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मैं पिछले हफ्ते मुंबई में जोया अख्तर के साथ बैठकर उनका वीडियो इंटरव्यू करने वाला था, लेकिन बिल्कुल आखिरी समय में इंटरव्यू को कैंसल कर दिया गया, क्योंकि जोया को गली बॉय के प्रीमियर के लिए बर्लिन जाना पड़ गया. आखिरकार पिछले हफ्ते मुझे दोबारा उनसे सवाल-जवाब करने का मौका मिला, लेकिन इस बार फिर से मेकअप किट न होने की वजह से वीडियो इंटरव्यू कैंसल हो गया (जी हां, फिल्म निर्माताओं को भी इसकी जरूरत होती है). लेकिन, आप जोया का इंटरव्यू लेने का मौका गंवाना नहीं चाहेंगे. इसलिए मैंने भारत के कुछ शानदार मेनस्ट्रीम फिल्ममेकर्स में से एक जोया अख्तर का फोन पर इंटरव्यू लेने का फैसला लिया.
सवालः गली बॉय के लिए मिली सभी सकारात्मक समीक्षाओं के लिए बधाई. बर्लिन में आम दर्शकों की प्रतिक्रिया कैसी रही?
जोया अख्तरः यह 1800 सीटों वाला सिनेमा हॉल था और मैं इतने बड़े सिनेमा हाल को देख कर हैरान थी, मेरे खयाल से स्क्रीन लगभग 70 फीट ऊंची थी, मैंने कभी भी इतनी बड़ी स्क्रीन नहीं देखी. यहां मिक्स ऑडियंस थी, 50 प्रतिशत विदेशी और 50 प्रतिशत दक्षिण एशियाई. जब यह शुरू हुआ तो आलिया ने कहा कि ऐसा लग रहा है हम बहुत मजेदार दुनिया में हैं, यह सचमुच एक मजेदार दुनिया जैसा था, वे हर चीज पर रिएक्ट कर रहे थे. यहाँ तक कि भारतीय लोग भी वहां हिंदी नहीं बोलते हैं इसलिए उनके लिए फिल्म में सबटाइटल था जिसके कारण वह फिल्म का पूरा मजा नहीं ले पाए. लेकिन वे साथ में चिल्ला रहे थे और सीटियां बजा रहे थे और रिएक्ट भी कर रहे थे. जब कोई सीरियस सीन आ जाता तो वे एकदम शांत हो जाते थे. मेरा मतलब यह है कि अगर हर थिएटर में ऐसा माहौल बन सकता है तो यह मुझे अपने घर में होने का एहसास देता है.
सवालः क्या कोई ऐसा यादगार रिएक्शन है जो आपको बहुत लंबे समय तक याद रहेगा?
जोया अख्तरः हां, मुझे लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलीं. वहां कुछ लोग थे जिन्होंने आकर मुझे बताया कि ये उनकी अपनी कहानी है. एक फिल्म प्रोड्यूसर होने के नाते यह रिएक्शन काफी मायने रखता है. जब कोई मेरे पास आकर इसे अपनी कहानी से जोड़ता है तो यह सिर्फ मनोरंजन नहीं रह जाता और मुझे लगता है कि ये प्रतिक्रियाएं लम्बे समय तक याद रह जाती हैं.
सवालः मुंबई की गलियों, झुग्गियों और चॉलों में अपने पूरे हिप-हॉप और रैप सीन को किस तरह से तलाश किया और इसके बारे में किस चीज ने आपको प्रेरित किया?
जोया अख्तरः मुझे हिप हॉप पसंद है, मैंने बढ़ती उम्र के साथ इसे सुना है और मैंने हमेशा सिर्फ अन्तर्राष्ट्रीय कलाकारों को ही सुना है फिर चाहे वह ट्यूपैक हों, ऐमिनैम हों या फ्युजीस हों.
