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उत्तराखंड विधानसभा की 70 सीटों के लिए मतदान हुए. 632 उम्मीदवारों के लिए 60% वोट पड़े. साल 2017 में 64.8% और साल 2012 में 66.6% वोट पड़े थे. पिछले 15 साल में अबकी बार सबसे कम वोट पड़े हैं. हरिद्वार में सबसे ज्यादा 68.37% वोट पड़े, इसके बाद उधम सिंह नगर में 65.13% और उत्तरकाशी में 65.55% वोट पड़े. अल्मोड़ा में सबसे कम 50.65% वोट पड़े. समझते हैं कि वोटों के प्रतिशत क्या कहानी बयां कर रहे हैं.
उत्तराखंड के कुमाऊं में 6 जिलों नैनीताल में 63%, अल्मोड़ा में 50% पिथौरागढ़ में 57%, उधम सिंह नगर में 65%, बागेश्वर में 57% और चंपावत में 56% वोट पड़े. वहीं गढ़वाल के चमोली में 59%, उत्तरकाशी में 65%, देहरादून में 52%, पौड़ी गढ़वाल में 51%, टिहरी गढ़वाल में 52%, हरिद्वार में 67% और रुद्रप्रयाग में 60% वोट पड़े. दोनों क्षेत्रों में औसत 58% वोट पड़े.
हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा 68% वोट पड़े हैं. पूरे उत्तराखंड में सबसे ज्यादा मुस्लिम यहीं पर रहते हैं. यहीं पर धर्म संसद हुई थी. यहां कुल 11 विधानसभा सीटें हैं. ऐसे में यहां इतनी भारी संख्या में मतदान होने के पीछे शायद एक बड़ी वजह धर्म संसद रहा हो. क्योंकि धर्म संसद में हिंदू राष्ट्र बनाने जैसे भड़काऊ बयान दिए गए थे, जिसके वीडियो पूरे चुनाव भर खूब वायरल हुए.
प्रदेश के पूर्व सीएम हरीश रावत नैनीताल के लालकुआं से चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट से लगता हुआ उधम सिंह नगर भी है, जहां की कुछ सीटों पर हरीश रावत का असर है. ऐसे में नैनीताल और उधम सिंह नगर में वोटिंग प्रतिशत को देखें तो दोनों जगहों पर 63% और 65% मतदान हुआ. ऐसे में इन जगहों पर ज्यादा मतदान होना बीजेपी के खिलाफ भी जा सकता है, क्योंकि प्रदेश में हर बार सरकार बदलती है. यानी वोट सत्ता के खिलाफ पड़ने का भी पैटर्न रहा है.
2012 में कुमाऊं में 66.72% और गढ़वाल में 66.59% वोट पड़े. तब कांग्रेस की सरकार बनी थी. 2017 में कुमाऊं 65.4% और गढ़वाल में 64.44% वोट पड़े. तब बीजेपी की सरकार बनी थी. अबकी बार कुमाऊं और गढ़वाल में औसत 58% वोट ही पड़े हैं. यानी दोनों बार की तुलना में कम वोट पड़े हैं.
उत्तराखंड के कुमाऊं में कांग्रेस ज्यादा मजबूत रही है. साल 2012 से लेकर 2019 तक के आंकड़ों को देखें तो पता लगता है कि कांग्रेस सत्ता में आई हो या नहीं, लेकिन कुमाऊं सीट से हर बार 34% से ज्यादा वोट ही मिले हैं. प्रदेश में कांग्रेस का फोकस अपर कास्ट में कम ओबीसी, मुस्लिम और दलित में ज्यादा रहा है. आम आदमी पार्टी कुमाऊं में ज्यादा एक्टिव है और कुछ हद तक कांग्रेस के वोट बैंक पर ही फोकस है. बीजेपी को यहीं पर फायदा मिल जाता है, क्योंकि उत्तराखंड में बीजेपी हमेशा अपर कास्ट को साधती रही है.
2012 में कुमाऊं में कांग्रेस को 13(34.4%), बीजेपी 15(34.7%), बीएसपी 0(13.6%) और अन्य को 1(17%) सीट मिली.
2014 में कुमाऊं में कांग्रेस को 2(34.5%), बीजेपी 27(56.7%), बीएसपी 0(4.1%), आप 0(1.2%) और अन्य 1(2.7%) सीट मिली.
2017 में कुमाऊं में कांग्रेस को 5(36.1%), बीजेपी 23(46.7%), बीएसपी 0(7.2%) और अन्य 1 (10%) सीट मिली.
2019 में कुमाऊं में कांग्रेस 0 (33.5%), बीजेपी 29 (62%), बीएसपी 0(2%) और अन्य 0 (1.6%) सीट मिली.
