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एसपी और बीएसपी भले ही आज गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन इस गठबंधन को लेकर कई राजनीतिक पंडित आज भी संदेह में हैं. इसकी वजह है सालों पहले से चली आ रही दोनों पार्टियों की सियासी दुश्मनी.
यूपी में यादव और जाटव साल 1995 से ही एक दूसरे के राजनीतिक दुश्मन हैं. ये तब से है जब उस वक्त का समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच हुआ गठबंधन टूटा था और गेस्ट हाउस कांड हुआ था. मुलायम सिंह यादव की सरकार को उस वक्त बर्खास्त कर दिया गया था और मायावती, बीजेपी के समर्थन से यूपी की मुख्यमंत्री बनीं थीं. और यहीं से शुरू हुई यादवों और जाटवों की सियासी दुश्मनी.
साल 1995 की उस घटना के बाद से यूपी में जब-जब मायावती की सरकार आई यादवों को निशाना बनाकर उन्हें SC/ST एक्ट के तहत केस में फंसाया गया. सूबे में जब एसपी की सरकार बनी तो ऐसे ही जाटवों के साथ भी हुआ. इसके बाद से दोनों ही जातियां अपने नेताओं के लिए बड़े वोट बन गए.
यूपी में यादवों की नाराजगी का कारण ये भी बना की पार्टी में मुलायम सिंह यादव को हाशिए पर लाया गया और अखिलेश यादव ने अपने हाथों में पार्टी की कमान ले ली. वहीं दूसरी ओर जाटव मायावती के गिरते पॉलिटिकल ग्राफ के कारण उनसे दूर हो गए.
सूबे में यादवों और जाटवों के बीच योगी सरकार से नाराजगी भी देखी गई है. पहले तो सभी ने उम्मीदों के साथ नई सरकार के लिए वोट किया लेकिन अब वही लोग क्या कह रहे हैं खुद देख लीजिए.
शैलेंद्र यादव आगे कहते हैं, ‘‘बीजेपी ने ओबीसी को काफी लुभाया लेकिन यादवों को पूरी तरह से बाहर रखा. बीजेपी ने यादवों को टिकट नहीं दिया, मंत्री के पद नहीं दिए. साथ ही महत्वपूर्ण पदों से भी निकाल दिया. एक समुदाय, जिसकी जनसंख्या में 15 फीसदी की हिस्सेदारी है और ओबीसी में 40 फीसदी है. हमारे लिए ये बिलकुल भी मान्य नहीं था.’’
जाटवों के बीच भी योगी सरकार से ऐसी ही नाराजगी देखी गई, जिन्होंने बीजेपी को वोट दिया और बीएसपी को जीरो पर लाकर छोड़ने में भागीदारी निभाई. एक दलित सरकारी कर्मचारी ने पहचान छुपाने की शर्त पर बताया...
इस अफसर ने बताया कि अब वक्त आ गया है जब यादवों और जाटवों को सभी पुरानी बातें भूलकर वापस हाथ मिला लेना चाहिए.
जमीन पर यादव और जाटव दोनों ही बीजेपी से नाराज हैं. जिस उम्मीद के साथ बीजेपी को वोट दिया था वो उम्मीद तो टूट गई. लेकिन अब फिर से वो इस बात को लेकर जोश में हैं कि एसपी-बीएसपी एक साथ आ गए हैं.
वहीं अखिलेश यादव और मायावती भी वापस सियासत की धुरी में आने के लिए बेताब हैं. मायावती के लिए सबसे बड़ा झटका 2014 का लोकसभा चुनाव था, जब उनके खाते में एक भी सीट नहीं आई. वहीं अखिलेश यादव के लिए 2014 का लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव घातक साबित हुआ. 2017 का चुनाव परिवारिक झगड़े के चलते हारे साथ ही पार्टी में बड़ी फूट भी पड़ गई.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने कहा है कि ‘‘चुनावों के नतीजों से हैरान होने की जरूरत नहीं है. ये गठबंधन अगला प्रधानमंत्री भी दे सकता है और कोई भी सरकार हमारे बगैर नहीं बन सकती.’’
(इनपुट IANS)
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