हमारे मुख्य रैप सीन में मैंने बहुत ज्यादा योगदान नहीं दिया और जब मैं ‘दिल धड़कने दो’ की एडिटिंग कर रही थी तो उस समय मेरे एडिटर आनंद सुबया थे, जो एक संगीतकार भी हैं, उन्होंने मुझे ‘आफत’ नाम का एक म्यूजिक वीडियो दिखाया जिसमें एक 21 वर्षीय कलाकार था जिसका नाम नेजी था और मुझे यकीन नहीं हो रहा था वह इतना अच्छा गा रहा था. क्योंकि उसके बीट्स बिल्कुल मानकों पर थे और वह उन्हें केवल अपने आईपैड या आईफोन में ही बना लेता था, यहां तक कि वह इन्हें एक आईफोन में शॉट तक कर लेता था, यह वीडियो जो उसने बनाया था वह काफी हद तक हिंदी था, लेकिन आप उसको एक लेखक कह सकते थे, आप बता सकते थे कि उसकी तुकबंदी वाकई में काफी उम्दा थी, आप बता सकते थे कि उसका प्रवाह वाकई में अविश्वसनीय था. मुझे एक जिद सवार थी मैं बार-बार उस वीडियो को देखती रही और बाद में मैंने उसे ढूंढ लिया, मैंने उसे ट्रेस किया और उससे मुलाकात की. मैं उससे मिलने के लिए मजबूर हो गई और जिस समय मेरी उससे मुलाकात हुई मुझे पता था कि ये एक कहानी है, यह
सब
एक तहजीब जैसा है और मैं ऐसी तहजीब को पसंद करती हूं, इसलिए सबसे पहले तो मैं चौंक गई कि मुझे यह पता भी नहीं था कि यह है और मुझे इसके बारे में और ज्यादा जानना था और फिर मुझे समय लगा और अब मैं आपसे बात कर रही हूँ.
सवाल: आपकी फिल्में ‘लक बाय चांस’, ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’, ‘दिल धड़कने दो’ ऐसे किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती हैं जो इस समाज के एक बिल्कुल अलग तबके से ताल्लुक रखते हैं, एक ऐसा समाज जिसमें आप पली बढ़ीं और यह समाज मुंबई की झुग्गी बस्ती और चॉल की दुनिया से बहुत अलग है. अपनी ऐशो-आराम भरी जिंदगी से बाहर निकलना और एक स्लम की जिंदगी में अपने आपको व्यवस्थित करना आपके लिए कितना मुश्किल था?
जोया अख्तर: आखिरकार हम लोग इंसानों के बारे में ही फिल्में बना रहे हैं, लक बाय चांस में भी लोग चॉलों में ही रहते थे. यह उनकी पृष्ठभूमि के बारे में नहीं है, पृष्ठभूमि तो एक ऐसी चीज है जिसपर आप शोध कर सकते हैं और जिसके साथ आप समय बिता सकते हैं और इसे अपना सकते हैं, आखिरकार यह किरदारों का निजी सफर है, यह उसके अंदर के रिश्ते हैं, उनके सपने हैं, उनके संघर्ष हैं और उनकी वह परेशानियां हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए.
यह बात कोई मायने नहीं रखती है कि इंसान कहां से ताल्लुक रखते हैं, उनकी जिंदगी में उतार-चढ़ाव हैं, परेशानियां हैं, निराशाएं हैं, संघर्ष हैं, उनके पास सभी तरह के अनुभव हैं, एक सीमा के बाद मानवीय अनुभव एक समान हैं. यह कंडीशनिंग है, माहौल और सामाजिक-आर्थिक स्थान है जो बदलता रहता है, लेकिन वह शोध है और पृष्ठभूमि है.
देखें वीडियो- ‘गली बॉय’ रणवीर सिंह और आलिया भट्ट का अपना टाइम आएगा
सवाल: मैं आपसे ऐसा इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि जब कुछ फिल्म निर्माता समाज के गरीब तबके को दिखाने की कोशिश करते हैं तो उसमें बहुत कुछ बनावटी सा लगने लगता है, यहां तक कि चाँदनी चौक भी ट्राफलगर स्क्वायर जैसा लगने लगता है लेकिन ट्रेलर देखकर तो हमें ऐसा लगता है कि आपने मुंबई की स्लम बस्तियों और इसके निवासियों की स्थिति को बखूबी फिल्माया है.
