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आज देश में हॉरर फिल्मों काफी बड़ा दर्शक वर्ग है और अगर कोई हॉरर फिल्म करीने से बनाई गयी है तो दर्शक उसे हाथों हाथ लेते हैं फिर चाहे वो 1979 की रिलीज फिल्म 'जानी दुश्मन' हो या फिर 2018 की रिलीज फिल्म 'स्त्री' हो. इन फिल्मों को दर्शकों ने खूब डर कर देखा और पैसों की बारिश कर दी. यही वजह रही कि आज हर चोटी का अभिनेता हो या अभिनेत्री हॉरर फिल्म जरूर करना चाहता है लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब देश की पहली हॉरर फिल्म बनाने के लिए महान फिल्मकार कमाल अमरोही ने कदम बढ़ाया तो कोई भी बड़ी अभिनेत्री काम करने को तैयार नहीं हुई.
'महल' भारत की पहली हॉरर फिल्म थी. महल यानि कि "हवेली"...बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले बनी यह फिल्म सावक वाचा और अशोक कुमार द्वारा निर्मित है. मशहूर और मारूफ फिल्म निर्देशक कमल अमरोही की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म थी.
अमरोही ने ही इस फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले लिखा था, जबकि इसका संगीत खेमचंद प्रकाश ने तैयार किया था. फिल्म के गीतकार नक्शब ने लिखा था. इस खूबसूरत फिल्म को अक्सर हिंदी सिनेमा की पहली हॉरर फिल्म के रूप में याद किया जाता है.
इस फिल्म के अहम किरदार अशोक कुमार और मधुबाला ने निभाए थे. फिल्म की कहानी ऐसे व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक प्राचीन हवेली में चला जाता है और वहां उसको अपने पिछले जन्म के बारे में पता चलता है. चीजें एक नाटकीय मोड़ लेती हैं जब उसे एक महिला मिलती है, जो यह दावा करती है कि वह व्यक्ति पिछले जन्म में उसका प्रेमी था.
बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो ने ‘महल’ को बहुत ही कम बजट पर बनाया था क्योंकि उस वक्त स्टूडियो बड़े नुकसान से जूझ रहा था. फिल्म के साथ अपने निर्देशन की शुरुआत करने वाले अमरोही को इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के लिए अभिनेत्रियों को खोजने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा था क्योंकि कोई भी बड़ी अभिनेत्री इस तरह की फिल्म नहीं करना चाहती थी इसलिए इसके लिए नयी अभिनेत्री मधुबाला का चयन किया गया.
इस फिल्म की सफलता ने मधुबाला और पार्श्व गायिका लता मंगेशकर को भी अलग पहचान दी, जो उस वक्त अपनी पहचान बनाने के लिए स्ट्रगल कर रही थीं.
फिल्म में अगर कहानी की बात करें तो यह फिल्म पुनर्जन्म और भूत के इर्द गिर्द घूमती है. इलाहाबाद में एक खूबसूरत और वीरान महल है, इस महल में जब इसका नया मालिक हरि शंकर (अशोक कुमार) रहने आता है तो उसे बूढ़ा माली एक अधूरे प्यार की दास्तान सुनाता है.
वह बताता है कि 20 साल पहले इस महल को एक आदमी ने बनवाया था जिसमें वह उसकी प्रेमिका कामिनी (मधुबाला) के साथ रहता था. वह आदमी आधी रात को कामिनी के पास आता था और सुबह होने से पहले ही चला जाता था और प्यार में गिरफ्तार कामिनी उस आदमी का दिन भर इंतजार करती थी. एक तूफानी रात में उस आदमी का जहाज डूब गया, जिसमें वह डूब कर मर गया.
ये अशोक कुमार ही थे जिन्होंने अपने जीवन की एक वास्तविक घटना को याद करते हुए कहानी का सुझाव दिया. 1948 में वह एक हिल स्टेशन पर जिजीबॉय हाउस के पास शूटिंग कर रहे थे, जब आधी रात को अभिनेता ने एक रहस्यमय महिला की एक बिना सिर वाली लाश कार में देखी. महिला जल्द ही उस जगह से गायब हो गई और कुमार के नौकरों को लगा कि उन्होंने ख्वाब देखा होगा.
जब कुमार नजदीकी थाने में शिकायत दर्ज कराने गए तो एक पुलिसकर्मी ने उन्हें बताया कि 14 साल पहले भी इसी जगह पर इसी तरह की घटना हुई थी- एक महिला ने हत्या की थी और बाद में सड़क दुर्घटना में उसकी मौत हो गई थी.
