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उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए फर्स्ट फेज में 11 जिलों की 58 सीटों पर वोटिंग हुई. कुल 623 उम्मीदवार मैदान में थे. 10766 पोलिंग सेंटर 25849 पोलिंग स्टेशन बनाए गए. वोट प्रतिशत की बात करें तो 60% वोट पड़े. शामली में सबसे ज्यादा 69.42% और गाजियाबाद में सबसे कम 52.43% वोट पड़े. साल 2017 में इन 58 सीटों पर कुल 21077719 वोटर थे और 13309279 लोगों ने वोट दिए थे. यानी पिछली विधानसभा चुनाव में 63.14% वोट पड़े थे. इस बार वोटर इस आंकड़े को नहीं छू पाए.
राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह बीजेपी के टिकट पर नोएडा से उम्मीदवार हैं. 2012 में 49%, 2017 में 48% और 2022 में 50.10% वोट पड़े.
बीजेपी के टिकट पर बेबी रानी मौर्य आगरा ग्रामीण से उम्मीदवार हैं. 2012 में 58%, 2017 में 63% और 2022 में 62.00% वोट पड़े.
एसपी के नाहिद हसन कैराना से उम्मीदवार हैं. 2012 में 66%, 2017 में 69% और 2022 में 75.12% वोट पड़े.
मंत्री अतुल गर्ग बीजेपी के टिकट से गाजियाबाद से मैदान में हैं. 2012 में 54%, 2017 में 53% और 2022 में 50.40% वोट डाले गए.
सुरेश कुमार राणा मंत्री हैं. थाना भवन से उम्मीदवार हैं. साल 2012 में 61%, 2017 में 68% और 2022 में 65.63% वोट पड़े.
मंत्री श्रीकांत शर्मा मथुरा से उम्मीदवार हैं. साल 2012 में 56%, 2017 में 59% और 57.33% वोट पड़े.
संदीप कुमार सिंह भी मंत्री हैं. अतरौली से उम्मीदवार हैं. 2012 में 62%, 2017 में 60% और 2022 में 57.20% वोट डाले गए.
अनिल कुमार शिकारपुर शिकारपुर से उम्मीदवार हैं. 2012 में 62%, 2017 में 64% और 2022 में 60.88% वोट पड़े.
कपिल देव अग्रवाल मुजफ्फरनगर से उम्मीदवार हैं. साल 2012 में 56%, 2017 में 64% और साल 2022 में 61.30% पड़े.
दिनेश खटीक हस्तिनापुर से मैदान में हैं. साल 2012 में 61%, 2017 में 67% और 2022 में 60% वोट डाले गए.
जीएस धर्मेश आगरा कैंट से उम्मीदवार हैं. 2012 में 54%, 2017 में 58% और 2022 में 56.00% वोट पड़े.
लक्ष्मी नारायण छाता से उम्मीदवार हैं. 2012 में 69%, 2017 में 66% और 2022 में 64.55% वोट डाले गए.
फर्स्ट फेज के चुनाव में कैराना सबसे ज्यादा चर्चित सीटों में से एक है. कुल 58 सीटों में से सबसे ज्यादा 75.12% वोटिंग यहीं पर हुई है. साल 2012 में 66% और 2017 में 69% वोटिंग हुई.
एसपी के नाहिद हसन कैराना से उम्मीदवार हैं. उनके सामने बीजेपी की मृगांका सिंह हैं. चुनाव प्रचार में कैराना पलायन का मुद्दा खूब उठाया गया. नाहिद हसन को हिरासत में ले लिया गया. उनकी बहन ने ही पूरे चुनाव में प्रचार किया. यहां के जातीय समीकरण की बात करें तो मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है. पिछड़ा वर्ग के वोटर भी हैं.
साहिबाबाद में सबसे कम 45% वोट डाले गए. मुजफ्फरनगर में 61.30%, नोएडा में 50.10% और गाजियाबाद में 50.40% वोट पड़े. ये वोटिंग प्रतिशत काफी कम है. नोएडा और गाजियाबाद के लोगों का वोट के लिए न निकलना ये मैसेज देता है कि चुनाव आयोग के जागरूकता अभियान का उन पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा.
साल 2012 में 58 सीटों में से BSP ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की, जिसमें आगरा से 6, गाजियाबाद से 4, मुजफ्फरनगर से 3 सीटों पर जीत हासिल की. BJP ने 10 सीट जीत सकी, जिसमें मेरठ से 4, आगरा से 2 और मुजफ्फरनगर से 2 सीट जीती. 2012 में कैराना सीट बीजेपी जीत गई थी. कांग्रेस ने 58 में से 5 सीटों को जीता था, जिसके बुलंदशहर से 2, मथुरा से 1 और गाजियाबाद - मुजफ्फरनगर से 1-1 सीट पर जीत मिली.
RLD की बात करें तो कुल 9 सीट पर जीत मिली, जिसमें अलीगढ़ की 3, मथुरा की 3 और गाजियाबाद, बागपत और मुजफ्फरनगर में 1-1 सीट पर जीत हासिल की. SP की सरकार बनी थी, लेकिन यहां से सिर्फ 14 सीट जीत सकी, जिसमें अलीगढ़ से 4, मेरठ से 3, मुजफ्फरनगर से 2 और आगरा की एक सीट पर जीत मिली.
साल 2017 में 58 सीटों की बात करें तो RLD सिर्फ 1 सीट बागपत की छपरौली जीत सकी. सीट पर 62.6% वोट पड़े थे. SP कैराना और मेरठ से 2 सीट जीत सकी थी. तब कैराना में 69.2% और मेरठ में 64.5% वोट पड़े थे. BSP ने गाजियाबाद की ढोलना और मथुरा की मांट सीट पर जीत दर्ज की थी. BJP ने कुल 53 सीट जीत ली थी. इनमें से आगरा से 9, मथुरा से 4, अलीगढ़ से 7, बुलंदशहर से 7, मुजफ्फरनगर से 8 और मेरठ से 6 सीटों पर जीत हासिल की.
अबकी बार के चुनाव में सबसे ज्यादा वर्चुअल रैली हुई. पार्टियों सहित बड़े नेता सोशल मीडिया पर एक्टिव दिखे. वोटर्स में डिबेट होती रही. लेकिन जब मतदान का वक्त आया तो हम वहीं पर दिखे, जहां 5 साल पहले थे. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों जैसे- मुजफ्फरनगर, बागपत, शामली में वोट प्रतिशत बढ़ा है. शायद आंदोलन का असर दिखा और किसानों ने भारी संख्या में निकलकर मतदान किया. वहीं शहरी क्षेत्रों में मतदान कम हुआ. शायद यहां रहने वाले वोटर 5 साल में योगी सरकार से बहुत ज्यादा प्रभावित होते नहीं दिखे. ये बीजेपी के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि शहरी वोटर बीजेपी का माना जाता है, लेकिन जब वोट देने की बात आई तो वे बाहर नहीं निकले.
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