जोया अख्तर: मैंने जो किया यह मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात है, वरना इसका कोई मतलब ही नहीं है, मैं स्कूलों के नाटक नहीं बनाती हूं, मैं फीचर फिल्में बनाती हूं और ऐसा करने के लिए मुझे कठिनाइयों से गुजरना होता है. मैं दिल्ली की कोई रईस पंजाबी नहीं हूं जो निजी तौर पर अपने परिवार को क्रूज पर लेकर जाती हो, मैं वह बिल्कुल नहीं हूं लेकिन मैंने वहां पर काफी समय बिताया है और उन लोगों को जानने तथा समझने के लिए भी मैंने वहां पर काफी समय बिताया है. तो जब मैं दिल्ली में होती हूं तो वे मुझसे पूछते हैं कि ‘आपने यह कैसे किया?’ क्योंकि यह मेरी जीवन शैली नहीं है. लेकिन मेरे लिए यही इसकी खासियत है और यही मेरे अन्दर उर्जा बनाये रखती है. इसलिए हर विषय को आपको ही तय करना है और आपको ही यह फैसला लेना है कि आप इसे कैसा देखना चाहते हैं.
दिल धड़कने दो के लिए मैं किसी अलग नजरिए की तलाश में थी, मैं एक ऐसा नजरिया चाहती थी जो इंसानों और उनके अनोखे व्यवहार को देख रहा हो, इसलिए बतौर टूल मैंने एक कुत्ते का इस्तेमाल किया. मैंने फिल्म को कुछ इस तरह से शॉट किया था कि उसमें केवल दो क्लोजअप्स थे, सबकुछ या तो मिड शॉट था या वाइड, इसलिए आप सब उन्हें लगभग बाहर से ही देख रहे होते हैं.
लेकिन गली बॉय जैसी फिल्म में मैं उन्हें बाहर से नहीं देख सकती क्योंकि उस समय यह एहसान जताने जैसा हो जाता है. आज दुनिया में मुराद जहां पर है उसे देखते हुए मुझे उसके किरदार के अंदर होना चाहिए. इसलिए आपको कुछ इस तरह से अपना समय बिताना चाहिए, आपको यह कोशिश करनी चाहिए, आपको उस मुकाम की इज्जत करनी चाहिए और आपको इसे अपनाना चाहिए और उनकी नजर से दुनिया को देखना चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि दुनिया उनको किस तरह से इंगेज करती है, समाज उसके साथ किस तरह से जुड़ता है, लोगों के साथ उनका इंटरैक्शन क्या है, बॉम्बे शहर में कहां पर उनका स्वागत किया जाता है और कहां पर नहीं किया जाता है, ऐसे कौन से स्थान हैं जो उनके लिए आसान हैं और उनकी पहुंच में हैं. इसलिए ये कुछ ऐसी चीजें थीं जिनको करने में मेरा और रीमा का बहुत समय लगा. मेरे लिए यह मजेदार है, ऐसा करने में मुझे मजा आता है.
सवालः गली बॉय बनाने में सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू क्या था? क्या इस सभ्यता को सही तरह से समझना और गलत टिप्पणी न होने देना एक चुनौती थी?
जोया अख्तर: मुझे लगता है कि गली बॉय बनाने का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा एक साउंडट्रैक पर 54 कलाकारों को लाना था, वे सभी इंडिपेंडेंट आर्टिस्ट हैं, उन्होंने पहले कभी इस तरह के सेट पर काम नहीं किया है. हमारे सबसे कम उम्र के सहयोगी 16-वर्षीय बीट बॉक्सर हैं. एक फिल्म में काम करने वाले लोगों को अलग-अलग शहरों से लाना, अलग-अलग ट्रेनिंग देना, उनको एक साथ रखना और उनका भरोसा जीतना थोड़ा मुश्किल है. इसलिए, रणवीर और शेरा के अलावा, हर दूसरा कलाकार रैपर (रैप म्यूजिक पर गाने वाला या बजाने वाला) या बीट बाक्सर है. और जो कलाकार हैं वे इतने ईमानदार और विश्वसनीय हैं कि मैं उनके बारे में गलत टिप्पणी नहीं कर सकती. इसलिए, मुझे लगता है कि यह चुनौतीपूर्ण होने के साथ बहुत मजेदार भी था.
