Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Elections Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019क्या BJP को हराने के लिए यादव और जाटव एक साथ कर रहे हैं वोट?

क्या BJP को हराने के लिए यादव और जाटव एक साथ कर रहे हैं वोट?

अखिलेश यादव और मायावती भी वापस सियासत की धुरी में आने के लिए बेताब हैं

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चुनाव
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अखिलेश यादव और मायावती भी वापस सियासत की धुरी में आने के लिए बेताब हैं
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अखिलेश यादव और मायावती भी वापस सियासत की धुरी में आने के लिए बेताब हैं
(फोटोः Altered By Quint)

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एसपी और बीएसपी भले ही आज गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन इस गठबंधन को लेकर कई राजनीतिक पंडित आज भी संदेह में हैं. इसकी वजह है सालों पहले से चली आ रही दोनों पार्टियों की सियासी दुश्मनी.

यूपी में यादव और जाटव साल 1995 से ही एक दूसरे के राजनीतिक दुश्मन हैं. ये तब से है जब उस वक्त का समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच हुआ गठबंधन टूटा था और गेस्ट हाउस कांड हुआ था. मुलायम सिंह यादव की सरकार को उस वक्त बर्खास्त कर दिया गया था और मायावती, बीजेपी के समर्थन से यूपी की मुख्यमंत्री बनीं थीं. और यहीं से शुरू हुई यादवों और जाटवों की सियासी दुश्मनी.

जाति का सियासी खेल जिसके शिकार बने दोनों तरफ के लोग

साल 1995 की उस घटना के बाद से यूपी में जब-जब मायावती की सरकार आई यादवों को निशाना बनाकर उन्हें SC/ST एक्ट के तहत केस में फंसाया गया. सूबे में जब एसपी की सरकार बनी तो ऐसे ही जाटवों के साथ भी हुआ. इसके बाद से दोनों ही जातियां अपने नेताओं के लिए बड़े वोट बन गए.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ा बदलाव हुआ. दोनों ही जाति के लोगों ने भारी संख्या में बीजेपी के लिए वोट किया. सभी ने एक नई राजनीति की उम्मीद के साथ नरेंद्र मोदी की सरकार बनाने के लिए अपने पुराने नेताओं से किनारा किया.

यूपी में यादवों की नाराजगी का कारण ये भी बना की पार्टी में मुलायम सिंह यादव को हाशिए पर लाया गया और अखिलेश यादव ने अपने हाथों में पार्टी की कमान ले ली. वहीं दूसरी ओर जाटव मायावती के गिरते पॉलिटिकल ग्राफ के कारण उनसे दूर हो गए.

..जल्द ही योगी सरकार से भी हो गए खफा

सूबे में यादवों और जाटवों के बीच योगी सरकार से नाराजगी भी देखी गई है. पहले तो सभी ने उम्मीदों के साथ नई सरकार के लिए वोट किया लेकिन अब वही लोग क्या कह रहे हैं खुद देख लीजिए.

जब हमने बीजेपी को वोट दिया था तो हमें काफी उम्मीदें थी लेकिन सभी उम्मीदों पर पानी फिर गया. योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सभी यादवों को पुलिस विभाग में से हटाकर अलग-अलग जगहों पर लगा दिया. इससे हमारे समुदाय के लोगों के बीच असुरक्षा का माहौल बन गया.
शैलेंद्र यादव (व्यापारी, कन्नौज)

शैलेंद्र यादव आगे कहते हैं, ‘‘बीजेपी ने ओबीसी को काफी लुभाया लेकिन यादवों को पूरी तरह से बाहर रखा. बीजेपी ने यादवों को टिकट नहीं दिया, मंत्री के पद नहीं दिए. साथ ही महत्वपूर्ण पदों से भी निकाल दिया. एक समुदाय, जिसकी जनसंख्या में 15 फीसदी की हिस्सेदारी है और ओबीसी में 40 फीसदी है. हमारे लिए ये बिलकुल भी मान्य नहीं था.’’

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जाटवों के बीच भी योगी सरकार से ऐसी ही नाराजगी देखी गई, जिन्होंने बीजेपी को वोट दिया और बीएसपी को जीरो पर लाकर छोड़ने में भागीदारी निभाई. एक दलित सरकारी कर्मचारी ने पहचान छुपाने की शर्त पर बताया...

योगी सरकार में हमारे साथ घृणा का व्यवहार हुआ. वो दलितों की बात करते हैं लेकिन जब सत्ता की बात आती है तो वो हमें अलग-थलग कर देते हैं. उनकी पार्टी में जो दलित हैं उनकी हालत देखिए वो कोर ग्रुप से अलग हैं और कोई पूछ नहीं है. बीजेपी की सोच सवर्णों वाली हैं. जब योगी सीएम बने तो मुख्यमंत्री आवास को गंगाजल से धुलवाया गया क्योंकि उनसे पहले वहां अखिलेश यादव रह रहे थे जो ओबीसी हैं.

इस अफसर ने बताया कि अब वक्त आ गया है जब यादवों और जाटवों को सभी पुरानी बातें भूलकर वापस हाथ मिला लेना चाहिए.

क्या यादवों और जाटवों की यही बात एसपी-बीएसपी के गठबंधन का कारण बनी?

जमीन पर यादव और जाटव दोनों ही बीजेपी से नाराज हैं. जिस उम्मीद के साथ बीजेपी को वोट दिया था वो उम्मीद तो टूट गई. लेकिन अब फिर से वो इस बात को लेकर जोश में हैं कि एसपी-बीएसपी एक साथ आ गए हैं.

वहीं अखिलेश यादव और मायावती भी वापस सियासत की धुरी में आने के लिए बेताब हैं. मायावती के लिए सबसे बड़ा झटका 2014 का लोकसभा चुनाव था, जब उनके खाते में एक भी सीट नहीं आई. वहीं अखिलेश यादव के लिए 2014 का लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव घातक साबित हुआ. 2017 का चुनाव परिवारिक झगड़े के चलते हारे साथ ही पार्टी में बड़ी फूट भी पड़ गई.

एसपी-बीएसपी गठबंधन यूपी में बड़ी जीत के लिए तैयार है और अगर रिपोर्ट्स की बात करें तो ये गठबंधन बीजेपी को बड़ा नुकसान भी पहुंचा सकता है.गठबंधन आत्मविश्वास से भरा हुआ है और ‘किंगमेकर’ की जगह ‘किंग’ बनने के लिए चुनाव लड़ रहा है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने कहा है कि ‘चुनावों के नतीजों से हैरान होने की जरूरत नहीं है. ये गठबंधन अगला प्रधानमंत्री भी दे सकता है और कोई भी सरकार हमारे बगैर नहीं बन सकती.’’

(इनपुट IANS)

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