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‘सुपर 30 का ट्रेलर देखकर मेरी बेटी चिल्ला पड़ी- पापा.. पापा..’

आनंद कुमार कहते हैं कि फिल्म मेकर्स ने ऋतिक के लुक के साथ शानदार काम किया है.  

दीक्षा शर्मा
बॉलीवुड
Updated:
आनंद कुमार ने ‘सुपर 30’ में ऋतिक रोशन के लुक और परफॉरमेंस के बारे में क्विंट ने बात की
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आनंद कुमार ने ‘सुपर 30’ में ऋतिक रोशन के लुक और परफॉरमेंस के बारे में क्विंट ने बात की
(फोटो: ट्विटर/द क्विंट अल्टरेशन) 

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वीडियो एडिटर: वीरू कृष्ण मोहन

कैमरापर्सन: संजॉय देब

असिस्टेंट कैमरापर्सन: गौतम शर्मा

आनंद कुमार जिनकी जिंदगी पर ऋतिक रोशन की फिल्म 'सुपर 30' 12 जुलाई को रिलीज के लिए तैयार है उनको ब्रेन ट्यूमर है. फिल्म रिलीज से ठीक पहले आनंद कुमार ने अपनी बीमारी का खुलासा किया है. आनंद ने 'सुपर 30' नाम से अपना कोचिंग सेंटर शुरू किया था, जहां उन्होंने उन स्टूडेंट्स को पढ़ाया, जो महंगे IIT-JEE कोचिंग क्लास का खर्चा नहीं उठा सकते थे.

फिल्म की रिलीज से पहले, क्विंट ने ऋतिक की परफॉरमेंस और लुक के अलावा, आनंद कुमार से स्क्रिप्ट में उनके योगदान और उनके खिलाफ दायर याचिकाओं पर बात की.

हमने जब आनंद से फिल्म में ऋतिक के 'ब्राउन फेस' लुक की बात की, तो उन्होंने कहा,

जब हम लोगों से बात करने जाते हैं तो थोड़ा नहा- धो के अच्छे से करते हैं. फिल्मी बात है लेकिन इन लोगों ने हमें पढ़ाते हुए देखने के बाद शूट किया. बिना बाल झाड़े हुए, गर्मी और धूप से चेहरे पर कालेपन के साथ देखा. तो इन्होंने बहुत शानदार कोशिश की है. 
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आपको ‘सुपर 30’ शुरू करने की प्रेरणा कहां से मिली?

1994 में, आगे की पढ़ाई के लिए मेरा सलेक्शन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के लिए हुआ था, लेकिन हमारे पास पैसा नहीं था. पिताजी पोस्टल सर्विस में कर्मचारी थे जो कि फिल्म में भी दिखाया गया है. चिट्ठी छांटते और बांटते थे. हमारे पास इतना भी पैसा नहीं था कि एडमिशन हो चुका था, तो फ्लाइट पर बैठने का भी किराया नहीं था. उनकी टेंशन बढ़ती गई और इसी चक्कर में उनकी अचानक मौत भी हो गई. तब लगा कि ऐसे बच्चे बहुत होंगे, जिनकी पढ़ाई पैसे के चलते छूट जाती है. तब माताजी पापड़ बनाती थीं. हम घूम-घूम के उसे बेचते थे. उससे जो आमदनी होती थी, घर का जो खर्चा चलता था और फिर इन तमाम बच्चों को चुन कर घर में रख कर के पढ़ाना शुरू किया.

तो आपने इनको बिना पैसे लिए पढ़ाना शुरू किया?

जी. इसके लिए हम लोग क्या करते हैं कि हम लोग किसी भी बच्चे से एक रुपया भी नहीं लेते हैं. हम उनको फ्री में परिवार के साथ, परिवार जैसा रखते हैं. ताकि उसमें एक भावना भी आए कि मुझे कुछ करना है. इनका परिवार हमारे लिए समर्पित है तो हमें भी अपना 100% देना चाहिए. तो हम लोग किसी से भी, चाहे हमारे मुख्यमंत्री हों या प्रधानमंत्री, मुकेश अंबानी जी ने, आनंद महिंद्रा जी ने, सब लोगों ने कहा CSR फंड ले लो, पैसे ले लो. हमने आज तक किसी से एक रुपया डोनेशन तक नहीं लिया. बल्कि हमलोग खुद शाम को ट्यूशन पढ़ा के कुछ पैसा कमाते हैं. उससे इन बच्चों का, हमारे परिवार का, कुछ वॉलंटियर्स हैं, उनका खाना-खर्चा चलता है.

