देश को रोशन करने वाले सोनभद्र में बीमारी और मौत के अंधेरे में लाखों जिंदगियां
सोनभद्र के लोगों को सालों से न सिर्फ पलायन की मार झेलनी पड़ रही, बल्कि प्रदूषण के कारण उनकी मौतें भी हो रहीं
उत्कर्ष सिंह
उत्तर प्रदेश चुनाव
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जहरीले पानी की वजह से विकलांग हो चुके ग्रामीण रंगलाल
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
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सोनभद्र को देश की ऊर्जा राजधानी कहते हैं. सोनभद्र-सिंगरौली में हर दिन 21,500 मेगावॉट बिजली पैदा होती है, जिसके लिए यहां के पॉवर प्लांट्स में प्रतिदिन औसतन 3 लाख 26 हजार टन कोयला इस्तेमाल होता है. कोयला जलाने से हर रोज 1 लाख टन से ज्यादा फ्लाई ऐश उत्सर्जित होता है. पॉवर प्लांट्स ने इस फ्लाई ऐश के डिस्पोजल के लिए तालाब बनाए हुए हैं, जहां फ्लाई ऐश को पानी के साथ मिलाकर इन पाइप्स के जरिए डिस्पोज किया जाता है. लेकिन ओवरफ्लो और लीक होकर ये सारा फ्लाई ऐश रिहंद बांध में जाता है. रिहंद सोनभद्र के लोगों के लिए पानी का एकमात्र प्राकृतिक स्रोत है और इस फ्लाई ऐश की वजह से न सिर्फ नदी का पानी, बल्कि भूमिगत जल भी दिनों-दिन जहरीला होते जा रहा है. एनजीटी और उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड के तमाम दिशा-निर्देशों और जुर्मानों के बावजूद रिहंद में फ्लाई ऐश गिराने का सिलसिला नहीं थम रहा.
बेलवादह गांव में बना एक ऐश पॉन्ड
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
फ्लाई ऐश रिहंद में जाने के बाद जल को प्रदूषित तो करता ही है लेकिन पाइप्स के जरिए तालाब तक ले जाने में भी घोर लापरवाही बरती जाती है. क्योंकि ये पाइप्स जगह-जगह पर फूटी हुई हैं, जिससे सारा फ्लाई ऐश आस-पास के इलाकों में फैलता जा रहा है और ऐसा सालों से होता आ रहा है. सोनभद्र के पानी में फ्लोराइड, सिलिका, कैडमियम, मर्करी आयरन, नाइट्रेट, निकेल और ऐल्युमिनियम की मात्रा भयावह हो चुकी है. फ्लाई ऐश के आलावा इस इलाके में इंडस्ट्रीज और माइंस की वजह से भीषण वायु प्रदूषण है. स्टोन क्रशर, पॉवर प्लांट्स, कोयला खदानों, ट्रांसपोर्ट की वजह से सोनभद्र की हवा में सल्फर, सिलिका, पारा, कार्बन जैसे तत्व बढ़ रहे हैं. जिससे लोगों को सालों से न सिर्फ पलायन की मार झेलनी पड़ रही है, बल्कि उन्हें सिलिकोसिस, फ्लोरोसिस, टीबी और कैंसर जैसी घातक बीमारियां हो रहीं हैं. इन बीमारियों की वजह से बड़े पैमाने पर मौतें भी हो रही हैं.
सालों से पलायन की मार झेल रहे ग्रामीण
ये (फ्लाई ऐश) तो हमेशा गिरता रहता है, एक-दो दिन बंद करेंगे, फिर फूटते जा रहा है. ऐसा (लीकेज) बहुत जगह पर है, शिकायत हम लोग किससे करने जाएं? सब प्रदूषण फैलाते जा रहे हैं. यहां घर-जमीन था, सब फ्लाई ऐश से भींगने लगा तो ऊपर बना लिए. यहां 200-300 घर थे, पूरे इलाके में घर थे. अगर ऐसा ही रहा तो भरते-भरते ऊपर तक भी राख चढ़ सकती है. क्या करेंगे, वहां से फिर हटना पड़ेगा, फिर दूसरा जगह खोजना पड़ेगा.
