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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) से पहले योगी सरकार (Yogi Government) से इस्तीफों की झड़ी लगी है. अब तक 3 मंत्री और 11 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं. इन इस्तीफों में खास बात ये है कि जिन तीन मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है वो सभी ओबीसी समाज से आते हैं. इनमें से स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान पूर्वी यूपी से आते हैं और धर्म सिंह सैनी पश्चिमी यूपी से संबंध रखते हैं. इन सभी के इस्तीफों में एक जैसा पैटर्न इस्तेमाल किया गया है. बीजेपी छोड़ने के कारण भी लगभग एक जैसे गिनाए गए हैं.
सबसे पहले आज ही बीजेपी छोड़ने वाले मंत्री धर्म सिंह सैनी से शुरुआत करते हैं क्योंकि इन्होंने पहले एक वीडियो जारी कर कहा था कि, ‘मैं बीजेपी में ही हूं और कहीं नहीं जा रहा हूं’. क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने के बाद कई मीडिया संस्थानों ने खबर चलाई कि सबसे पहले धर्म सिंह सैनी ही बीजेपी को अलविदा कह सकते हैं क्योंकि वो मौर्य के काफी करीबी हैं. लेकिन उन्होंने वीडियो जारी कर ऐसी खबरों का खंडन किया और आज इस्तीफा सौंप दिया.
जिसके बाद अखिलेश यादव ने बाकी दो मंत्रियों की तरह उनका भी अपनी पार्टी में स्वागत किया. जिसका ऑफिशियल ऐलान 14 जनवरी को हो सकता है.
BSP से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले धर्म सिंह सैनी पश्चिमी यूपी के सहारनपुर जिले से ताल्लुक रखते हैं. सहारनपुर की नकुड़ सीट से फिलहाल विधायक हैं. वो लगातार चार बार विधायकी का चुनाव जीते हैं और दो बार मंत्री रह चुके हैं. साथ ही सहारनपुर के आसपास के जिलों में सैनी समाज में अच्छी पकड़ रखते हैं.
इससे पहले वो मायावती की बहुजन समाज पार्टी का हिस्सा थे, लेकिन 2016 में स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे. धर्म सिंह सैनी बीएसपी में रहते हुए भी नकुड़ विधानसभा से लड़ते रहे और जीतते रहे. ये विधानसभा उस वक्त सरसावा के नाम से जानी जाती थी.
धर्म सिंह सैनी ने अपने त्यागपत्र में दलित और पिछड़ों की बीजेपी सरकार में अनदेखी को कारण बताया है.
लेकिन ये इतना भर नहीं है. क्योंकि जिस नकुड़ विधानसभा से धर्म सिंह सैनी चुनाव जीतते आ रहे हैं, वहां का वोट फैक्टर बहुत कुछ कहता है. इसे ऐसे समझिए-
नकुड़ विधानसभा में कुल करीब साढे तीन लाख मतदाता हैं, जिनमें सबसे ज्यादा मुस्लिम 1 लाख 20 हजार से ज्यादा हैं. दूसरे नंबर पर करीब 50 हजार दलित वोटर हैं, तीसरे नंबर पर करीब 40 हजार गुर्जर मतदाता और चौथे नंबर पर करीब 35 हजार सैनी वोटर हैं.
नकुड़ विधानसभा सीट बीएसपी का गढ़ रही है और धर्म सिंह सैनी जीतते रहे हैं. 2017 में जब वो बीजेपी के टिकट पर जीते तो एसपी-कांग्रेस का गठबंधन था और ये सीट कांग्रेस के हिस्से में आई थी. कांग्रेस की तरफ से इमरान मसूद ने चुनाव लड़ा जिन्हें 90, 318 वोट मिले, जबकि धर्म सिंह सैनी को 94 हजार 357 वोट मिले और बीएसपी नवीन चौधरी को 65 हजार 328 वोट मिले थे.
अब इसमें खेल ये है कि इमरान मसूद 12 जनवरी को समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. सहारनपुर की नकुड़ विधानसभा सीट पर जो वोट इमरान मसूद को मिलते रहे हैं उनमें कांग्रेस से ज्यादा उनकी खुद की हिस्सेदारी है. पिछली बार मुस्लिम वोट में बीएसपी भी सेंधमारी करने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार ऐसा होने की उम्मीद कम है इसीलिए एसपी के सामने वाले को खतरा ज्यादा होगा और धर्म सिंह सैनी पिछले दोनों चुनाव बहुत कम मार्जन से जीते थे.
