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तेलंगाना की कुर्सी पर रेवंत रेड्डी का 'राज्याभिषेक', 6 फैक्टर, जो उनके पक्ष में गए?

रेड्डी को राज्य का मुखिया बनाने के पीछे कई फैक्टर हैं, जो उनके कुर्सी पर काबिज होने के लिए अहम साबित हुए.

उपेंद्र कुमार & पल्लव मिश्रा
तेलंगाना चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>Breaking News Live Update: तेलंगाना के नए मुख्यमंत्री बनें रेवंत रेड्डी</p></div>
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Breaking News Live Update: तेलंगाना के नए मुख्यमंत्री बनें रेवंत रेड्डी

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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तेलंगाना में जैसी उम्मीद की जा रही थी, कुछ वैसा ही हुआ. कांग्रेस ने युवा नेता और पीसीसी चीफ रेवंत रेड्डी को तेलंगाना के अगले मुख्यमंत्री के रूप में चुना. ABVP और TDP (तेलगु देशम पार्टी) रास्ते कांग्रेस पर सवार हुए 54 वर्षीय रेवंत रेड्डी ने तेलंगाना के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. हालांकि, तेलंगाना में कई ऐसे कांग्रेसी नेता थे, जो सीएम फेस की रेस में थे, लेकिन वो कौन से फैक्टर रहे जो रेवंत के पक्ष में रहे.

इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आखिर रेवंत रेड्डी के नाम पर कैसे मुहर लगी? और कांग्रेस ने रेवंत रेड्डी को ही क्यों चुना

रेवंत रेड्डी के नाम पर कैसे मुहर लगी?

रेवंत रेड्डी के नाम की घोषणा होने से पहले दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर राहुल गांधी और केसी वेणुगोपाल की बैठक हुई, इसमें कर्नाटक के डिप्टी सीएम और तेलंगाना के पर्यवेक्षक डीके शिवकुमार भी शामिल हुए. शिवकुमार हैदराबाद से विधायकों की रायशुमारी करके दिल्ली पहुंचे थे और उन्होंने अपनी रिपोर्ट कांग्रेस हाईकमान को सौंपी, जिसके बाद रेवंत रेड्डी के नाम पर मुहर लगी.

कांग्रेस ने रेवंत रेड्डी को ही क्यों चुना?

रेड्डी को राज्य का मुखिया बनाने के पीछे कई फैक्टर हैं, जो उनके कुर्सी पर काबिज होने के लिए अहम साबित हुए.

संगठन को मजबूत करने का श्रेय: तेलंगाना गठन के बाद से ये पहला मौका है, जब कांग्रेस राज्य के सिंहासन तक पहुंची है. इससे पहले हुए दो चुनावों में BRS (पहले TRS) सत्ता पर काबिज रहने में सफल रही. साल 2014 में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने संगठन में फेरबदल करते हुए साल 2015 में उत्तम रेड्डी को संगठन की कमान सौंपी थी, लेकिन वो भी साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस की नैया पार नहीं करा सके.

इसके बाद कांग्रेस आलाकमान को एक नए चेहरे की तलाश थी, जो संगठन में जान फूंक सके. उस वक्त प्रदेश में उभरते युवा रेवंत रेड्डी पर कांग्रेस आलाकमान ने भरोसा जताया और साल 2021 में उत्तम रेड्डी की जगह रेवंत रेड्डी को पीसीसी चीफ की कमान सौंपी.

रेवंत ने प्रदेश की कमान संभालने के बाद KCR सरकार के खिलाफ अग्रेसिव मोड में राजनीति शुरू की. संगठन स्तर पर बदलाव किए, नए चेहरों को मौका दिया. जानकारों की मानें तो, कांग्रेस को शहर और गांव स्तर तक मजबूत करने का श्रेय भी रेवंत रेड्डी को ही जाता है..

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युवाओं के बीच लोकप्रिय: रेवंत रेड्डी के 'राज्याभिषेक' के पीछे युवा होना एक बड़ी वजह है. युवाओं के बीच लोकप्रियता रेवंत रेड्डी की बड़ी ताकत मानी जाती है. कांग्रेस मौजूदा वक्त में जेनरेशन चेंज से गुजर रही है और साउथ की राजनीति में रेवंत रेड्डी फीट बैठते हैं. उनके प्रचार करने की शैली और विपक्ष के खिलाफ रणनीति बनाने की समझ ही तेलंगाना की सत्ता तक कांग्रेस को ले गई.