कांता प्रसाद (विस्थापित ग्रामीण, बेलवादह, सोनभद्र)
बेलवादह गांव से विस्थापित ग्रामीण कांता प्रसाद
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
हमारी समझ से पाइप से लीकेज कहीं नहीं है, हमारी इंस्पेक्शन में पाइप में लीकेज कहीं सामने नहीं आई है. अनपरा में थोड़ा-बहुत कहीं लीकेज है. वर्तमान में कोई भी ऐश पॉन्ड का पानी रिहंद में नहीं जा रहा है, केवल ओबरा के कुछ केसेज आते हैं. ओबरा के फ्लाई ऐश का जो रिसर्कुलेशन सिस्टम है, वो रेनु में नदी में थोड़ा-बहुत जा रहा था, उसके खिलाफ 1 करोड़ 36 लाख रुपए का पनिशमेंट दिया है उनको. जहां रिसर्कुलेशन सिस्टम सही तरीके से काम नहीं कर रहा है, वहां फ्लाई ऐश का कुछ अंश बहाने पर मजबूर हैं, ये समस्या सिर्फ स्टेट पॉवर प्लांट्स में है.
टी एन सिंह (क्षेत्रीय अधिकारी, पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड, सोनभद्र)
बेलवादह गांव में कई जगहों से हो रहा फ्लाई ऐश का लीकेज
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
इस तरीके के एक-दो नहीं, कई सारे गांव सोनभद्र में मौजूद हैं जो फ्लाई ऐश की वजह से या फिर बढ़ते प्रदूषण की वजह से एक जगह से दूसरी जगह विस्थापित होने को मजबूर हैं. लगातार बढ़ते प्रदूषण की वजह से बीते सालों में लाखों लोग विस्थापित हुए लेकिन वायु प्रदूषण से बचने के लिए हुए विस्थापित लोग अब जहरीले पानी की वजह से मर रहे हैं. बेलवादह से विस्थापित होकर सालों पहले मकरा गांव में जा बसे सोनभद्र जनकधारी समेत मकरा गांव के कई दर्जनों घरों से बीते महीनों में कई अर्थियां उठ चुकी हैं. 2021 मे अगस्त से लेकर नवंबर के बीच अकेले मकरा ग्राम पंचायत में 50 लोगों की मौत का दावा है.
विस्थापित हुए लोग अब जहरीले पानी की वजह से मर रहे
11 नवंबर से 14 नवंबर के बीच में मेरे घर में 4 लोगों की मौत हुई. उसमें मेरी बहू, उनके दो बच्चे और मेरे मंझले लड़के के बच्चे की मौत हुई. जब बुखार का लक्षण दिखाई दिया, तो हम लोग तुरंत हॉस्पिटल लेकर भागे. हॉस्पिटल में सुबह भर्ती करते थे, शाम होते-होते मौत हो जाती थी. जिनको शाम में भर्ती किए, उनकी सुबह होते-होते मौत हो जाती थी. जांच रिपोर्ट में मलेरिया और पीलिया दिखा रहा है. ग्राम पंचायत में लगभग 50-60 लोगों की मौत हुई, दो महीने के भीतर. फिर वो टैंकर से पानी देना शुरु किए, लेकिन वो महीने भर ही टैंकर का पानी दिए. इसके बाद तो हमको उसी हैंडपम्प का पानी पीना पड़ रहा है. अब आयरन हो या कुछ भी हो. हमारे विधायक ने पानी के लिए RO दिया लेकिन यहां से डेढ़ किलोमीटर दूर है, इसलिए हम नहीं जा पाते. ये सब घटना के बाद किया गया, उससे पहले न कोई छिड़काव, न कोई जांच और न कोई देखभाल हुई. अभी बाल्टी में पानी भरकर रखे हैं, घंटे-दो घंटे में वो लाल हो जाता है, लेकिन हम लोग वही इस्तेमाल करते हैं, अब कहां दूसरा पानी लेने जाएं.
