advertisement
उत्तर प्रदेश की जनता ने अपना जनादेश (Uttar Pradesh Election Result) सुनाया है और योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के नेतृत्व में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के हाथ में प्रचंड बहुमत सौंप दिया. महीनों की राजनीतिक सरगर्मी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर आखिरकार BJP+ के पक्ष में जाकर खत्म हुआ.
ये नतीजे अपने साथ लाये हैं यूपी की राजनीति में BSP और कांग्रेस के साफ होने की कहानी तो कुछ ही सालों में निषाद पार्टी जैसे छोटे दलों के छा जाने का फसाना. इन नतीजों में हम निषाद पार्टी के सिरमौर संजय निषाद के लिए राजनीतिक अर्थ खोजने की कोशिश करते हैं.
पहली बार अपने चुनाव चिह्न पर 10 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी निषाद पार्टी ने उनमें से छह सीटों पर जीत हासिल की है. साथ ही 6 सीटों पर निषाद पार्टी के उम्मीदवार बीजेपी के सिंबल पर चुनाव में उतरे थे और उनमे से 5 सीट जीतने में कामयाब रहे. यानी असल में 16 सीटों में से निषाद पार्टी ने 11 पर जीत हासिल की.
निषाद पार्टी के सिंबल पर जीतने वाले उम्मीदवार
विपुल दुबे- ज्ञानपुर विधानसभा सीट
डॉ बिनोद बिंद- मझवान विधानसभा सीट
अनिल त्रिपाठी- मेहदावल विधानसभा सीट
ऋषि त्रिपाठी- नौतनवां विधानसभा सीट
विवेक पांडे- खड्डा विधानसभा सीट
रमेश सिंह- शाहगंज विधानसभा सीट
बीजेपी के सिंबल पर जीतने वाले उम्मीदवार
सरवन निषाद (संजय निषाद के बेटे)- चौरीचौरा विधानसभा सीट
पीयूष रंजन निषाद- करछना विधानसभा सीट
केतकी सिंह- बांसडीह विधानसभा सीट
राजबाबू उपाध्याय- सुल्तानपुर सदर विधानसभा सीट
डॉ असीम रॉय- तमकुहीराज विधानसभा सीट
पार्टी के इस शानदार प्रदर्शन ने पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद का कद बढ़ा दिया है. अगर संजय निषाद की इस जीत की अहमियत का पता लगाना हो तो एक नजर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और यूपी में 2007 में 206 सीटों पर जीतकर मुख्यमंत्री बनने वाली मायावती की पार्टी BSP के सीटों पर डालें. कांग्रेस मात्र 2 और BSP 1 सीट पर जीत सकी है.
निषाद पार्टी ने 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी, अपना दल और जन अधिकार पार्टी के साथ गठबंधन किया था और 100 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे. लेकिन तब उसे सिर्फ भदोही के ज्ञानपुर सीट पर जीत हासिल हुई थी.
हालांकि, एक साल बाद ही समाजवादी पार्टी से गठबंधन टूट गया और 2019 के लोकसभा चुनाव में संजय निषाद ने बीजेपी से हाथ मिला लिया. इस बार उनके बेटे प्रवीण कुमार बीजेपी के टिकट पर संत कबीर नगर संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतरे और जीत हासिल की.
गठबंधन की सहयोगी बीजेपी द्वारा निषाद पार्टी को दी गई सीटों को जीतना मुश्किल माना जा रहा था. दूसरी चुनौती थी की समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस सहित कई दल ने भी निषाद समुदाय के उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर निषाद जाति के वोटर्स को अपने पाले में करने की कोशिश की थी, जो पार्टी के वोट बैंक के लिए एक गंभीर चुनौती थी.
बावजूद इनके 2022 के इस विधानसभा चुनाव में संजय निषाद की पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए उनका कद बड़ा कर दिया है. यह जरूर है कि बीजेपी ने अकेले ही आसानी से बहुमत का आंकड़ा पार किया है लेकिन बीजेपी आलाकमान भी जानती है कि निषाद पार्टी पूर्वांचल में उसे जातीय समीकरण को अपने पाले में करने का सही मौका देती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)