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चांद का एक हिस्सा धरती पर टूट कर आया था,
जिसे अगर नाम दूं तो उसका नाम 'मधुबाला था.
मधुबाला (Madhubala) एक ऐसा नाम जिसके लिए खूबसूरती भी शर्म के मारे कहीं जाकर छुप जाए. मधुबाला की खूबसूरती लफ्जों में बयां करना बेहद मुश्किल काम है. हिंदी सिनेमा (Hindi Cinema) में 40 के दशक में ऐसी अभिनेत्री आईं, जिन्हें अगर खूबसूरती की देवी कहा जाये तो भी गलत नहीं होगा. वह थीं ही इतनी खूबसूरत कि खूबसूरती भी उन्हें ठहर कर निहारे. उन पर एक बार नजर पड़ जाए तो नजर हटाने का मन ना करे.
खुदा ने जिसे अपने हाथ से तराशा था,
शायद उसका नाम 'मधुबाला' था.
मधुबाला की पैदाइश अताउल्लाह खान और आयेशा बेगम के घर 14 फरवरी, 1933 को दिल्ली में हुई थी. यह अपने ग्यारह भाई बहनों में अपने वालिदैन की पांचवी औलाद थीं. इनके वालिद साहब अफगानिस्तान के पश्तून जनजाति से ताल्लुक रखते थे.
मधुबाला का असल नाम 'मुमताज़ जहां देहलवी' था और वह वेंट्रिकुलर सेप्टल नाम की जन्मजात बीमारी के साथ पैदा हुई थीं. काफी इलाज करवाने के बावजूद उन्हें इस बीमारी से उनकी मौत के साथ ही निजात मिली.
कहते हैं कि उनके जन्म पर किसी नजूमी ने यह भविष्यवाणी की थी कि वह एक दिन बहुत नाम और शोहरत कमाएंगी लेकिन उनकी जिंदगी दुखों से भरी होगी और नजूमी की यह बात एक दिन सच भी साबित हुई.
मधुबाला के घर में गरीबी होने की वजह से वह कभी स्कूल नहीं जा सकीं तो उनके वालिद ने ही उन्हें घर पर हिंदी, उर्दू और पश्तो भाषा सिखाई. मधुबाला की दिली ख्वाहिश थी कि वह एक अदाकारा बनें लेकिन उनके घर में सभी इस बात के खिलाफ थे कि उनके घर की बेटी अदाकारा बने.
मधुबाला के पिता जी इंपीरियल टुबैको कंपनी में नौकरी करते थे. उन्हें तंबाकू की कंपनी में काम करना अच्छा नहीं लगता था. एक तो उनका परिवार काफी लंबा था, दूसरा उन्होंने कुछ कर्जा ले रखा था इसलिए वह मजबूरी में यह नौकरी करते थे लेकिन नौकरी के दौरान किसी से झगड़ा होने की वजह से उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ी. उनकी नौकरी छूटने की वजह से परिवार पर रोटी का संकट आ गया.
पिता की नौकरी जाने की वजह से मधुबाला ने ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन दिल्ली में बच्चों के कार्यक्रम में गाने से अपने करियर की शुरुआत की. लेकिन इन छोटे मोटे काम से परिवार नहीं चल सकता था. इसलिए इनके वालिद बेहतर नौकरी की तलाश में मुंबई आ गए.
यहां आने के बाद साल 1944 में हुए डॉक एक्सप्लोजन में मधुबाला के दो भाई और तीन बहनें मारे गए. बाकी परिवार इसलिए बच गया क्योंकि वह पास के सिनेमा हाल में फिल्म देखने गए थे. उनके परिवार के लिए यह बहुत ही मुश्किल वक्त था.
यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई. उसके बाद बतौर बाल कलाकार इनकी और फिल्में आईं जैसे मुमताज महल (1944), धन्ना भगत (1945), पुजारी, फुलवारी और राज पुतानी (1946).
मधुबाला की जिंदगी में वह वक्त आया जब उन्होंने मुख्य अभिनेत्री के तौर पर पहली फिल्म की वह फिल्म थी 1947 की 'नील कमल'.
इस फिल्म में इनके हीरो थे राज कपूर. यह उनकी भी बतौर हीरो पहली फिल्म थी. इस फिल्म के वक्त मधुबाला सिर्फ 14 साल की थीं और उस समय वह मुमताज के नाम से जानी जाती थीं.