उत्तराखंड के चुनाव में हर बार अन्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. साल 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में अन्य के खाते 17% और 10% वोट मिले. यही वोटर सरकार बनवाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है. अबकी बार भी कांग्रेस और बीजेपी के अलावा आम आदमी पार्टी के अलावा कई छोड़े या निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं. ये हर बार की तरह इस बार भी सरकार गिराने या बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
गढ़वाल में 7 जिलों की 41 सीट आती है. इसमें चमोली, देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल, टेढ़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी शामिल है. कुमाऊं की तुलना में बीजेपी गढ़वाल में ज्यादा मजबूत है. उत्तराखंड के जितने भी धार्मिक स्थल है वह इसी हिस्से में आते हैं. वहीं गढ़वाल में मुस्लिम वोटर भी एक बड़ा फैक्टर है. यहां के हरिद्वार में मुस्लिम सबसे ज्यादा 34% हैं. कुमाऊं में यहां की तुलना में कम हैं. अबकी बार धर्म संसद की वजह से हरिद्वार में मामला गर्म था, उसका रिफ्लेक्शन वोटिंग प्रतिशत में भी दिख रहा है.
कुमाऊं की तुलना में कांग्रेस गढ़वाल में भले ही कमजोर हो, लेकिन गढ़वाल में जो कांग्रेस को वोटर है वह कम ही छिटकता है. इसे साल 2014 और 2019 के नतीजों से समझते हैं. 2014 में कांग्रेस यहां से 5 सीट और 32% वोट लिए. साल 2019 में भी 5 सीट और 30% वोट लिए. दोनों बार उन्हीं सीटों पर कांग्रेस जीती. हालांकि विधानसभा चुनावों में ये पैटर्न नहीं दिखा, लेकिन वोट प्रतिशत 30 से 33% के बीच रहा है.
2012 में गढ़वाल में कांग्रेस 19 (33.3%), बीजेपी 16 (32%), बीएसपी 3 (11%) और अन्य की 3 (23%) सीटों पर जीत.
2014 में गढ़वाल में कांग्रेस 5 (32.8%), बीजेपी 36 (54.7%), बीएसपी 0 (5.2%), आप 0 (3.6%) सीट पर रही.
2017 में गढ़वाल में कांग्रेस 6 (31.6%), बीजेपी 34 (46.4%), बीएसपी 0 (6.8%) और अन्य को 1 (15%) सीट मिली.
2019 में गढ़वाल में कांग्रेस 5 (30.4%), बीजेपी 36 (60%), बीएसपी 0 (6.4%) और आप को 0 (2.6%) सीट मिली.
खटीमा (उधम सिंह नगर)- यहां से सीएम पुष्कर सिंह धामी उम्मीदवार हैं. पिछली बार 75.3% वोट पड़े, लेकिन अबकी बार 67.00 पर ही मतदान खत्म हो गया.
लालकुआं (नैनीताल)- ये पूर्व सीएम हरीश रावत की सीट है. बीजेपी के मोहन बिष्ट चुनौती दे रहे हैं. पिछली बार 71.3% वोट पड़ा, लेकिन इस बार सिर्फ 67.05%.
हरिद्वार से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक मदन कौशिक मैदान में हैं. उन्होंने साल 2017 में हरीश रावत को हराया था. पिछली बार यहां 64.8% और अबकी बार 59.76% वोट पड़े.
श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल है. इनका मुकाबला मौजूदा मंत्री धन सिंह रावत से है. पिछली बार 56.5% और अबकी बार भी 56.85 वोट पड़े.
चौबट्टाखाल (पौड़ी गढ़वाल) से बीजेपी के दिग्गज नेता और मौजूदा मंत्री सतपाल महाराज हैं. यहां 2017 में 46% और अबकी बार 43.49% वोट पड़े.
गंगोत्री (उत्तरकाशी) से आप के सीएम उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल लड़ रहे हैं. बीजेपी ने सुरेश चौहान को उतारा है. पिछली बार यहां 67.0% और अबकी बार 64.69% वोट पड़े.
उत्तराखंड बनने के बाद साल 2002 में 54% वोट पड़े और कांग्रेस की सरकार बनी, 2007 में 69% वोट पड़े और बीजेपी आई, 2012 में 66% वोट पर कांग्रेस और 2017 में 64% वोट पर बीजेपी आई. अब साल 2022 में 60% वोट पड़े हैं. वोटिंग प्रतिशत कम है, लेकिन पांच जिलों हरिद्वार, नैनीताल, रुद्रप्रयाग, उधम सिंह नगर और उत्तरकाशी में 60 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग हुई है. इसमें से नैनीताल, हरिद्वार, उधम सिंह जैसे शहरी इलाकों में 60 से 65 प्रतिशत की वोटिंग हुई. उत्तराखंड में हर बार सत्ता बदली है. प्रदेश के लोगों ने हर बार सरकार बदलने के लिए वोट किया है, ऐसे में अगर इन बढ़े वोट प्रतिशत में एंटी इनकम्बेंसी का असर रहा तो बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है.
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