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एग्जिट पोल के चौंकाने वाले नतीजों के पीछे कहीं ईवीएम का 'खेल' तो नहीं है? दरअसल एग्जिट पोल के नतीजों ने शक-शुबह को तब जन्म दे दिया, जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से ईवीएम बदलने की खबरें आने लगी.
एसपी-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवारों ने अपने-अपने जिलों में ईवीएम बदलने की आशंका जताते हुए धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. अब इन घटनाओं में कितनी सच्चाई है, ये तो जांच के बाद पता चलेगा, लेकिन सवाल उठता है कि क्या एग्जिट पोल के नतीजों का कनेक्शन ईवीएम से जुड़ी घटनाओं से तो नहीं है?
चंदौली, गाजीपुर और मिर्जापुर में ईवीएम को लेकर जिस तरह की खबरें सामने आई हैं, वो चौंकाने वाली हैं. चंदौली और अन्य दूसरे जिलों में चुनाव खत्म होने के 24 घंटे बाद ईवीएम से भरी गाड़ियों का पाया जाना कोई सोची-समझी कोशिश या फिर लापरवाही, क्या समझा जाए? जिला प्रशासन सफाई दे रहा है कि गाड़ियों से जो ईवीएम मिले, वो खाली थे. चुनाव अधिकारियों को रिजर्व के तौर पर इसे दिया गया था.
लेकिन सवाल इस बात का है कि चुनाव बीतने के तत्काल बाद इन्हें स्ट्रॉन्ग रूम तक क्यों नहीं पहुंचाया गया? ईवीएम रिजर्व थे या भरे, ये तो चुनाव अधिकारी जाने, लेकिन इस घटना ने एक नई बहस और शक को जन्म तो जरूर दे दिया.
जिला प्रशासन इस घटना को भले ही लापरवाही बताकर अपनी गर्दन बचाना चाहता है, लेकिन बीजेपी के विरोधियों को अब चुनाव आयोग पर एतबार नहीं है. उन्हें लगता है कि बीजेपी की शह पर जिला प्रशासन ईवीएम बदलना चाहता है.
गाजीपुर में स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर धरना दे रहे अफजाल अंसारी कहते हैं:
रविवार की शाम एग्जिट पोल के नतीजे आएं और इसके बाद अगले दिन ईवीएम से जुड़ी घटनाएं एक के बाद एक सामने आने लगीं. अधिकांश एग्जिट पोल बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी का गठबंधन बीजेपी को चुनौती देने में कामयाब नहीं रहा. सीटों के मामले में गठबंधन बीजेपी से काफी पीछे है. लेकिन एग्जिट पोल के ये नतीजे किसी के गले नहीं उतर रहे हैं.
राजनीति का नासमझ व्यक्ति भी इसे मानने को तैयार नहीं है, क्योंकि पूरे चुनाव के दौरान जिस मजबूती से गठबंधन ने बीजेपी का मुकाबला किया, उसे हर किसी ने देखा. बीजेपी का राष्ट्रवाद इतना प्रचंड नहीं था कि वो जातिगत समीकरण पर भारी पड़े. खुद बीजेपी के कई नेताओं ने भी इसे स्वीकार किया है. तो ऐसे में बीजेपी के विरोधियों का ये सवाल उठाना लाजिमी है कि एग्जिट पोल के नतीजों के पीछे ईवीएम से जुड़ी घटनाएं तो नहीं हैं?
एग्जिट पोल के नतीजों पर सवाल क्यों उठ रहे हैं, इसे समझने के लिए हमें साल 2014 के चुनाव नतीजों पर गौर करना पड़ेगा. ये वो दौर था, जब पूरे देश की तरह यूपी में मोदी की लहर थी. गली-गली में मोदी की गूंज सुनाई देती थी. गुजरात से कट्टर हिंदुत्व और डेवलपमेंट के मॉडल के तौर पर आए PM मोदी से धारा 370 हटवाने और राम मंदिर बनवाने जैसी उम्मीदें थीं.
ऐसे में मोदी के आगे लोगों को कुछ भी मंजूर नहीं था. जाति और विचारधारा से उठकर लोगों ने बीजेपी को सिर-आंखों पर बैठाया. चुनाव के नतीजों में लोगों का प्यार दिखा और बीजेपी ने 71 सीट पाकर रिकॉर्ड बना दिया.
लोकसभा चुनाव को करीब से देखने वाले बता रहे हैं कि पहले और दूसरे चरण के चुनाव के बाद राष्ट्रवाद का तथाकथित रंग फीका पड़ने लगा. दूसरे शब्दों में कहे तो राजनीतिक बिसात पर बीजेपी का राष्ट्रवाद ज्यादा देर तक नहीं टिक पाया.
इस बीच बीजेपी की ओर से यूपी में मोदी लहर बनाने की भरपूर कोशिश हुई, लेकिन नाकामी हाथ लगी. जनता के बीच मोदी सबसे विश्वसनीय चेहरा जरूर बने थे, लेकिन उन्हें लेकर लोगों का क्रेज 2014 जैसा नहीं रहा. बीजेपी की रैलियों से भी इसकी झलक देखने को मिलती रही.
ऐसे में एग्जिट पोल के नतीजे किसी के गले नहीं उतर रहे हैं. लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है कि जिस गठबंधन ने बीजेपी की नींद उड़ा दी, उसे एग्जिट पोल रिपोर्ट में वोटरों ने कैसे खारिज कर दिया?
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