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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Elections 2022) का चौथा चरण इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इस चरण के बाद विधानसभा की 403 सीटों में से 231 पर चुनाव हो जाएगा. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस दौर में वो सारे मुद्दे देखने को मिल रहे हैं जो हो चुके या होने वाले चरणों में उठे थे या उठने वाले हैं. चौथे चरण के अहम होने की अनन्य वजह यह भी है कि बीजेपी का परंपरागत गढ़ रहा अवध क्षेत्र का निर्णय भी इसी चरण में आने वाला है.
लखीमपुर खीरी जिले की सभी 8 सीटें क्या एक बार फिर मतदाता बीजेपी को सौंपेंगे या फिर बीजेपी को मतदाता सबक सिखाएंगे यह भी चौथा चरण ही बताएगा. ब्राह्मणों का रुख भी स्पष्ट होगा और यह स्पष्ट हो जाएगा कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी की कितनी पकड़ इस इलाके में रह गयी है. आंदोलनकारी किसानों पर गाड़ी चलाकर मौत का खेल दिखाने के आरोपी अभियुक्त मंत्री पुत्र आशीष मिश्र की जेल से रिहाई पर स्थानीय जनता की प्रतिक्रिया भी मतदान से पता चलेगा. लखीमपुर खीरी में दलित मतदाताओं की भी बड़ी तादाद है. उनके रुख पर भी नजर रहेगी और स्पष्ट होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ जाने का कितना असर पड़ा है.
पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी लगातार बीजेपी के खिलाफ मुखर रहे हैं. बीजेपी में उन्हें दरकिनार कर दिया गया. इसका असर विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है क्योंकि वरुण गांधी किसान आंदोलन के साथ खड़े दिखे हैं और उन्होंने किसानों के हक में लगातार आवाज बुलंद की है. अगर वरुण फैक्टर का करता है और किसान सत्ता विरोधी रुख अपनाते हैं, जिसके आसार दिख रहे हैं तो बीजेपी को इलाके में भारी नुकसान होने की आशंका है.
अजय मिश्रा टेनी समेत जिन चार केंद्रीय मंत्रियों के संसदीय क्षेत्र वाले चौथे चरण में जिन 60 विधानसभा की सीटों पर मतदान होने जा रहा है, उनमें रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भी हैं. राजनाथ सिंह लखनऊ से सांसद हैं. लखनऊ राजनीतिक रूप से बहुत सक्रिय रहा है. यहां बेरोजगारों ने लाठियां खाई हैं तो यहीं शिखा पॉल ने पानी की टंकी पर चढ़कर लंबित भर्ती में आरक्षण सुनिश्चित करने की लड़ाई लड़ी है. राजनाथ सिंह की रैलियों में ‘नौकरी दो’ के लग रहे नारे की असली वजह भी राजधानी लखनऊ में हुई बेरोजगारों की लड़ाई है.
कोरोना के दौर में सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ क्षेत्र भी राजधानी लखनऊ ही था जहां ऑक्सीजन की कमी से लगातार मौतें हुई थीं. सिलेंडर, रेमडिसीविर और अस्पतालों में बेड के लिए लोग तरस गये थे. मोहनलाल गंज से सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे कौशल किशोर ने कोरोना काल में चिट्ठी लिखकर योगी सरकार की अव्यवस्था की पोल खोली थी. जाहिर है इन इलाकों में कोरोना के दौर की पीड़ा को लोग भुला नहीं सके हैं और इसका असर मतदाताओं के रुख पर पड़ता दिखेगा.
एक और कद्दावर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की भी चर्चा जरूरी है जो अमेठी से सांसद हैं लेकिन अब यहां ‘समझा तुलसी निकली बबूल, स्मृति ईरानी भारी भूल’ जैसे नारे भी लग रहे हैं. रायबरेली में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय संघर्ष में दिखता है, जहां बीएसपी भी अपनी मौजूदगी दिखा रही है. रायबरेली की 6 सीटों में से 3 बीजेपी के पास है, दो कांग्रेस के पास और एक सपा के पास है. मगर, इस बार बदली हुई राजनीतिक और सामाजिक परिस्थिति को देखते हुए बीजेपी को नुकसान हो सकता है.
उन्नाव जिले में बीजेपी ने 6 में से 5 सीटें जीती थीं और एक पर बीएसपी ने जीत हासिल की थी. इस बार उन्नाव रेप केस में पीड़िता की मां को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है. हालांकि, उन्नाव में ही एक और दलित लड़की के साथ बलात्कार और हत्या का मामला सामने आया है और इसमें समाजवादी पार्टी के पूर्व मंत्री का नाम आया है. ऐसे में इस बात पर दुनिया की नजर रहेगी कि बीजेपी विधायक सेंगर की कारगुजारियो का कितना खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है. समाजवादी के लिए भी इसी नजरिए से चीजें देखी जा रही हैं.
चौथे चरण में बेसहारा (आवारा नहीं) पशुओं के कारण हो रही परेशानी का मुद्दा चरम पर है. इस वजह से लगातार इलाके में लोगों को जान गंवानी पड़ी है. फसलों को नुकसान के कारण किसान लगातार परेशान रहे हैं. यह ऐसा मुद्दा है जिसे विपक्षी दलों ने कायदे से अगर उठाया होता तो इसका सीधा फायदा वे लूट ले जा सकते थे. मगर, जनता ने खुद यह मुद्दा उठा लिया है और वे खुलकर इस मुद्दे पर डबल इंजन की सरकार को कोस रहे हैं.
चौथे चरण में 14 दलित सीटें हैं और ज्यादातर बीजेपी के पास है. ये दलित सीटें इस बार भी महत्वपूर्ण हैं. बीजेपी की पूरी कोशिश इन सीटो पर दोबारा कब्जा करने की है. मगर, दलितों के रुख में बदलाव आया है. मगर, इस बदलाव से कितनी सीटों पर असर पड़ेगा इसका आकलन तो मतदान के बाद ही हो सकेगा.
बीजेपी अगर लगातार ‘आतंकवाद’ का मुद्दा उठाने की कोशिश में जुटी है तो इसकी वजह यही है कि मतदाताओं का ध्यान उन मुद्दों से हटाया जाए जिससे बीजेपी को नुकसान हो सकता है. डबल इंजन की सरकार में विकास, मजबूत कानून-व्यवस्था और लाभार्थी ऐसे मुद्दे हैं जिनसे बीजेपी को उम्मीद है. अब बीजेपी आतंकवाद बनाम राष्ट्रवाद का मुद्दा सामने लाकर अपने घटते जनाधार को बचाने की कोशिश में जुटी है. वह दलितों को भी साधने की कोशिश कर रही है.
मगर, एक बात तय है कि 60 सीटों में गठबंधन समेत 52 सीटे जीतने वाली बीजेपी के लिए अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना मुश्किल है. अगर नुकसान बड़ा हुआ तो समझिए कि बीजेपी इसकी भरपाई शायद ही आगे कर सके. इसलिए चौथा चरण बीजेपी के लिए ‘करो या मरो’ वाली स्थिति लेकर दरपेश है वहीं इसी स्थिति के साथ विपक्ष और खासकर समाजवादी पार्टी भी खड़ी है.
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