राहुल-प्रियंका के करीबी: रेवंत रेड्डी को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का करीबी माना जाता है. राहुल और प्रियंका जब भी तेलंगाना में प्रचार के लिए गए तो उनके साथ जो दूसरी तस्वीर दिखती थी, उसमें रेवंत रेड्डी ही दिखाई देते थे. इसके अलावा रेवंत रेड्डी ही वो शख्स रहे, जो तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का चेहरा बने रहे. इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब साल 2018 के विधानसभा चुनाव में रेवंत हारे तो कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में मलकाजगिरि से टिकट दिया और उन्होंने जीत भी हासिल की.

कास्ट पॉलिटिक्स में फिट: दरअसल, रेड्डी के कुर्सी तक पहुंचाने में उनकी जाति भी काफी अहम रही. 2014 में तेलंगाना सरकार द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, ओबीसी राज्य की आबादी में 51 फीसदी है. इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों के साथ, हिस्सेदारी 85% से अधिक हो जाती है. राज्य में 14 फीसदी अल्पसंख्यक भी हैं.

रेवंत रेड्डी ओबीसी हैं और राज्य में पिछड़ा वर्ग प्रभावशाली है. रेड्डी जातीय की आबादी प्रदेश में लगभग 5 फीसदी है. बाकी 10-11 फीसदी कप्पस हैं. कांग्रेस लंबे समय से ओबीसी वोटर्स को साधने की कोशिश में हैं. उसने टिकट वितरण के दौरान भी ओबीसी को कई टिकट दिये.

बीजेपी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वो सत्ता में आने पर पिछड़ा वर्ग से ही किसी को सीएम बनाएगी. केसीआर भी अपने कार्यकाल में ओबीसी नेताओं को हैदराबाद से दिल्ली तक जमकर प्रतिनिधित्व दिया है.

इसके अलावा कांग्रेस रेड्डी के बहाने बीआरएस के साथ ही बीजेपी की सियासत को नुकसान पहुंचाना चाहती है और वो इसके जरिए 2024 चुनाव में दक्षिण भारत की पॉलिटिक्स को साधना चाहती है.

युवा नेतृत्व का संदेश: रेवंत रेड्डी को ताज पहनाने के पीछे कांग्रेस की युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने की रणनीति मानी जा रही है. क्योंकि, कर्नाटक में डी.के शिवकुमार के नेतृत्व में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था, लेकिन वो सीएम की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए, जिसको लेकर उनके समर्थकों के बीच रोष भी नजर आया और यदा कदा मीडिया में खबरें चलती रहती हैं.

इसको भांपते हुए आलाकमान ये संदेश देना चाहता है कि युवाओं के लिए अब कांग्रेस में बड़े पदों के भी द्वार खुले हैं, बस उनमें क्षमता होनी चाहिए. इसको लेकर कांग्रेस आने वाले चुनावों में रेवंत रेड्डी को युवाओं के बीच पेश कर सकती है.

हालांकि, रेवंत रेड्डी को लेकर वहां के पुराने कांग्रेस नेताओं ने सीएम चेहरे पर सवाल उठाए कि वो ABVP और बीजेपी की विचारधारा से आते हैं, बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने एक उदाहरण पेश किया है कि कांग्रेस में सबका स्वागत है.

आंध्रा में मिलेगा फायदा: कांग्रेस रेवंत रेड्डी के बहाने आंध्र प्रदेश में भी अपने पांव मजबूत करना चाहती हैं. रेवंत ABVP और TDP से आये हैं. ऐसे में दोनों की पॉलिटिक्स को बखूबी समझते हैं. रेड्डी को आगे कर कांग्रेस आंध्रा प्रदेश में टीडीपी को कमजोर करना चाहती है, जिससे वो वाईएसआर जगन मोहन रेड्डी का मुकाबला कर सकें.

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