सवालः म्यूजिक की बात करें तो कन्हैया कुमार और जेएनयू घटना के लिए लोकप्रिय ट्रैक ‘आजादी’ को शामिल करना कुछ ऐसा ही था, क्योंकि मुराद भी इसमें एक राजनेता हैं या जो हमारे आसपास हो रहा है क्या वह सब इस फिल्म के संदर्भ में है?
जोया अख्तर: इस देश में वोट देने वाला हर कोई व्यक्ति एक राजनीतिक व्यक्ति है. यदि आप वोट दे रहे हैं तो आप गैर-राजनीतिक नहीं हैं. इसलिए, यह सब पर लागू होता है, मैं राजनीतिक हूं, आप राजनीतिक हैं और यहां तक कि मुराद भी राजनीतिक हैं. अब बात करते हैं आजादी की, जो कि बहुत ही शक्तिशाली शब्द है, आजादी स्वतंत्रता की प्रतीक है. यह एक ऐसा शब्द है जो युवाओं के साथ बहुत ही गहराई से जुड़ा है, क्योंकि वे कई चीजों के खिलाफ विरोध कर रहे हैं. एक फॉर्म या नारे के रूप में, आजादी शब्द कन्हैया कुमार के जेएनयू घटना से पहले भी इस्तेमाल किया गया है और बाद में भी किया जाता रहेगा. इसका उपयोग महिलाओं के अधिकारों के लिए किया गया है, सरकारी नियमों के खिलाफ किया गया है, जातिगत पैतृक व्यवस्था के लिए किया गया है, और कई अन्य चीजों के खिलाफ किया गया है.
डब शर्मा द्वारा बनाया गया ट्रैक मुझे पसंद आया और मैं इसके शब्दों को बदलना चाहती थी ताकि यह मेरी कहानी में फिट हो सके. मेरी कहानी हमारे समाज के एक दर्जे, इसके उत्पीड़न और हमारे देश के लिए विशेष दर्जे की अवधारणा के बारे में है. यह आर्थिक विषमता के बारे में है. मेरी फिल्म की यही थीम है, इसलिए मुझे ट्रैक को इसकी कहानी के अनुसार ढालना पड़ा. डिवाइन ने शायद यह सोचकर ट्रैक लिखा कि यह मेरी कहानी में ठीक वैसा ही फिट हो जाए जैसा कि यह होना चाहिए. मैं खुलकर ओरिजिनल ट्रैक का प्रयोग नहीं कर सकी क्योंकि वह फेक लगता. मेरी फिल्म न तो कास्ट सिस्टम पर है और न ही जेएनयू पर, इसलिए अगर मैंने इसके असली रूप का प्रयोग किया होता तो यह वास्तव में सभी के लिए बहुत अपमानजनक बात होती.
सवालः चलिए कास्टिंग की बात करते हैं, हालांकि आपने पहले भी रणवीर के साथ काम किया है, वह फिट हैं और पहले से ही रैप और हिप हॉप सीन में रह चुके हैं, तो क्या इस फिल्म के लिए वह एक आसान विकल्प थे?
जोया अख्तर: रणवीर मेरी इकलौती पसंद थे. यह फिल्म साइन करने के बाद वह और बड़े हो गए हैं जो मेरे लिए सौभाग्य की बात है. ‘दिल धड़कने दो’ की शूटिंग के दौरान मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला था, उनके साथ काम करना मजेदार था और हमें पता था कि हम एक बार फिर काम करने जा रहे हैं. जब मुझे इस फिल्म का आइडिया आया तो वह मेरी पहली पसंद थे क्योंकि वह एक महान ऐक्टर हैं और एनर्जी से भरपूर हैं. वह हिप हॉप कल्चर और रैप म्यूजिक से बहुत ही प्रभावित हैं. वह खुद ही लिखते हैं और खुद ही रैप करते हैं, उनके कपड़े देखकर आप उनके बारे में जान जायेंगे.