'नील कमल' के बाद मधुबाला की दर्जनों फिल्में आईं लेकिन इन्हें कोई खास पहचान नहीं मिल पायी. इनके काम को असली पहचान मिली साल 1949 में आयी कमाल अमरोही की फिल्म ‘महल’ से. हालांकि पहले इस फिल्म में मुख्य किरदार सुरैय्या निभाने वाली थीं लेकिन कुछ वजहों से उन्हें हटा कर मधुबाला को चुना गया और यह फिल्म मधुबाला के करिअर के लिए लकी साबित हुई.
साल 1950 में एक ऐसा भी दौर आया जब मधुबाला की फिल्में लगातार फ्लॉप होती चली गयीं. इसके बाद मीडिया में यह गॉसिप होने लगी कि उनकी पिछली फिल्में उनकी खूबसूरती की वजह से हिट हुई थीं ना कि उनकी प्रतिभा की वजह से.
हालांकि उनकी फिल्मों के असफल होने की वजहों पर गौर करें तो समझ आएगा कि उनके पास कोई योग्य मैनेजर नहीं था, जो उनके लिए सही फिल्मों का चुनाव कर सके. उनके मैनेजर की भूमिका उनके वालिद साहब ही निभा रहे थे, जिन्हें फिल्मों और भूमिकाओं की कोई समझ नहीं थी. उन्हें जहां से ज्यादा पैसों के ऑफर मिलते थे, वह वही फिल्म साइन कर लेते थे.
इस वजह से मधुबाला के करिअर को काफी नुकसान हुआ लेकिन अपनी फिल्मों के लगातार फ्लॉप होने की वजह से मधुबाला बिलकुल भी निराश नहीं हुईं और पूरे लगन से काम करती रहीं.
साल 1958 में मधुबाला की लगातार चार फिल्में सुपर हिट साबित हुईं. वह फिल्में थीं फागुन, हावड़ा ब्रिज, कला पानी और चली का नाम गाड़ी. इन फिल्मों ने उनके करिअर को रफ्तार दी और उनकी अदाकारी की प्रतिभा का भी लोगों ने लोहा माना.
मधुबाला ने गुरु दत्त के साथ Mr. & Mrs. ’55 (1955) फिल्म की थी जो बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट साबित हुई थी इस फिल्म के गीत भी काफी मकबूल हुए थे.
दिलीप कुमार से मधुबाला की पहली मुलाकात 1951 की फिल्म 'तराना' के सेट पर हुई थी. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही मधुबाला को दिलीप कुमार बेहत पसंद आ गए थे. उन्हीं दिनों के दौरान मधुबाला ने दिलीप कुमार को एक खत लिखा, जिसमें लिखा था कि "मैं आपको बेइंतेहा पसंद करती हूं. क्या आप भी मुझे पसंद करते हैं."
इन दोनों का रिश्ता सात साल तक चला फिर किसी गलतफहमी की वजह से दोनों अलग हो गए. यह वह दौर था जब दिलीप कुमार और मधुबाला मुगल-ए- आजम फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. निजी जिंदगी में यह दोनों भले अलग हो गए थे लेकिन फिल्मी परदे पर इनकी प्रेम-कहानी अमर हो गयी.
मधुबाला और दिलीप कुमार बी.आर. चोपड़ा की एक फिल्म में साथ काम कर रहे थे. फिल्म का सेट मध्य प्रदेश में लगाया गया था और पूरी यूनिट को वहां शूटिंग करनी थी. मधुबाला के वालिद ने उन्हें मुंबई से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी. बी. आर. चोपड़ा ने मधुबाला को एडवांस में रूपए दिए थे जो कि मधुबाला के पिता ने नहीं लौटाए, बात अदालत तक पहुंच गयी और दिलीप कुमार की गवाही पर मधुबाला और उनके पिता को जेल तक जाना पड़ा. इस वजह से मधुबाला और दिलीप अलग हो गए.
बाद में इस फिल्म (नया दौर) में बैजंती माला ने काम किया. कुछ वक्त बाद मधुबाला ने दिलीप कुमार को माफ कर दिया लेकिन उनके पिता ने कभी माफ नहीं किया. मधुबाला चाहती थीं कि दिलीप कुमार उनके वालिद से माफी मांग लें लेकिन दिलीप कुमार ने साफ इंकार कर दिया. इससे इन दोनों के दिलों में खटास पड़ गयी और दो हंसों का जोड़ा मिलते-मिलते रह गया.
