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उत्तराखंड कांग्रेस की लड़ाई और आधी आबादी...BJP की रिकॉर्डतोड़ जीत के 6 बड़े कारण

एग्जिट पोल ने भी बीजेपी को बहुमत से दूर ही रखा था, पर बीजेपी ने इन कयासों को झुठलाते हुए सत्ता पर वापसी कर ही ली.

राजकुमार खैमरिया
उत्तराखंड चुनाव
Updated:
<div class="paragraphs"><p>उत्तराखंड कांग्रेस की लड़ाई और आधी आबादी...BJP की रिकॉर्डतोड़ जीत के 6 बड़े कारण</p></div>
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उत्तराखंड कांग्रेस की लड़ाई और आधी आबादी...BJP की रिकॉर्डतोड़ जीत के 6 बड़े कारण

(फोटो- क्विंट  हिन्दी)

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उत्तराखंड (Uttarakhand) एक ऐसा राज्य जिसके बनने के बाद से यहां पर 4 विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन कभी भी एक दल दोबारा सत्ता पाने का चमत्कार नहीं कर सका. इस बार बीजेपी ने राज्य के इस रिकॉर्ड को तोड़ दिया है और लगातार दूसरे कार्यकाल में वह राज्य की सत्ता पर शासन करने जा रही है. चुनाव से पहले बड़े विशेषज्ञ और एक्सपर्ट बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस को वजन दे रहे थे, वही एग्जिट पोल ने भी बीजेपी को बहुमत के आंकड़े से दूर ही रखा था, पर बीजेपी खेमे ने इन सभी कयासों को झुठलाते हुए सत्ता पर आसान वापसी कर ली.

उत्तराखंड में बीजेपी की इस बड़ी सफलता के पीछे कई स्थानीय और राष्ट्रीय कारणों का असर साफ नजर आता है. पार्टी के बेहतरीन प्रदर्शन के कारणों का जब हमने समग्र विश्लेषण किया तो यह 6 बड़े कारण हमें नजर आते हैं, जिन्होंने इसे जीत हासिल करने में मदद की है.

काम किए और उनका जमकर प्रचार भी किया

भले ही यह कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में बीजेपी को मोदी लहर का फायदा मिला है, पर इस जीत में उत्तराखंड राज्य की सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों का भी काफी योगदान रहा. बीजेपी के 5 साल के दौरान इस पहाड़ी राज्य में जमकर विकास कार्य हुए. नेपाल और चीन की सीमा तक शानदार सड़कें बनवाई गईं. ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन का निर्माण मंजूर हुआ. चार धाम पर विकास की गंगा बहाई गई और इसे देश से जोड़ने वाले हाइवे को फोरलेन किया गया. केंद्र की ओर से चलाई गई आवास, आयुष्मान कार्ड, उज्जवला योजना, शौचालय, फ्री राशन जैसी योजनाओं ने भी बीजेपी से उस वोटर वर्ग को जोड़ा जो पहले इस पार्टी से जुड़ा नहीं था. जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा था उस दौरान बीजेपी ने घर-घर राशन पहुंचाने का जिम्मा लिया, जिससे बीजेपी का एक अलग ही वोट बैंक उससे जुड़ा.

जो लोग उत्तराखंड की पॉलिटिक्स को लंबे समय से फॉलो कर रहे हैं, उन्हें पता है कि उत्तराखंड वृद्धावस्था पेंशन योजना, फ्री लैपटॉप योजना, गौरा देवी कन्या धन योजना, अटल आयुष्मान योजना, विधवा पेंशन योजना, उत्तराखंड 1 रू पानी कनेक्शन योजना, मुख्यमंत्री सोलर स्वरोजगार योजना, विवाह-शादी अनुदान योजना आदि की वजह से बीजेपी की चुनावी राजनीति कैसे परवान चढ़ती रही. बीजेपी की लोकल तथा केंद्रीय लीडरशिप ने राज्य में किए गए विकास कार्यों को चुनावी सभाओं में जमकर भुनाया और इनका प्रचार इस तरह किया कि ये काम मतों में तब्दील हो सकें. यह भी उसके जीतने का एक बड़ा फैक्टर बना है.

राजनीति शास्त्र का एंटी इनकंबेसी फैक्टर मोदी के नाम के आगे धराशायी

राज्य में पुष्कर धामी मुख्यमंत्री रहे, लेकिन वे खुद चुनाव हार गए. इससे स्पष्ट हो गया कि राज्य की जनता ने बीजेपी के पक्ष में जो बंपर वोटिंग की है वह प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को देखकर की, न कि धामी के नाम पर. असल में मोदी मैजिक इस पहाड़ी राज्य में जीत का एक बहुत बड़ा कारण माना जा सकता है. पहाड़ी जिलों में तो इस फैक्टर ने बहुत ही ज्यादा काम किया. प्रधानमंत्री मोदी खुद उत्तराखंड में सभाएं लेने और कैंपेन करने के लिए कई बार आए. वह पहले भी इस राज्य को अपना घर बताते रहे हैं और उनके इन वाक्यों ने उत्तराखंड की जनता को सीधे बीजेपी से जोड़ा. पिछले कई विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा सामने रखकर ही वोट मांगे हैं और यहां भी यह रणनीति काम आई.

