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नंदीग्राम बंगाल का महासंग्राम:क्यों है ये ममता,BJP की साख का सवाल 

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 10 मार्च को नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भर दिया

क्विंट हिंदी
पश्चिम बंगाल चुनाव
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ममता ूबनर्जी, सुवेंदु अधिकारी
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ममता ूबनर्जी, सुवेंदु अधिकारी
(Image: The Quint)

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पश्चिमं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट सबसे हॉट सीट बन गई है. यहां से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके पुराने सिपहसालार सुवेंदु अधिकारी आमने-सामने हैं.

आपको बता दें कि ममता बनर्जी ने इस बार अपनी पारंपरिक भवानीपुर सीट के बजाए नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जबकि भवानीपुर में उनका घर भी है. दरअसल ममता बनर्जी ने अपने फायरब्रांड नेता की छवि को बरकरार रखते हुए अपने बागी नेता सुवेंदु अधिकारी को उन्हीं को इलाके में चुनौती देने की ठानी है.

ममता दीदी ने भवानीपुर के बजाय नंदीग्राम क्यों चुना?

  • भवानीपुर में 2011 के विधानसभा उपचुनाव में ममता को 77. 46 फीसदी वोट मिले थे जबकि 2016 में वोटों का प्रतिशत घटकर 47. 67 फीसदी रह गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में भवानीपुर असेंबली सीट पर बीजेपी लीडिंग पोजिशन में थी. ऐसे में भवानीपुर अब उतना सुरक्षित भी नहीं रहा है.

  • बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी ने नंदीग्राम आंदोलन की वजह से जगह बनाई थी और आखिरकार 34 साल पुरानी लेफ्ट फ्रंट सरकार को उखाड़ फेंका था। ममता के सामने एक बार फिर खुद को साबित करने की चुनौती है, इसलिए वो खुद को फिर उसी नंदीग्राम से जोड़ना चाहती हैं.

  • ममता बनर्जी का छवि एक निर्भीक और जुझारु नेता की रही है. वो बीजेपी या शुभेंदु अधिकारी की चुनौती को दरकिनार नहीं कर सकती थीं. नंदीग्राम से चुनाव लड़ने से फैसले से जनता में उनकी ये छवि मजबूत हुई है.

  • शुभेंदु ने कई बार चुनौती दी है कि वह ममता बनर्जी को वहां से नहीं जीतने देंगे और करीब 50 हजार वोटों के अंतर से हराएंगे। ममता ने ये चुनौती स्वीकार कर ये साबित करने की कोशिश की है कि बंगाल में उनके बड़ा नेता कोई नहीं. यहां की जीत से उनके नेतृत्व पर सवाल उठने बंद हो जाएंगे.

  • नंदीग्राम विधान सभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 27 फीसदी से भी ज्यादा है. ममता बनर्जी को भरोसा है कि इनके वोट तो उन्हें मिलेंगे ही. वहीं मंच से चंडी पाठ कर उन्होंने हिन्दू मतदाताओं को भी रिझाने की कोशिश शुरु कर दी है.

नंदीग्राम में सुभेंदु अधिकारी की स्थिति कैसी है?

  • माना जाता है कि नंदीग्राम में टीएमसी की जीत सुनिश्चित कराने वाले शुभेंदु अधिकारी ही हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी के टिकट पर सुभेंदु को 67 प्रतिशत वोट मिले थे।

  • सुभेंदु के साथ इस बार बीजेपी का पूरा संगठन, पीएम समेत स्टार प्रचारकों का बड़ा समूह और दिग्गज रणनीतिकार हैं. बीजेपी के लिए भी ये सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है.

  • बंगाल में बीजेपी ने भी अपना आधार बढ़ा लिया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में TMC को 1 लाख 30,059 वोट मिले थे, लेकिन BJP के वोट भी 10 हजार से बढ़कर 62 हजार 268 पर पहुंच गए। पिछले एक साल में बीजेपी की स्थिति और मजबूत हुई है.

  • नंदीग्राम आंदोलन का श्रेय भले ही ममता बनर्जी को मिला हो, लेकिन सुवेंदु ने ही 2007 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जंग शुरू करते हुए भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी का नेतृत्व किया और इस आंदोलन ने सुवेंदु को बंगाल के एक युवा एवं जुझारू नेता के तौर पर प्रतिष्ठित कर दिया.

