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लंबे समय तक बीमारी से लड़ने के बाद इरफान खान ने 29 अप्रैल को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. दो साल पहले एंडोक्राइन ट्यूमर का पता लगने के बाद लंदन में उनका लंबा इलाज चला था. इसके बाद से ही इरफान की सेहत खराब थी. इरफान की जिंदगी का ‘कारवां’ वक्त से पहले ही रुक गया.... इस दिग्गज सितारे के जाने से बॉलीवुड से लेकर फैंस... सभी की आंखें नम हैं.
जयपुर में पैदा हुए इरफान ने बॉलीवुड में जो मुकाम हासिल किया, उसके पीछे उनकी सालों की मेहनत थी. जयपुर के रंगमच से बॉलीवुड के पर्दे तक चमकने की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. इरफान बचपन में क्रिकेटर हुआ करते थे, सीके नायडू ट्राफी में वो खेल चुके थे. इरफान के घर का ऐसा माहौल था कि टीवी और सिनेमा देखने की इजाजत नहीं थी. इरफान क्रिकेट तो खेलते ही थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी नाटकों में भी दिलचस्पी होने लगी.
वो गली-मोहल्ले में नुक्कड़ नाटक करने लगे. इरफान का ये शौक उन्हें जयपुर के रबिंद्र मंच तक ले आया. जहां से वो पहुंचे दिल्ली के एनएसडी. एनएसडी से एक्टिंग ट्रेनिंग लेने के बाद इरफान पहुंचे मुंबई और यहां से शुरू हुआ उनका स्ट्रगल.
एक दौर ऐसा था कि रोजी-रोटी के लिए इरफान हर तरह के किरादर करने लगे, कई टीवी शोज और फिल्मों में उन्होंने छोटे-छोटे रोल किए. 1990 में आई फिल्म ‘एक डॉक्टर की मौत’ में उनका एक छोटा सा रोल था, जिसे लोगों ने नोटिस तो किया, लेकिन उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिली.
इरफान की किस्मत बदली 2002 में रिलीज हुई आसीफ कपाड़िया की फिल्म ‘द वारियर’ से. इस फिल्म में इरफान को इंटरनेशनल लेवल पर पहचान दिलाई. इसके बाद 2003 में इरफान की फिल्म ‘हासिल’ और ‘मकबूल’ रिलीज हुई. इन दोनों ही फिल्मों ने इरफान को बॉलीवुड में शोहरत दिलाई.
2003 के बाद इरफान के करियर की गाड़ी निकल पड़ी और उन्होंने बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड में भी अपने एक्टिंग का जलवा बिखेरा. इस दौरान उन्होंने 'लाइफ इन अ.. मेट्रो', 'स्लमडॉग मिलेनियर', 'न्यूयॉर्क' जैसी फिल्मों में काम किया. इरफान की दमदार अदाकारी के लिए उन्हें 2011 में पद्मश्री से नवाजा गया.
'द लंचबॉक्स', 'पीकू', 'करीब-करीब सिंगल' जैसी फिल्मों में इरफान के रोमांटिक अंदाज को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया. खासकर, 'पीकू' में दीपिका पादुकोण के साथ उनकी जोड़ी काफी हिट रही. इरफान की आखिरी फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' पिछले महीने 20 मार्च को रिलीज हुई थी.
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