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यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के नतीजे आपके सामने हैं. एसपी 125 सीटों पर सिमट गई है और बीजपी ने 272 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में वापसी की, लेकिन, जयंत चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी ने गैर यादव पिछड़ी जातियों के वोट की जो पिक्चर अखिलेश को दिखाई थी उसका क्या हुआ? तो हम कहेंगे कि-हवा हवाई हो गया है. जयंत चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी की स्थिति को देखकर एक फिल्म याद आती है ‘थ्री इडियट्स’. ऐसे में इन्हें अखिलेश यादव के ‘थ्री इडियट्स कहें’ तो ये अतिश्योक्ति नहीं होगी.
यूपी में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद जब अखिलेश यादव ने छोटे दलों को साधना शुरू किया तो राजनीतिक विशेषज्ञों ोंने कहा कि इस बार चुनाव टक्कर का होगा. अखिलेश भी गैर यादव पिछड़ी जातियों को अपने पाले में कर सत्ता की सीढ़ी चढ़ने का सपना देख रहे थे. इसी कड़ी में सपा ने गैर यादव पिछड़ी जाति के नेताओं तक पहुंचने के लिए अपने मोहरे चलने शुरू कर दिए.
अखिलेश यादव ने पूर्वांचल के राजभर वोट को साधने के लिए ओम प्रकाश राजभर की SBSP से गंठबंधन किया. पश्चिम में किसान आंदोलन से बीजेपी के खिलाफ उपजी लहर और जाट वोट को साधने के लिए जयंत चौधरी की RLD को साथ लाए. जबकि, कुर्मी वोट की काट के लिए कृष्णा पटेल की अपना दल (कमेरावादी) को कुनबे में शामिल किया. इसके बाद भी अखिलेश यादव नहीं रुके. स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान से लेकर धर्म सिंह सैनी जैसे योगी मंत्रीमंडल में शामिल मंत्रियों को अपने पाले में करने से नहीं चूके. नतीजा आपके सामने हैं.
जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने कंधे से भगवा गमछा उतारा तो लाल टोपी लिए अखिलेश यादव उनके स्वागत में पलक पावड़े बिछाए हुए थे. अखिलेश ने मौर्य का स्वागत करते हुए लिखा कि 'सामाजिक न्याय और समता समानता की लड़ाई लड़ने वाले लोकप्रिय नेता और उनके साथ आने वाले सभी समर्थकों और कार्यकर्ताओं का सपा में स्वागत है. सामाजिक न्याय का इंकलाब होगा, बाइस में बदलाव होगा. अखिलेश को उम्मीद थी कि गैर यादव, पिछड़ी जातियों को साधने की कड़ी स्वामी प्रसाद मौर्य एक प्रमुख कड़ी साबित होंगे. माना यही जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी के एक बड़े ओबीसी नेता हैं. स्वामी प्रसाद का कुशवाहा, मौर्य, शाक्य और सैनी समुदाय पर अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है. पूर्वांचल और अवध के जिलों में इनकी अच्छी आबादी मानी जाती हैं. अखिलेश यादव यहीं फंस गए. उन्हें लगा कि गैर यादव, पिछड़ी जातियों को साधने में मौर्य की अहम भूमिका होगी, लिहाजा अखिलेश ने अपने बगल की कुर्सी स्वामी प्रसाद के लिए रिजर्व कर दी. लेकिन, जब नतीजे सामने आए तो स्वामी प्रसाद मौर्य अखिलेश के लिए पूर्वांचल और अवध में वोट क्या दिलवाते वो अपनी ही सीट फाजिल नगर से हार गए.
यूपी चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की थी कि बीजेपी को सबसे बड़ा घाटा पश्चिमी यूपी में हो सकता है. अखिलेश की जयंत से दोस्ती हुई तो इस बात को और तवज्जो मिली. जाट-मुस्लिम एकता के नाम पर कई कार्यक्रम किए गए. रैलियों में भीड़ दिखी. ये सब देखने से लगा कि सच में पश्चिम यूपी का जाट बीजेपी से नाराज है. लेकिन ये जयंत चौधरी की दिखाई गई पिक्चर साबित हुई, जिस पर अखिलेश ने भरोसा किया. लेकिन नतीजे आए तो सच्चाई कुछ और ही निकली.
जयंत को मिली जीत के पीछे कहा जा रहा है कि अखिलेश का मुसलमान वोटर तो उधर गया लेकिन जयंत के भरोसे एसपी को जिन वोटों की आस थी वो नहीं आया. ये हाल तब हुआ जब इस बार किसान आंदोलन और टिकैत के आंसू जैसे फैक्टर थे. जिस वेस्ट यूपी से एसपी गठबंधन को सबसे ज्यादा उम्मीद थी वहां बीजेपी ने बंपर जीत हासिल की. पश्चिम यूपी की 136 सीटों में से बीजेपी 93 सीट जीत गई. जयंत के प्रदर्शन को क्या कहेंगे जब बीजेपी ने पश्चिमी यूपी के इलाके में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया.
जयंत को मिली जीत के पीछे कहा जा रहा है कि अखिलेश का मुसलमान वोटर तो उधर गया लेकिन जयंत के भरोसे एसपी को जिन वोटों की आस थी वो नहीं आया. ये हाल तब हुआ जब इस बार किसान आंदोलन और टिकैत के आंसू जैसे फैक्टर थे. जिस वेस्ट यूपी से एसपी गठबंधन को सबसे ज्यादा उम्मीद थी वहां बीजेपी ने बंपर जीत हासिल की. पश्चिम यूपी की 136 सीटों में से बीजेपी 93 सीट जीत गई. जयंत के प्रदर्शन को क्या कहेंगे जब बीजेपी ने पश्चिमी यूपी के इलाके में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया.
जयंत चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद धर्म सिंह सैनी ने भी अखिलेश को निराश किया. खुद धर्म सिंह सैनी अपनी सीट नहीं बचा सके. सहारनपुर सीट से सैनी सिर्फ 315 वोट से हारे. कोई ये कह सकता है कि यहां AIMIM को करीब 4 हजार वोट मिले और बीएसपी उम्मीदवार भी 55 हजार से ज्याद वोट ले गया तो सैनी के वोट इन लोगों ने काटे लेकिन फिर सवाल उठेगा कि एक पूर्व मंत्री की ये गत हो गई तो एसपी के संत्रियों को उनसे कितना सपोर्ट मिला होगा. ऐसे भी मौर्य और सैनी पर सिर्फ अपनी सीटें दिलाने की जिम्मेदारी नहीं थी, उनको तो सूबा फतह करना था.
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