  • पूर्वी मिदनापुर अधिकारी परिवार की जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों रहा है. आज़ादी की लड़ाई के समय से ही ये एक स्थापित राजनीतिक हस्ती वाला परिवार रहा है। इसलिए सुवेंदु को नंदीग्राम का बेटा कहा जाता है।

देखा जाए तो नंदीग्राम का संग्राम ना तो ममता दीदी के लिए आसान है और ना ही सुवेंदु अधिकारी के लिए. ममता बनर्जी को अपने टीएमसी समर्थकों को अलावा, इलाके के 27 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं का भी समर्थन हासिल होगा. दूसरी ओर वो हिंदू कार्ड खेलकर बीजेपी के वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं.

लेकिन सुवेंदु अधिकारी यहां के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं और टीएमसी के कई स्थानीय नेता और कार्यकर्ता पाला बदलकर उनके साथ आ चुके हैं. दूसरी ओर बीजेपी का अपना मजबूत संगठन और बड़ा समर्थक वर्ग है, जिसके एकमुश्त वोट इनके हिस्से में आएंगे. इसमें अगर अधिकारी परिवार के वफादार वोटरों की संख्या जोड़ दी जाए, तो उनकी स्थिति और मजबूत हो जाएगी. वहीं सुवेंदु को सत्ता-विरोधी रुझान (एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर) का भी फायदा मिलेगा.

नंदीग्राम का इतिहास

पश्चिम बंगाल के राजनीतिक इतिहास में नंदीग्राम का अहम स्थान है. साल 1947 में देश को आजादी मिलने से पहले ही, तामलुक इलाके को कुछ दिनों के लिए अंग्रेजों के शासन से मुक्त करा लिया गया था. इसमें अजय मुखर्जी, सुशील कुमार धारा और सतीश चन्द्र सामंत समेत नंदीग्राम के निवासियों ने अहम भूमिका निभाई थी. इस तरह ये आधुनिक भारत का एकमात्र क्षेत्र है, जिसे दो बार आज़ादी मिली है.

भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन

साल 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल सरकार ने ‘स्पेशल इकनॉमिक जोन’ नीति के तहत नंदीग्राम में एक केमिकल हब की स्थापना की अनुमति देने का फैसला किया. लेकिन भूमि अधिग्रहण को लेकर विवाद शुरु हो गया और इस मुद्दे पर तमाम विपक्षी दल गोलबंद हो गये. टीएमसी, SUCI, जमात उलेमा-ए-हिंद और कांग्रेस के सहयोग से भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी (BUPC) का गठन किया गया और सरकार के फैसले के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया. इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं ममता बनर्जी और इसके नायक थे शुभेंदु अधिकारी.

वामपंथी सरकार ने इस आन्दोलन को ‘औद्योगीकरण के खिलाफ विपक्ष की साजिश’ करार दिया और सरकारी मशीनरी इसे दबाने के लिए ताकत का इस्तेमाल करने लगी. हालात और बिगड़ गये, जब समीप के हल्दिया के तत्कालीन सांसद लक्ष्मण सेठ के नेतृत्व में ‘हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी’ ने भूमि अधिग्रहण के लिए नोटिस जारी कर दिया. इसके बाद CPI(M) और BUPC के समर्थकों के बीच हिंसात्मक संघर्ष की घटनाएं होने लगीं. सत्तारुढ़ पार्टी ने इसे चुनौती माना और आंदोलनकारियों को जवाब देने के लिए CPI(M) कार्यकर्ताओं ने 14 मार्च 2007 की रात को, राज्य पुलिस के साथ मिलकर एक ‘जॉइंट ऑपरेशन’ किया. इस दौरान प्रशासन ने खुलकर बल प्रयोग किया और पुलिस फायरिंग में कम से कम 14 लोगों की हत्या कर दी गई.

इस घटना ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया और देश भर के बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों और शिक्षा-शास्त्रियों ने पुलिस-फायरिंग का कड़ा विरोध किया. आखिरकार सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा, लेकिन इस आंदोलन ने वामपंथी राजनीति की नींव हिला दी. साल 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने लेफ्ट की 34 वर्षों के शासन का अंत कर दिया और टीएमसी की सरकार बनी.

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Published: 10 Mar 2021,04:14 PM IST

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