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इस लॉकडाउन में, पता नहीं मुझे क्या हुआ... शायद मेरी मती मारी गई थी जब मैंने 'फोर मोर शॉट्स प्लीज' का सीजन 2 देखने का मन बनाया. इस शो के पहले सीजन के मैंने सिर्फ 3 ही एपिसोड देखे थे और उसी में मुझे समझ आ गया था कि ये शो कुछ खास नहीं... और मैं उस सीन के बाद तो शो बर्दाश्त ही नहीं कर पाई थी जहां चारों लड़कियां मुंबई के मरीन ड्राइव पर बैठकर जोर-जोर से "वजाइना" चिल्ला रहीं थीं जैसे कि वो किसी तरह का मॉडर्न फेमिनिस्ट एंथम हो.
खैर,उस ‘खराब’ परंपरा को जारी रखते हुए मैंने सोचा कि सीजन 2 के भी कम से कम 3 एपिसोड तो देख ही लेती हूं.
तो कहानी शुरू होती है यहां से कि दामिनी (शायोनी गुप्ता), सिद्धि (मानवी गागरू), अंजना (कीर्ति कुलहरि) और उमंग (बानी जे) ऐसे ही बिना किसी ठोस प्लान के इस्तांबुल घूमने निकल जाती हैं. वहां टर्किश आइसक्रीम खाते हुए और लड़कों की बुराई करते हुए, पैच अप करने? हद है!
बड़ा घर? एक से एक ब्रैंडेड कपड़े? बिना जॉब के ऐसा लाइफ स्टाइल?..... मुझे भी दिला दो यार कोई!!!
मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ. आगे अर्जुन कहता है, "हम जब बर्तन धोते हैं, वो तब भी प्यार करने जैसा ही लगता है." किसने लिखे हैं ये डायलॉग्स और क्या सोच रहे थे लिखते समय?
एक एपिसोड में लीसा रे रो रही होती हैं. कायदे से तो मुझे भी उनके साथ दो आंसू गिराने चाहिए....हां मेरे आंसू गिरे... लेकिन दुख में नहीं बल्कि हंस हंसकर.
क्या एक्टिंग थी वो... इतनी बेकार!
मैं सोच रही हूं- क्या इस शो के राइटर कभी किसी महिला से मिले भी हैं?
वो सबसे बुरी बातें करती है और हमेशा ऐसा लगता है जैसे टेलीप्रॉम्प्टर पढ़ रही है.
मुझे तो इस बात से हैरानी है कि आज तक इनमें से किसी को भी एल्कोहॉल पॉइजनिंग की वजह से अस्पताल नहीं जाना पड़ा!
और कोई इस शो के राइटर को ये बताओ प्लीज कि इन्हें हर एपिसोड में टाइटल बताने की जरुरत नहीं है. लड़कियां बहुत ज्यादा पीती हैं, हम समझ गए! देखो हैंडसम जे भी वही बात कह रहा है...
लेकिन मैं ये बोलूंगी कि मुझे ये देखकर मजा आया कि शो के मेल कैरेक्टर्स को सिर्फ प्लॉट के लिए यूज किया गया.
बस... और नहीं देख सकती मैं. मैं वरुण को (अंजना का पति) और शो के बाकी आदमियों को मारना चाहती हूं.
साइड नोट: प्रतीक बब्बर यहां वेस्ट हो रहा है. कोई उन्हें बाहर निकालो.
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