यह दुनिया-ए-फानी जब तक रहेगी लोग मधुबाला को भूल नहीं पाएंगे. उनकी निभायी भूमिकाओं की वजह से. उनका जो किरदार सबसे ज्यादा मशहूर हुआ वो था मुगल-ए-आजम में अनारकली का, जिसे उन्होंने इतनी शिद्दत के साथ निभाया कि उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा.
मुगल-ए-आजम फिल्म के डायरेक्टर के.आसिफ ने इस फिल्म को बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी. वह इस फिल्म को रियलिटी के काफी नजदीक रखना चाहते थे, चाहे वो फाइट सीन हों या बड़े गुलाम अली साहब को मुंह मांगी रकम देना.
इसी कड़ी में मधुबाला की बीमारी से अनजान उन्होंने, फिल्म के एक गाने को असलियत के नजदीक दिखाने के लिए मधुबाला को लोहे की भरी भरकम जंजीरों के साथ बांध कर शूटिंग की. इसकी वजह से मधुबाला की सेहत पर बुरा असर पड़ा और इसके अलावा उन्हें दिन भर भरी मेकअप में भी रहना पड़ता था, जो उनकी सेहत के लिए काफी खतरनाक था.
फिल्म में लोहे की जंजीरों के साथ अदाकारी करने की वजह से उनके हाथ पैर बुरी तरह से जख्मी हो गए थे. वैसे फिल्म की शूटिंग के दौरान वह शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी काफी परेशान थीं क्योंकि उनका दिलीप कुमार से ब्रेक-अप हो गया था.
फिल्म मुगल-ए-आजम में मधुबाला ने जो अभिनय किया उसकी तारीफ अल्फाज में बयां करना बहुत ही मुश्किल है. अनारकली की भूमिका निभा के वो हमेशा के लिए अमर हो गयीं.
अपनी खूबसूरती और अदाओं से करोड़ो दिलों पर राज करने वाली मधुबाला अपने आखिरी दिनों में प्यार के लिए तरसती रहीं. उनकी पैदाइश मोहब्बत करने वालों के दिन यानी कि वैलेंटाइन-डे के दिन हुई लेकिन उन्हें कभी प्यार कभी नसीब नहीं हुआ. दिलीप कुमार से अलग होने के बाद उन्होंने किशोर कुमार से शादी कर ली लेकिन उन्होंने भी आखिरी वक्त में मधुबला का साथ नहीं दिया. वह अपने आखिरी वक्त में बिलकुल अकेली थीं.
27 साल की उम्र में मधुबाला ने 1960 में किशोर कुमार से शादी की थी. शादी के बाद किशोर कुमार को मधुबाला की दिल की बिमारी के बारे में पता चला और यह भी पता चला कि वह ज्यादा दिनो तक अब जिंदा नहीं रह पाएंगी. इसके बाद किशोर कुमार ने मुंबई के कार्टर रोड में एक घर खरीद कर मधुबाला को एक नर्स के साथ छोड़ दिया.
प्यार तो उन्होंने किया लेकिन किसी ने उनके साथ वफा नहीं की और वह प्यार के दर्द को लेकर 23 फरवरी 1969 को 36 साल की उम्र में इस दुनिया से रुखसत हो गयीं.
मधुबाला को गाड़िया चलना बेहद पसंद था, उन्होंने पहली बार 12 साल की उम्र में गाड़ी चलाई थी.
उन्हें कुत्ते बहुत पसंद थे, जिसके चलते उनके घर पर 18 कुत्ते थे, जिन्हें वह बेहद प्यार करती थीं.
मधुबाला को हॉलीवुड के महान निर्देशक फ्रैंक कैपरा अपनी फिल्म की हेरोइन बनाना चाहते थे लेकिन उनके वालिद ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी.
मधुबाला ने नाता (1955) और महलों के ख्वाब (1960) जैसी फिल्मों का निर्माण किया और इन फिल्मों में अभिनय भी किया.
भारतीय डाक ने 18 मार्च 2008 को मधुबाला के सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया.
10 अगस्त 2017 को मैडम तुसाद संग्रहालय नई दिल्ली के द्वारा मधुबाला के मोम के पुतले का अनावरण किया गया था.
मधुबाला को किशोर कुमार, प्रदीप कुमार और भारत भूषण ने शादी के प्रस्ताव दिया.
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