बीजेपी की यह रणनीति ज्यादातर चुनावों में राजनीति शास्त्र के एक बहुत बड़े फैक्टर को खत्म कर देती है जिसका नाम है एंटी इनकंबेसी (Anti incumbency). आम आदमी मोदी की छवि और उनके काम से खुश है तो ऐसे में वह अपने विधायक से नाराजगी को भी नजरअंदाज करके मोदी के नाम पर वोट देता है. बीजेपी के रणनीतिकार इस बात को बहुत अच्छे से समझ चुके हैं. अधिकतर राज्यों में बीजेपी ने मोदी मैजिक के फैक्टर को भुनाया है. उत्तराखंड भी इसका पर्याय नहीं रहा. मोदी जी देवभूमि के आंचल में जब भी आए उन्होंने अपना जुड़ाव इस जमीन से दिखाया. केदारनाथ दर्शन जैसे छोटे कदमों ने भी मोदी के प्रति यहां की जनता का विश्वास बढ़ाया, जो कि चुनावों में काम आया.

पार्टी में बेहतरीन पॉलिटिकल मैनेजमेंट किया

भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा यह भी रहा कि जब-जब उसने देखा कि सूबे के मुख्यमंत्रियों के प्रति जनता में अविश्वास और विरोध बढ़ रहा है, तो नेतृत्व को बदलने में उसने जरा भी देर नहीं लगाई. पांच साल में बीजेपी ने 3 सीएम बदले. त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत जैसे वरिष्ठ नेताओं को केवल कार्यकर्ताओं और विधायकों की नाराजगी के चलते सीएम की ड्यूटी से छुट्टी दे दी. तीरथ सिंह रावत जब सीएम बने तो उन्होंने कुछ अति विवादित बयानों से पार्टी की मुश्किलें बढ़ाना शुरू कीं. पार्टी ने सही समय पर निर्णय लेकर उन्हें भी बदल दिया. बीजेपी की यह रणनीतिक सफलता ही रही कि बेहद कम उम्र के विधायक पुष्कर धामी को मुख्यमंत्री बनाया. यह कदम उल्टा भी पड़ सकता था, लेकिन बीजेपी ने सही समय पर सही दांव खेला.

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अपने इस कदम के साथ बीजेपी ने एक और मोर्चे पर भी निशाना साधा. पिछले 5 साल में बीजेपी के तीनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और पुष्कर धामी उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्रों से आते हैं. तीरथ सिंह रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत जहां गढ़वाल के थे तो वही पुष्कर सिंह धामी कुमाऊं का प्रतिनिधित्व करते हैं. पार्टी ने अपने इस कदम से राज्य के दो बड़े अंचलों कुमाऊं और गढ़वाल में संतुलन साधने का काम किया. बीजेपी के इन कदमों के पीछे पार्टी का पूरा थिंक टैंक मैकेनिज्म काम करता है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में शामिल अमित शाह, जेपी नड्डा जैसे नेता इंटरनल सर्वे और संगठन के पदाधिकारियों से इंटरनल फीडबैक लेते रहते हैं. इस फीडबैक पर सही समय पर गौर करके भाजपा ने रणनीतिक चूक होने से बचा ली और इसका फायदा उन्हें चुनावों में मिला.

छोटी क्षेत्रीय पार्टियां कर गईं मदद

अन्य राज्यों में चुनाव में देखा गया एक फैक्टर उत्तराखंड के चुनाव में गायब था, जिसने बीजेपी की काफी मदद की. यहां पर क्षेत्रीय पार्टियों अपना प्रभाव नहीं पैदा कर पाईं. यहां उत्तराखंड क्रांति दल के तौर पर एक क्षेत्रीय दल तो है पर वह कभी वोटों की फसल नहीं जुटा पाता. केजरीवाल के दिल्ली मॉडल ने पंजाब में तो जादू दिखाया, वहीं उनकी पार्टी गोवा में भी वोट प्रतिशत पाने में कामयाब रही, पर उत्तराखंड में कोई सीट नहीं ला पाई यहां तक कि उनके सीएम कैंडिडेट चुनाव हार गए क्षेत्रीय की बीजेपी के कारण लोगों के एकमुश्त वोट बीजेपी को ही गए

आधी आबादी का पूरा समर्थन

महिलाओं का बीजेपी के पक्ष में जाना बीजेपी के जीतने का एक बड़ा फैक्टर माना जा सकता है. यहां पर महिला वोटर्स ने चुनाव में बढ़-चढ़कर भाग लिया और पुरुषों की तुलना में 4.6 परसेंट ज्यादा वोटिंग की. राज्य की कुल वोटिंग 65.37 % में महिलाओं ने पुरुषों के मतदान 62.6% की तुलना में 67.2% वोट डाले. इसका सीधा मतलब यह है कि महिला मतदाता बीजेपी को वोट डालने के लिए ही घर से निकलीं. पिछली बार के 2017 चुनावों में भी महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट डाले थे. तब भी बीजेपी की सरकार बनी थी. उत्तराखंड के 13 जिलों में से 12 जिलों में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की. इस राज्य में महिलाएं मुद्दों, समस्याओं के प्रति पुरुषों से ज्यादा संवेदनशील रहती हैं और उनका अधिक वोट डालना दर्शाता है कि आधी आबादी ने बीजेपी को जिताने में पूरे मन से काम किया.

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Published: 10 Mar 2022,09:17 PM IST

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