सहारनपुर मुस्लिम बहुल जिला है और बीएसपी का गढ़ रहा है, पिछले चुनाव में बीजेपी ने अप्रत्याशित तौर पर जीत जरूर हासिल की थी, जब जिले की 7 विधानसभा सीटों में से 4 बीजेपी ने जीत दर्ज की और 2 पर कांग्रेस जीती, इसके अलावा एक सीट समाजवादी पार्टी ने जीती. लेकिन एसपी के लिए हमेशा से ही सहारनपुर सपना रहा है. क्योंकि मुस्लिम वोटों की संख्या अधिक होने के बावजूद दलितों की संख्या के कारण यहां बीएसपी मजबूत स्थिति में रही है.
ऊपर से इमरान मसूद का भी दबदबा कई सीटों पर रहता है. यही वजह है कि नकुड़ विधानसभा पर आज तक कभी समाजवादी पार्टी जीत नहीं पाई है. इसीलिए अब अगर धर्म सिंह सैनी समाजवादी पार्टी में जाते हैं, जिसका 14 जनवरी को औपचारिक हो सकता है तो एसपी के पास इस सीट को जीतने के चांस होंगे और जिले की बाकी सीटों पर भी मजबूती मिलेगी. लेकिन एक समस्या उनके सामने खड़ी हो सकती है कि अगर इमरान मसूद और धर्म सिंह सैनी नकुड़ विधानसभा से ही टिकट मांगने लगे तो.
धर्म सिंह सैनी का आगमन अखिलेश यादव को इसलिए भी खुश करेगा क्योंकि सहारनपुर के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सैनी ठीकठाक संख्या में हैं.
योगी कैबिनेट से दो और मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है, जिनमें से एक हैं स्वामी प्रसाद मौर्या जिनका जाना बीजेपी के लिए खतरा क्यों है?
मौर्य यूपी के कद्दावर नेताओं में से एक हैं. कुशीनगर के पडरौना सीट से वो लगातार तीसरी बार विधायक चुने गए थे. इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर और उसके आसपास के इलाकों में कई सीटों पर स्वामी प्रसाद मौर्य का दबदबा है.
स्वामी प्रसाद मौर्य कुशवाहा समाज से आते हैं या कहें पिछड़ा वर्ग मतलब ओबीसी क्लास. वेस्ट यूपी में कुशवाहा समाज के लोग ज्यादातर अपने नाम में शाक्य लगाते हैं, वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में मौर्य. उत्तर प्रदेश में इटावा, मैनपुरी, कन्नौज इलाके में यादवों के बाद ओबीसी में सबसे ज्यादा मौर्य समाज की आबादी है.
एक और मंत्री दारा सिंह चौहान ने योगी सरकार से 12 जनवरी को इस्तीफा दिया है, ये भी ओबीसी समाज से आते हैं और पूर्वी यूपी में राजनीति करते हैं, इनसे अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने ट्वीट करके अपील भी की थी.
दारा सिंह चौहान ओबीसी की अति पिछड़ी जाति नोनिया (चौहान) समाज से आते हैं. उत्तर प्रदेश में चौहान सामान्य में भी आते हैं लेकिन दारा सिंह ओबीसी वाली चौहान कैटेगरी में हैं. पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर और आजमगढ़ के इलाके में फागू चौहान (जो अभी बिहार में राज्यपाल हैं) और दारा सिंह चौहान नोनिया समाज के दो सबसे बड़े नेता हैं.
सीएसडीएस के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कुम्हार/प्रजापति-चौहान की 3 प्रतिशत हिस्सेदारी है. जो पूर्वांचल में करीब-करीब 100 सीटों पर ठीक-ठाक संख्या में हैं.
दरअसल ओम प्रकाश राजभर को साथ लेकर पूर्वांचल में अखिलेश यादव ने अपने आप को मजबूत करने की कोशिश की है. अब अगर स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान समाजवादी पार्टी में शामिल होते हैं जैसी उम्मीद जताई जा रही है तो समाजवादी पार्टी को बड़ा फायदे की उम्मीद है क्योंकि ये वही समीकरण हैं जिनके साथ 2017 में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई.
स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी तीनों ओबीसी समुदाय से जरूर आते हैं, लेकिन तीनों की जाति अलग-अलग है. इसके अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान पूर्वी यूपी से आते हैं और धर्म सिंह सैनी पश्चिमी यूपी से ताल्लुक रखते हैं. जो बीजेपी को तीन तरफा नहीं चौतरफा नुकसान दे सकता है.
बीजेपी के लिए 11 जनवरी से अब तक का वक्त कुछ अच्छा नहीं रहा है. बीते 48 घंटे में 3 मंत्रियों के साथ 11 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं.
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