी हार मिली है. बीजेपी ने 199 सीटों पर हुए मतदान में से 115 सीटों पर जीत हासिल की है. बहुमत का आंकड़ा 100 है.
वहीं हारने वाली पार्टी कांग्रेस के खाते में 69 सीटें आईं हैं.
भारत आदिवासी पार्टी ने 3 सीटों पर जीत हासिल की है.
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की है.
राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के खाते में 1 सीट आई है.
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भी 1 सीट पर जीत दर्ज की है.
निर्दलीयों ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की है.
मोदी की गारंटी यानी बीजेपी का घोषणा पत्र वोटरों को पसंद आया, बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड भी हावी रहा. बीजेपी ने पेपर लीक से लेकर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, जिसमें राजस्थान में सरकारी नौकरियों में घोटाले से लेकर रीट और RPSC समेत करीब एक दर्जन से ज्यादा पेपरलीक के मामले हैं. वहीं बीजेपी ने 7 सांसदों को टिकट दिया - इनमें राज्यवर्धन सिंह राठौर, दीया कुमारी, नरेंद्र कुमार, देवजी पटेल, भागीरथ चौधरी, बाबा बालकनाथ और किरोड़ी लाल मीणा के नाम शामिल है.
और राज्य का रिवाज तो कायम ही था. राजस्थान में हर बार सत्ता परिवर्तन का रिवाज रहता है जो इस बार भी कायम रहा.
ये सही है कि अशोक गहलोत चुनावी नतीजों से पहले काफी कॉन्फिडेंट नजर आ रहे थे. लेकिन 'रिवाज' एक बड़ा फैक्टर है. इसके अलावा एंटी इंकंबेंसी की बड़ी भूमिका रही यानी जनता की सरकार से नाराजगी. वहीं कांग्रेस ने पुराने चेहरों को ही ज्यादा मौके दिए. आलाकमान नए चेहरों को उतारना चाहती थी लेकिन गहलोत के विरोध के बाद इस फैसले को बदला गया. इसके अलावा लॉ एंड ऑर्डर का मुद्दा भी रहा वहीं पीर्टी के नेताओं के बीच की रार भी वजह थी.
राजस्थान में गहलोत की योजनाएं काफी लुभावनी थी लेकिन फिर भी इन पर लाल डायरी और भ्रष्टाचार के आरोप भारी पड़े. चुनाव के बीच लाल डायरी के कुछ पन्ने भी सामने आए जिसका वोटरों पर काफी असर पड़ा.
इसका सीधा जवाब तो नहीं दिया जा सकता लेकिन ऐसी कोई बड़ी खबर सुर्खियों में नहीं रही जो ये बता सके कि गहलोत और पायलट का विवाद कांग्रेस को बैकफुट पर ले गया. हालांकि बीजेपी ने इस मुद्दे को तूल देने की काफी कोशिशें की लेकिन दूसरी तरफ गहलोत और पायलट को एक मंच पर देखा गया.
नतीजों से पता चलता है कि 'सचिन पायलट' फैक्टर और गुर्जर समुदाय पर उनका प्रभाव, थोड़ा कमजोर होता हुआ दिखा है, जिससे कांग्रेस को 2018 में भारी फायदा हुआ था. 2020 में गहलोत के खिलाफ बगावत के दौरान मानेसर रिसॉर्ट में पायलट के साथ मौजूद 15 नामों में से अधिकांश को इस बार टिकट दिया गया था, हालांकि, 15 में से कम से कम आठ अपनी-अपनी सीटों से चुनाव हार गए हैं. लेकिन पालयट के प्रभाव वाले पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन रहा है.
राजस्थान में सीएम की रेस में पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और दो बार की सीएम वसुधंरा राजे, राजघराने से ताल्लुक रखने वाली दीया कुमारी, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, डॉ किरोड़ी लाल मीणा, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, बाबा बालकनाथ का नाम शामिल है.
आप पूछेंगे कि इस रेस में आगे कौन है तो जवाब है कि हर नेता आगे है और सभी पीछे हैं, इसकी वजह बीजेपी हाईकमान है, जो अकसर चौंकाने वाले फैसले लेने के लिए जाना जाता है.
अगर 1998 के चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो पता लगेगा कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न बिल्कुल अलग है. भले ही दोनों चुनाव के बीच कुछ महीने का अंतर हो, लेकिन दोनों के रिजल्ट का एक दूसरे पर कोई खास असर नहीं पड़ता.
लेकिन 2003 से लेकर 2014 के बीच राजस्थान में एक खास पैटर्न दिखाई दिया. जिस पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की, वही लोकसभा चुनाव में भी भारी पड़ी. तो जाहिर है बीजेपी के लिए ये जीत फायदेमंद है.
आम आदमी पार्टी राजस्थान में न के बराबर है. आप को केवल 1 फीसदी वोट भी हासिल नहीं हुआ है.
वहीं बीएसपी जिसने 2018 के चुनाव में 6 सीटों पर बाजी मारी थी वह इस बार 2 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई है. वहीं बीएसपी का वोट शेयर केवल 1.8% है.
सीपीएम ने जिसने 2018 में 2 सीटों पर जीत हासिल की थी वह इस बार एक भी सीट नहीं निकास पाई वहीं सीपीएम को एक फीसदी वोटरों ने भी वोट नहीं किया है.
अशोक गहलोत के बाद पार्टी में सचिन पायलट सबसे बड़ा नाम है. सचिन उप सीएम भी रह चुके हैं और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष भी. सचिन पायलट को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार न बनाने को लेकर वो पहले ही नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. इस बार हुए चुनाव में उनका प्रभाव थोड़ा कमजोर जरूर पड़ा लेकिन पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा जहां पायलट का असर है. ऐसे में कांग्रेस सचिन पायलट को कोई न कोई बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)