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तेलंगाना विधानसभा चुनाव (Telangana Assembly Elections) के नतीजों से के. चंद्रशेखर राव और उनकी भारत राष्ट्र समिति (BRS) को बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस तेलंगाना में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है, और जिस व्यक्ति को बड़े पैमाने पर जीत का श्रेय दिया जा रहा है वो राज्य में पार्टी की वापसी का जश्न मनाते हुए रोड शो कर रहे हैं. वो व्यक्ति छह साल पहले तक कांग्रेस के आसपास भी नहीं थे.
हम यहां बात कर रहे हैं ए. रेवंत रेड्डी की. उन्होंने अपनी कोडंगल सीट जीती है और कामारेड्डी में केसीआर से मुकाबला कर रहे हैं. रेवंत रेड्डी 2017 में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) से कांग्रेस में शामिल हुए थे.
लेकिन चार साल में, उन्होंने तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी (TPCC) प्रमुख का पद संभाला. हालांकि, तत्कालीन अध्यक्ष उत्तम कुमार रेड्डी सहित राज्य में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी के चलते उन्हें ये पद मिला था.
इतनी बड़ी जीत आज खुद कांग्रेस के लिए अविश्वसनीय लग रही है, क्योंकि रेवंत पिछले साल ही पार्टी में विद्रोह से जूझ रहे थे. दासोजू श्रवण और कोमाटिरेड्डी राज गोपाल रेड्डी जैसे वरिष्ठ नेता बीआरएस और बीजेपी में शामिल हो गए थे. हालांकि, राज गोपाल रेड्डी हाल ही में कांग्रेस में लौट आए और चुनाव में मुनुगोडे निर्वाचन क्षेत्र में आगे चल रहे हैं.
लेकिन इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया पोल के मुताबिक, 21 फीसदी मतदाताओं ने रेवंत को सीएम के रूप में अपनी पहली पसंद बताया है.
54 वर्षीय रेवंत रेड्डी ने 2006 में ZPTC प्रतिनिधि और 2008 में एक स्वतंत्र MLC के रूप में शुरुआत की थी. उन्होंने 2009 में संयुक्त आंध्र प्रदेश में कोडंगल निर्वाचन क्षेत्र से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. वह तब TDP में थे- और आंध्र प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू के करीबी रहे हैं.
उन्होंने कांग्रेस के पांच बार के विधायक गुरुनाथ रेड्डी को हराया. ये कोई आसान काम नहीं था. आउटलुक के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि उन्हें "ये भी नहीं पता था कि निर्वाचन क्षेत्र कहां है."
उन्होंने कहा,
उन्होंने TDP के लिए 2014 में दूसरी बार कोडंगल जीता. हालांकि, मई 2015 में, तेलंगाना भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने उन्हें MLC चुनाव में TDP उम्मीदवार को वोट देने के लिए नामांकित विधायक एल्विस स्टीफेंसन को रिश्वत देने की कोशिश के आरोप के बाद गिरफ्तार कर लिया.
2017 तक उन्होंने TDP छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए.
उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर कोडंगल से चुनाव लड़ा, लेकिन BRS (तत्कालीन तेलंगाना राष्ट्र समिति) के पटनम महेंद्र रेड्डी से हार गए. 2018 के चुनावों के दौरान, KCR की रैली को रोकने का दावा करने के बाद, रेवंत को एक बार फिर उनके घर से गिरफ्तार किया गया.
विधानसभा चुनावों में हार के बाद, वे कुछ महीने बाद मल्काजगिरी से 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
रेवंत जब छात्र थे तब वह RSS की छात्र शाखा ABVP के भी सदस्य थे. इस चुनावी मौसम में अपने पूरे कैंपेन के दौरान, AIMIM प्रमुख और BRS के अनौपचारिक सहयोगी असदुद्दीन ओवैसी ने इस बात को सबके सामने रखा था. उन्हें 'RSS अन्ना' कहा जाता था.
द क्विंट के साथ एक इंटरव्यू में ओवैसी ने कहा था,
रेवंत के राजनीतिक उतार-चढ़ाव के दौरान भी, जो चीज लगातार बनी रही वो है के चंद्रशेखर राव की उनकी तीखी आलोचना. लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि उन्होंने सभी कांग्रेस नेताओं के उनके संबंध काफी अच्छे हो गए.
रेवंत रेड्डी उस समय TPCC प्रमुख बने जब कांग्रेस को तेलंगाना में एक के बाद एक हार का सामना करना पड़ा था. BRS (तत्कालीन TRS) ने 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 18 सीटों पर रोक दिया था. 2019 में 12 अन्य दलबदल कर गए थे. इसके बाद कांग्रेस को जीत की सख्त जरूरत थी.
हालांकि, हुजूरनगर और नागार्जुन सागर सहित बाद के उप-चुनावों में भी ऐसा नहीं हुआ.जबकि इन इलाकों में कांग्रेस मजबूत थी. GHMC चुनाव में बीजेपी की बढ़त के साथ कांग्रेस तीसरे स्थान पर पहुंच गई.
नेतृत्व में बदलाव की योजना थी, लेकिन जब आलाकमान ने रेवंत को चुना, जो 2017 में ही पार्टी में शामिल हुए थे, तो वरिष्ठ नेता नाराज हो गए.
इसके बाद हालात एक साल बाद 2022 में और खराब हो गए, जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता दासोजू श्रवण, जिन्होंने पहले कहा था कि रेवंत पार्टी को और अधिक "आक्रामक और मुखर" बनाएंगे - ने यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी,
उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि रेवंत "अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के नेताओं को दरकिनार कर रहे हैं."
लेकिन जल्द ही, रेवंत के एक और आलोचक, कोमाटिरेड्डी राज गोपाल रेड्डी (जो कांग्रेस के मुनुगोडे विधायक थे) ने ये दावा करते हुए पार्टी छोड़ दी कि रेवंत की प्रबंधन शैली कठोर थी और सभी नेताओं को समायोजित करने की कांग्रेस की प्रकृति के अनुकूल नहीं थी.
चुनाव रणनीतिकार सुनील कनुगोलू को शामिल करने का पार्टी का फैसला और रेवंत की उनसे निकटता भी वरिष्ठ नेताओं को रास नहीं आई.
लेकिन ऐसा लगता है कि कर्नाटक चुनाव में जब कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ जीत दर्ज की तो चीजें बेहतर हो गईं, जबकि कोमाटिरेड्डी बंधुओं जैसे नेता, जिनका नलगोंडा क्षेत्र पर नियंत्रण है, अभी भी रेवंत से असंतुष्ट दिखाई देते हैं.
अब इंतजार करना होगा और देखना होगा कि क्या इस तरह की बहुत जरूरी जीत पार्टी के सिलेबस को बदल देगी - और क्या ये रेवंत को सीएम पद पर ले जाएगी.
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