क्या आपने स्क्रिप्ट पढ़ी थी पहले और क्या आपका पूरा योगदान रहा है स्क्रिप्ट लिखने में?

जिसपर भी बायोपिक बनती है, वो राइट लेते हैं. उनके घर भी जाते हैं, कहानी समझते हैं और लिखते हैं. लेकिन हमारे साथ सबसे अलग हुआ, इसलिए हम लोगों ने इनको साइन भी किया. ये लोग न सिर्फ स्क्रिप्ट लिखने में, बल्कि डायरेक्टर कौन होगा, उनका डायरेक्शन में क्या रुझान होगा, किस तरह से करेंगे, एक्टर कौन होगा- सब में हमारा फैसला लिया गया. और सबसे बड़ी बात है कि जो सबसे ज्यादा काम हमने किया है इन लोगों के साथ, वो स्क्रिप्ट पर किया है. और कई बार तो हमारी विकास बहल जी से, संजीव दत्ता से बहस भी हो जाती थी, कि नहीं हम कुछ भी नहीं चाहते हैं कि इसमें फिक्शन हो. जो वास्तविक कहानी है, वही आए.

परफॉर्मेंस के बारे में क्या कहना है आपका? ऋतिक रौशन आपका किरदार निभा रहे हैं.

जब फिल्म की बात हुई थी, जब हम ऋतिक रौशन जी का चुनाव कर रहे थे, तो लोग हंस रहे थे. कह रहे थे ये तो ‘ग्रीक गॉड’ टाइप का आदमी है. तुम अपने जैसा कोई देहाती लुक वाले को रखो. लेकिन जब ऋतिक रौशन जी से मुलाकात हुई तो उन्होंने बोला, “देखिये आनंद सर, ये फिल्म बहुत कठिन है. इसके लिए हम को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. एक साल हमें लगे रहना पड़ेगा, तब जाकर चीजें उभर के आएंगी और हमें आपके कैरेक्टर में घुस जाना पड़ेगा.” जिस तरह से उन्होंने बोला, जिस तरह से हमारे साथ 5-7 मीटिंग की लंबी- लंबी, 5-5 घंटे, 4-4 घंटे की. जैसे ही ट्रेलर आया, हमारी मां की आंखों से आंसू निकलने लगे. भाई काफी रोमांचित हो गया और हमारी छोटी बिटिया है, 2 साल की, वो चिल्ला उठी, “पापा-पापा, ये आप हैं.” तो सोचिये कितना इन्होंने इफेक्ट डाला है.

पिछले साल हमने कुछ विवाद देखे आपसे रिलेटेड. कुछ PILs देखी जिसमें लोगों ने बोला कि आप दूसरे इंस्टीट्यूट से भी स्टूडेंट्स उठाते हैं.

जब फिल्म बन रही थी, बड़ी बात हो रही थी, तो कहीं न कहीं विरोध होना, कहीं न कहीं किसी को बुरा लगा. तो जो जिंदगी से हारे हुए इंसान होते हैं, जिनसे हमारा कोई दूर- दूर तक कोई लेना- देना नहीं, जिनको हम जानते भी नहीं हैं, वो भी 100 रुपये खर्चा कर के कहीं केस कर दिया, कहीं मुकदमा कर दिया, कोई अखबार में बयान दिया. कभी-कभी तो इतना मन छोटा हो जाएगा कि लगेगा कि ये सब काम छोड़ दें. काफी मुश्किलें आयीं. आज भी आपको जानकर आश्चर्य होगा. मैं बताना चाहता हूं आपके माध्यम से, कि फिल्म बनाते समय, हमारे एक निर्दोष साथी को तीन महीने तक जेल में बंद कर दिया गया. क्यों फेसबुक पर लिखा, क्या लिखा? बाद में हमने जब पुलिस के सर्वोच्च अधिकारी के सामने गुहार की, तो तीन महीने बाद वो पूरा निर्दोष साबित हुआ. हमारे भाई पर ट्रक चढ़ा दिया गया, पैर तीन टुकड़ों में तोड़ दिया. ये हुआ 22 दिसंबर को पिछले साल. तो क्या-क्या नहीं हमको भुगतना पड़ा. क्यों? क्यूंकि एक गरीब आदमी पर फिल्म बन रही है. मैं दिल से कह रहा हूं, कोई आज के तारीख में नहीं चाहता, बहुत कम लोग चाहते हैं कि गरीब का भी बेटा आगे बढ़े.

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Published: 13 Jun 2019,06:54 PM IST

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