ये कहानी कुमार ने कमाल अमरोही को कहानी सुनाई, जिन्होंने पहले 1939 सोहराब मोदी की ब्लॉकबस्टर फिल्म पुकार के संवाद लिखे थे. लेकिन उन्होंने कभी किसी फिल्म का निर्देशन नहीं किया था. अमरोही ने कहानी को थोड़ा संशोधित किया और फिल्म का नाम ‘महल’ रखा.
फिल्म की स्टोरी को निर्माता वाचा ने खारिज कर दिया था, जो इस बात से डर रहे थे कि सस्पेंस फिल्मों को हमेशा ज्यादा दर्शक नहीं मिलते, जबकि बॉम्बे टॉकीज अपनी पिछली फिल्मों: जिद्दी (1948) और आशा (1948) की बॉक्स ऑफिस विफलता की वजह से पहले ही आर्थिक रूप से पिटी थी.
हालांकि, अशोक कुमार ने जोर देकर कहा था कि अगर फिल्म को अच्छी तरह से निर्देशित किया जाए तो फिल्म दिलचस्प हो सकती है और अमरोही को फिल्म के निर्देशक के रूप में नियुक्त किया गया.
15 वर्षीय अभिनेत्री मधुबाला, जो तब मशहूर अभिनेत्री नही थीं, उन्होंने कामिनी की भूमिका में अपनी दिलचस्पी दिखाई. वाचा ने उनकी उम्र और अनुभवहीनता के कारण उन्हें सिरे से खारिज कर दिया, लेकिन अमरोही ने उसका ऑडिशन लेने की मांग की. अमरोही ने बाद में एक इंटरव्यू में बताया था कि जब मैं मधुबाला से पहली बार मिला था, तब वह एक सेलिब्रिटी नहीं थी और मैं किसी नए चेहरे की तलाश कर रहा था और वह उसके बिलकुल उसके लायक थीं.
‘महल’ के पूरे फिल्मांकन के दौरान, यूनिट को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा और अमरोही को अपने घर की पुरानी चीजों और परिधानों का योगदान करना पड़ा क्योंकि प्रॉप्स खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे. साउंडट्रैक में लता मंगेशकर, राजकुमारी दुबे और जोहराबाई अंबलेवाली ने अपनी आवाज दी. अभिनेत्री टुन टुन को शुरू में "आयेगा आने वाला" गाने की पेशकश की गई थी, लेकिन उसने कारदार प्रोडक्शंस के साथ अपने अनुबंध की वजह से इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. बाद में मंगेशकर ने उसी प्राचीन हवेली में गाना गाया जहां फिल्म की शूटिंग हुई थी. "मुश्किल है बहुत मुश्किल" टाइटल वाला एक और ट्रैक, जो लगभग चार मिनट लंबा है, अमरोही और मधुबाला ने एक ही टेक में पूरा किया.
हर किसी की अस्वीकृति के बावजूद, अमरोही ने मधुबाला की प्रतिभा को बहुत सम्मान दिया. उन्होंने कहा कि इस फिल्म के साथ ही मधुबाला की असली क्षमताएं सामने आईं और हुआ भी कुछ ऐसा ही.
फिल्म ‘महल’ 19 अक्टूबर 1949 को रिलीज हुई थी. फिल्म ने जल्द ही लोकप्रियता हासिल कर ली और अपने तीसरे सप्ताह तक एक सनसनी बन गई. बॉम्बे टॉकीज की पिछली रिलीज की विफलता की वजह से फिल्म का अच्छा प्रदर्शन करना पूरी तरह से अप्रत्याशित था और फिल्म एनालिस्ट को ताज्जुब हुआ जिन्होंने ये कहा था कि ये फिल्म केवल बॉम्बे टॉकीज़ के आर्थिक संकट को सिर्फ बढ़ाएगी.
व्यापार साइट बॉक्स ऑफिस इंडिया ने महल को "सुपरहिट" घोषित किया है. 2020 तक ‘महल’ फिल्म सौ सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्मों में से एक है.
इस फिल्म की सफलता ने पार्श्व गायिका लता मंगेशकर और मुख्य अभिनेत्री मधुबाला के करियर को आगे बढ़ाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई, क्योंकि दोनों फिल्म इंडस्ट्री में एक बड़ा ब्रेक पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
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