जनकधारी (ग्रामीण, खोखरी टोला, मकरा गांव, सोनभद्र)
4 दिनों के भीतर अपने परिवार के 4 सदस्यों को खोने वाले मकरा गांव के ग्रामीण जनकधारी
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
जनकधारी की बड़ी बहू बताती हैं कि ये समस्या कोई नई नहीं है. 5 साल पहले उनकी 4 छोटी-छोटी बच्चियों की मौत हुई थी. डॉक्टर ने पीलिया, बुखार और खून की कमी से मौत होना बताया था. डॉक्टर ने बताया कि पानी की वजह से बीमारी फैली है. अब 7 में से 3 लड़कियां बची हैं. स्थानीय विधायक और उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण राज्य मंत्री संजीव गौड़ ने भी माना था कि मकरा ग्राम पंचायत में गंभीर बीमारी से जो मौते हुई हैं, इसका मुख्य कारण वहां का पानी था. मंत्री के मुताबिक शिक्षा की कमी के चलते लोग जान नहीं पाते हैं और जैसे-तैसे जहां पानी मिलता है, उसका उपयोग कर लेते हैं जबकि जलाशय और नदी का पानी प्रदूषित है. इस कारण से गंभीर बीमारी फैल रहा है. मंत्री जी ने इलाके के लोगों के लिए पानी के टैंकर की व्यवस्था की लेकिन वो भी कुछ दिन ही चल पाया. गांव में RO के पानी की व्यवस्था की लेकिन ग्रामीणों के मुताबिक उसका लाभ भी लोगों को नहीं मिल पा रहा. हालांकि प्रशासन ने मकरा गांव में महज 16 मौतों की बात कबूली थी.
मकरा गांव का दूषित पानी
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
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मकरा की घटना मेरे यहां जॉइन करने से पहले की है, वास्तविक आंकड़ा बताना तो अभी मुश्किल है, लेकिन उसमें जांच हुई थी और जल प्रदूषण ही कारण निकलकर आया था. संभवत वहां के पानी में सोडियम और आयरन ज्यादा मात्रा में पाया गया था, जिसके कारण मौते हुई थीं. बिल्कुल उसका (फ्लाई ऐश) का कुछ न कुछ तो रोल है, क्योंकि आखिरकार सभी चीजें जमीन में एब्जार्व होकर भूमिगत जल में ही जाएंगी. यहां की जो भौगोलिक स्थिति है, उसके कारण यहां के पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है, जिसकी वजह से यहां लोगों को फ्लोरोसिस बीमारी काफी ज्यादा होती है. यहां पानी में आयरन, नाइट्रोजन ज्यादा है, तो उसकी कारण भी काफी बीमारियां होती हैं.
रमेश ठाकुर (चीफ मेडिकल ऑफिसर, सोनभद्र)
मकरा गांव स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
मकरा गांव में बने प्राथमिक स्वास्थय केंद्र का हाल भी खस्ता है. इस घटना के बाद वहां थोड़ी तत्परता दिखाई गई लेकिन वो भी कुछ दिन ही रह पाई. स्वास्थ्य केंदर के फार्मासिस्ट प्रवीण कुमार बताते हैं, "पानी, खुजली वाले यही सब परेशानी है. मलेरिया, खांसी-बुखार वाले मरीज भी आ रहे हैं और कुछ टीबी वाले भी आते हैं तो उनको रेफर कर दिया जाता है. वायु प्रदूषण की वजह से खांसी होती है और खांसी में खून आ जाता है.
अधिकांश थर्मल पॉवर प्लांट्स के ऐश पॉन्ड्स भर चुके हैं और उनसे ओवर फ्लो होकर फ्लाई ऐश, जिसमें तमाम जहरीले तत्व होते हैं, रिहंद बांध में जा रहा है. एनजीटी ने प्रदूषण से प्रभावित लोगों के लिए जो भी ऑर्डर दिए, उसका स्ट्रिक्ट्ली कम्पलाएंस जीरो है. जैसे यहां एनजीटी ने कहा था कि यहां ट्रीटेट पानी दिया जाएगा लेकिन कॉर्पोरेट्स के दबाव में उसको RO बूथ में बदल दिया गया. एक RO बूथ में एक लीटर पानी के शोधन में कई लीटर पानी व्यर्थ हो जाता है. वो स्वयं में पेयजल के प्रदूषण का कारण बन रहा है. एनजीटी ने कहा था कि यहां प्रदूषित तत्वों से बीमार होने वाले लोगों की जांच के लिए एक टॉक्सिको लॉजिकल लैब और एक सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल होना चाहिए. लेकिन 7-8 साल बीत जाने के बाद भी आज तक इस दिशा में कोई कवायद नहीं की गई है. जब तक समय पर लोगों की जांच नहीं होगी, उनके रोग का अध्ययन नहीं हो पाएगा, तो उनका उपचार होना ही असंभव है.
