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जहां एक तरफ क्रिटिकली और कमर्शियल रूप से सफल फिल्म ‘जय भीम’ (Jai Bhim) की जमकर तारीफ हो रही है, वहीं दूसरी तरफ फिल्म पर भावनाओं को “आहात” करने का आरोप लगाते हुए राजनीतिक सरगर्मी तेज है. आलम ये है कि पुलिस अत्याचारों की कहानी को सामने लाती इस फिल्म के एक्टर सूर्या (Suriya) को ही अब पुलिस प्रोटेक्शन की जरूरत पड़ गई है.
पट्टाली मक्कल कच्ची (PMK) के जिला सचिव पलानीसामी द्वारा अभिनेता पर हमला करने वाले को 1 लाख रुपये के इनाम की घोषणा के बाद चेन्नई के टी नगर में सूर्या के आवास पर पुलिस प्रोटेक्शन मुहैया कराई गई है. पलानीसामी पर पुलिस ने IPC की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है.
नवंबर की शुरुआत में फिल्म के लॉन्च के बाद से इसने तमिल समाज में अकथनीय अत्याचारों और दमन से पीड़ित अनुसूचित जनजाति के कबीले, इरुलर जनजाति की कहानी सामने लाने के लिए क्रिटिक्स की खूब तारीफ बटोरी.
लेकिन फिल्म रिलीज होने के बाद वन्नियार संगम समुदाय का कहना है कि फिल्म में उनकी प्रतिष्ठा को दाग लगाया. मालूम हो कि वन्नियार संगम तमिल समाज में दबदबे वाले वन्निया कुल के क्षत्रियों के लिए एक जाति समूह है. इसी जाति समूह की राजनीतिक बॉडी माने जाने वाली पट्टाली मक्कल कच्ची (PMK) ने जय भीम के निर्माताओं को कानूनी नोटिस दिया.
वन्नियार संगम की ओर से PMK के प्रवक्ता के. बालू ने 2डी एंटरटेनमेंट के सूर्या और उनकी पत्नी ज्योतिका, फिल्म के डायरेक्टर टीजे ज्ञानवेल और अमेजन प्राइम वीडियो को कथित तौर पर वन्नियार समुदाय को गलत तरीके से दिखने के लिए नोटिस भेजा है.
इस संगठन ने नोटिस मिलने की तारीख से सात दिनों के भीतर निर्माताओं से बिना शर्त माफी और 5 करोड़ रुपये हर्जाने की मांग की है. PMK नेताओं ने ये भी दावा किया कि फिल्म में पार्टी को बदनाम करने की कोशिश की गई है.
PMK के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अंबुमणि रामदास ने फिल्म के बारे में सवालों की एक सीरीज पोस्ट करते हुए एक लेटर लिखा. उन्होंने कहा कि उन्हें खबर मिल रही थी कि सूर्या द्वारा निर्मित 'जय भीम' वन्नियार समुदाय को ठेस पहुंचा रही है.
तमिल एक्टर सूर्या ने गुरुवार, 11 नवंबर को 'जय भीम' में वन्नियार समुदाय के चित्रण को लेकर PMK के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अंबुमणि रामदास द्वारा उनके खिलाफ की गई आलोचना का जवाब देने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया.
सूर्या ने तमिल में लिखे इस लेटर में कहा कि "फिल्म के जरिए सत्ता में बैठे लोगों के खिलाफ सवाल उठाए गए हैं, इसे नाम वाली राजनीति में तब्दील नहीं किया जाना चाहिए और इसे हल्का किया जाना चाहिए. "
सवाल है कि भारत में जातिगत उत्पीड़न के सवालों से नजर फेरने की सहूलियत मिल सकती है या पुलिसिया अत्याचारों की सच्ची कहानियों से. अगर सरकारी आंकड़ों को ही सच मानें तो जय भीम जैसी तमाम कहानी नजर आएंगीं.
लेखक डेनियल सुकुमार का मानना है कि जय भीम अभी भी इरुलर समुदाय के खिलाफ अत्याचारों के मुख्यधारा के दस्तावेजीकरण का एकमात्र स्रोत बना हुआ है. अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करने वाले इन समुदायों की जीवन कहानियों का दस्तावेजीकरण करने के लिए केवल कुछ ही प्रयास किए गए हैं.
लेखक डेनियल सुकुमार ने क्विंट में लिखा कि ‘जय भीम’ को इसके निर्माण, इरुलर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने और उनकी गरिमा को बनाए रखने में कुछ परेशानी हो सकती है, लेकिन यह एक ऐसी फिल्म नहीं है जिसे आदिवासी समुदायों के खिलाफ अत्याचार के बारे में बातचीत में अलग रखा जा सकता है.
उनका कहना है कि किसी दिन हमारे पास इरुलर समाज में से कोई होगा जो अपने समुदाय की ओर से बेहतर कहानियां साझा करेगा, लेकिन तब तक जय भीम हमारे विशेषाधिकार और जानबूझकर अज्ञानता पर सवाल उठाते हुए एक आईने के रूप में रहेगा, जिसके कारण ही ऐसे हजारों मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ. यह हमें हमेशा परेशान करेगा कि सेंगेनी और राजकन्नू की कहानी उन कई कहानियों में से एक है जिन्हें इसने सामने लाया है.
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