वह बॉम्बे की सड़कों पर बोली जाने वाली भाषा में बड़े हुए हैं और उन्हें बोल-चाल की भाषा बहुत अच्छे से आती है. वह पहले से ही गली रैप से खूब अच्छी तरह परिचित थे, इसलिए किसी और के पास जाने का कोई सवाल ही नहीं था. साथ ही वह एक महान ऐक्टर हैं और फिट भी हैं. मेरा मतलब यहां कोई डाउन पॉइंट नहीं है.
सवालः आपने आलिया भट्ट के साथ पहली बार काम किया है, एक अभिनेत्री के रूप में आपको उनकी सबसे खास बात क्या लगी जो उन्हें दूसरों से अलग करती है?
जोया अख्तर - आलिया आज में जीने वाली अदाकारा हैं, मुझे नहीं पता कि इसका कोई मतलब है या नहीं लेकिन व्यक्ति के नजरिये से वो आज का आनंद उठाने में विश्वास रखती हैं. एक कलाकार के रूप में, मैंने उन्हें बहुत ध्यानमग्न देखा है, फिल्म के सेट पर आने पर भी वह ध्यान आकर्षित करने की जरूरत महसूस नहीं करती हैं. वह ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत महसूस नहीं करती हैं. वह जानती हैं कि इसके लिए क्या जरूरी है, वह बहुत आसानी से इस दुनिया को भूलकर भावनाओं के दुनिया में खो सकती हैं, जो उस समय उनको करने की जरूरत होती है. मुझे लगता है कि वह बहुत केंद्रित है और मुझे लगता है कि एक व्यक्ति के रूप में उनके बारे में यही अनोखा है. उन्हें एक विशेष शांति हासिल है, एक कलाकार के रूप में उनकी चिंतनशील शांति उन्हें शूटिंग के दौरान जीवंत रखती है.
सवाल: लक बाय चांस 2009 में आई थी - दस साल हो गए हैं - तब से आपने 4 फिल्में की हैं, कुछ शॉर्ट फिल्में बनाई हैं - एक फिल्म निर्माता के रूप में अपनी कुछ बड़ी सीखों के बारे में आप क्या कहेंगीं – चाहे यह जानना हो कि कौन सी स्क्रिप्ट चुननी है या एक अभिनेता को कैसे संभालना है या किसी सीन को कैसे शूट करना है और वह प्ले होने पर कैसा लगेगा.
जोया अख्तर: मुझे सबसे बड़ा सबक यह मिला कि अपनी टीम को समझदारी से चुनें और हैंडपिक करें. हैंडपिक से मेरा मतलब यह कि अपनी टीम का चयन करते समय किसी दूसरे की मदद कम ही लें, क्योंकि कोई भी निर्देशक परफेक्ट नहीं होता है, अगर आपके पास अच्छे सहयोगी नहीं हैं तो आप किसी भी सपने को पूरा नहीं कर सकते हैं. आपको समान क्षमताओं और योग्यताओं वाले लोगों की जरूरत होती है, आपको टीमों में अच्छी तरह से काम करने वाले लोगों की जरूरत होती है, मुझे अपनी टीम के साथ इसी तरह के जुड़ाव की जरूरत होती है. दूसरी चीज जो मैं मानती हूं वह है अपने अंतर्ज्ञान पर भरोसा करना. हर बार जब मैंने अपने अंतर्ज्ञान को नजरअंदाज किया तब-तब मैंने घाटा उठाया. अगर मेरा अंतर्ज्ञान मुझे बताता है यह गलत हो रहा है या कोई व्यक्ति अपने किरदार या जॉब के लिए सही नहीं है और फिर मैंने अपने अंतर्ज्ञान को नजरअंदाज कर दिया तो मैंने घाटा उठाया, इसलिए मैं तो अपने अंतर्ज्ञान की ही सुनना पसंद करूंगी.
तीसरी चीज यह है कि उन्हीं हीरो और उन्हीं लोगों के साथ काम करें जो अभिनय कर सकते हैं, चाहे भले दो ही लाइनों का सीन हो, बस उस इंसान को हासिल करने की कोशिश करें जो अभिनय कर सकता है क्योंकि वही दुनिया बदलता है.
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