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परवीन बाबी की जिंदगी के बारे में जब आप सोचते हैं, तो मन में कौन सी बात आती है? क्या वह परंपराओं की बेड़ियों को तोड़ने वाली एक्ट्रेस थीं या ऐसी अभिनेत्री, जिसकी मौत अकेलेपन के बीच हुई? इसका जवाब तो सिर्फ वही दे सकती थीं.
गुजरात के एक कुलीन परिवार में परवीन बाबी का जन्म हुआ था. उनकी पढ़ाई-लिखाई अंग्रेजी मीडियम में हुई. परवीन बाबी की शख्सियत से एक आजाद खयाली झलकती थी, जिसे 1970 में विवादास्पद फिल्म बनाने वाले बी आर इशारा ने सबसे पहले नोटिस किया. उन्होंने परवीन बाबी और पूर्व क्रिकेटर सलीम दुर्रानी को लेकर 1973 में चरित्र नाम की फिल्म बनाई, जो बॉक्स ऑफिस पर पिट गई.
हालांकि फिल्म में परवीन बाबी को खूब नोटिस किया गया. इसके बाद उन्हें फिल्मों के ऑफर मिलने लगे, लेकिन इनमें से किसी को सफलता नहीं मिली थी.
असफलता का यह सिलसिला 1974 में मजबूर फिल्म से टूटा, जिसमें अमिताभ बच्चन हीरो थे. यह परवीन बाबी के करियर की पहली हिट फिल्म थी, लेकिन इसमें नाच-गाने के अलावा उनके पास करने को बहुत कुछ नहीं था.
इसके बाद परवीन बाबी ने कुछ और फ्लॉप फिल्मों में काम किया. एक बार फिर अमिताभ बच्चन को लेकर बन रही मल्टी-स्टारर फिल्म अमर अकबर एंथनी (1977) ने उन्हें सफलता दिलाई. उनकी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर लगातार अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन उनके करोड़ों फैन्स थे और उन्हें साइन करने के लिए प्रोड्यूसर्स की लाइन लगी रहती थी. इसी समय वह टाइम मैगजीन की कवर गर्ल बनीं, जिससे उनकी लोकप्रियता आसमान पर पहुंच गई.
1970 के दशक में परवीन बाबी की तुलना हमेशा जीनत अमान से होती रही. दोनों की एक जैसी इमेज थी. दोनों अंग्रेजी बोलने वाली आजाद खयाल एक्ट्रेस थीं, जिन्हें सेक्स सिंबल माना जाता था. उनकी हिंदी अंग्रेजी में घुली होती थी और दोनों गैर-पारंपरिक रोल को लेकर पश्चिमी देशों वाला नजरिया रखती थीं.
एक बार तो वह अचानक अपने बॉयफ्रेंड कबीर बेदी के साथ बोरिया-बिस्तर समेटकर विदेश चली गईं. कबीर उस समय एक इटैलियन टीवी सीरियल में टाइटल रोल प्ले कर रहे थे. इसके बाद परवीन बाबी के करियर पर सवालिया निशान लग गया. फिल्म इंडस्ट्री भी उनके अचानक जाने से नाराज थी, लेकिन परवीन बाबी ने इसकी परवाह नहीं की.
अपने करियर को बहुत नुकसान पहुंचाने से पहले अचानक वह उसी तरह देश लौट आईं, जिस तरह वे यहां से गई थीं. लौटने के बाद उन्हों बीआर चोपड़ा की द बर्निंग ट्रेन (1980), रमेश सिप्पी की शान (1980) और मनोज कुमार की क्रांति (1981) जैसी कई मल्टी-स्टारर फिल्में साइन कीं. दर्शकों ने फिर उन्हें हाथों-हाथ लिया.
जब वह नमक हलाल (1982) में 'रात बाकी' और 'जवानी जानेमन' पर थिरकतीं दिखीं, तो दर्शकों को लगा कि टिकट का एक-एक पैसा वसूल हो गया.
लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचने के बाद एक बार फिर वह गायब हो गईं. इस बार वह आध्यात्मिक सफर पर निकली थीं. किसी को पता नहीं था कि परवीन बाबी ने यह फैसला क्यों लिया, लेकिन कुछ ने दावा किया कि अर्थ फिल्म के रिलीज की वजह से वह गायब हुई हैं.
महेश भट्ट ने परवीन बाबी के साथ अपने अफेयर को आधार बनाकर यह फिल्म बनाई थी. दूसरों ने कहा कि आध्यात्मिक गुरु यूजी कृष्णमूर्ति से जुड़ाव की वजह से उन्होंने यह कदम उठाया.
इस बीच, धीरे-धीरे उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ने की खबरें भी आने लगीं. इस बार जब वह लौटीं, तो उन्हें पहचानना तक मुश्किल था. उन्होंने अमिताभ बच्चन पर अपनी हत्या की साजिश करने का आरोप लगाया. इस घटना से पहले जहां उनकी मानसिक स्थिति को लेकर दबे-छिपे स्वर में बात होती थी, अब उस पर इंडस्ट्री में खुले आम चर्चा होने लगी. कहा जाने लगा कि वह पागल हो रही हैं.
इसके बाद परवीन बाबी ने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया और दुनिया से कट गईं. साल 2005 में गुमनामी के बीच उनकी मौत हुई, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के लिए तो वह दशकों पहले चली गई थीं, जब उन्हें स्कीजोफ्रेनिया होने की खबर आई थी. आज की दीपिका पादुकोण जैसी एक्ट्रेस ने जब डिप्रेशन की बात की तो उनकी तारीफ हुई. वहीं, परवीन बाबी को प्रेस ने ‘पागल’ घोषित कर दिया था. उन्हें किसी की मदद नहीं मिली. जो लोग उनसे प्यार करने का दावा करते थे, उनसे भी नहीं. परवीन बाबी ने ऐसे में खुद को अकेलेपन में कैद कर लिया. अकेलापन तब बुरा नहीं होता, जब कोई आपको यह बताए. परवीन बाबी को यह बताने वाला कोई नहीं था.
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