अंकुश कुमार (RTI एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता, सोनभद्र)
सोनभद्र का रिहंद बांध
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
भूजल के दूषित होने की वजह से बड़ी तादाद में लोग हो रहे विकलांग
सोनभद्र का भूमिगत जल कितना जहरीला है, इसकी बानगी देखने गोविंदपुर और कुसमहा गांव चलिए. यहां अकेले कुसमहा गांव में सैकड़ों लोग विकलांगता पेंशन ले रहे हैं. कुसमहा के बुजुर्ग ग्रामीण रंगलाल रोते हुए कहते हैं, "30-40 साल से दिक्कत है. पहले चलते थे, लेकिन अब ज्यादा तंग कर दिया है. घुटने के नीचे से दिक्कत है. वो (डॉक्टर) तो बहुत बैठे हैं, वो क्या करेंगे. बना-बना कर ले जाते हैं, बस वही धंधा है. कुछ मिलता नहीं. अब तो खाना भी नहीं खा पाते हैं. कोई बना कर दे देगा तो खा लेंगे नहीं तो नहीं...". बगल में ही बैठी बुजुर्ग महिला मोतीलाल कहती हैं कि उनके कमर में दर्द रहता है. पानी ने उनको कंधे से लेकर नीचे तक पूरा मोड़ दिया है. जब वो दवा लेने गए तो कोई कुछ नहीं बता पाया और कोई दवा काम नहीं की. दूषित पानी का शिकार सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं बल्कि नौजवान और बच्चे भी प्रभावित हैं.
अपनी तकलीफ बताते हुए रो पड़े कुसमहां गांव के बुजुर्ग रंगलाल
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
कमर के नीचे पैर में दिक्कत है. 15 साल पहले से दिक्कत है. सब वही बताए कि पानी में फ्लोराइड की दिक्कत है. उतना चल नहीं पाते हैं, चलने में दर्द करने लगता है. काम करने में घुटने में काफी दिक्कत होती है. मनरेगा में मजदूरी करते हैं.
अखिलेश कुमार (ग्रामीण, कुसमहा गांव, सोनभद्र)
हमने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन लगाई. उस इलाके में पानी के इकलौते स्रोत रिहंद बांध पर लाखों लोग आश्रित हैं, लेकिन वो सिकुड़ता जा रहा है क्योंकि हर इंडस्ट्री फ्लाई ऐश और इंडस्ट्रियल सीवेज उसी में डाल रही है. यानी जिस फ्लाई ऐश का 100 फीसदी यूटिलाइजेशन होना चाहिए, वो नहीं हो रहा है. कोर्ट ने ये भी कर दिया कि Polluter Pays Principle के सिद्धांत को लागू कर प्रदूषण फैलाने वालों से पैसे लिए जाएं, लेकिन जिनकी जिम्मेदारी है कि आम आदमी को शुद्ध जीने लायक माहौल मिले, वो उनकी तरफ से बहुत सारी दिक्कत हो रही है, जिसकी वजह से जनता मर रही है.
लाठी के सहारे चलते गोविंदपुर गांव के नौजवान मनोज कुमार
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
लाठी के सहारे चलते गोविंदपुर गांव के नौजवान मनोज कुमार कहते हैं कि पैदा होने के 9 महीने बाद ही उनका पैर खराब हो गया था, ये कोई जन्मजात बीमारी नहीं थी. डॉक्टर ने उनकी बहुत चेकिंग की लेकिन उनको कोई दवा नहीं सूट की. इसी गांव में एक छोटा सा बच्चा लंगड़ा कर चल रहा था, पूछने पर उसकी दादी रजवंती देवी ने बताया कि जब उनका पोता 4 साल का था, तब पैर खराब हुआ था. उन्होंने कहा कि पानी की वजह से गांव में सबका पैर दर्द कर रहा है. लोग चल नहीं पा रहे हैं, लोगों की कमर झुक जा रही है. सबको यही दिक्कत है, इसमें बच्चे, जवान और बूढ़े सब हैं और ये सब पानी की वजह से हो रहा है.
गोविंदपुर गांव में पैरों से विकलांग बच्चा और उसकी दादी
फोटो- क्विंट हिंदी/उत्कर्ष सिंह
पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी टी एन सिंह का कहना है कि प्रदूषण का बड़ा कारण कोयले और फ्लाई ऐश का रोड ट्रांसपोर्टेशन है, उनको ढक कर ले जाना होता है लेकिन वो ठीक से नहीं ढकते हैं. हम उन पर नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं. ये अंतहीन प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया में प्रदूषण होगा. किसी चीज तो रोकने की एक सीमा है. विकास होगा, तो पॉल्युशन बढ़ेगा, पॉल्युशन बढ़ेगा तो बीमारियां भी होंगी.