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गुलजार- एक गीतकार, कहानीकार, डायलॉग राइटर, डायरेक्टर. आरडी बर्मन- एक संगीतकार, धुनों का जादूगर, फुटबॉल का दीवाना. और दोनों जब-जब काम के लिए साथ आए, सुनने वालों ने सांसें थाम लीं. दोनों ने वो बाकमाल काम किया कि आने वाले बरसों-बरस तक संगीत के शौकीनों के होठों पर वो गाने गूंजते रहेंगे.
आरडी, महान संगीतकार सचिन देव बर्मन के बेटे थे. प्यार का नाम पंचम. पंचम से गुलजार की पहली मुलाकात उन्हीं दिनों में हो गई थी जब वो एसडी बर्मन के लिए कुछ गाने लिख रहे थे. दोस्ती की नींव उस वक्त पड़ी और हर गुजरते दिन के साथ ये दोस्ती गाढ़ी होती गई. इतनी कि बाद में गुलजार ने सबसे ज्यादा गाने पंचम के साथ बनाए और शायद सबसे खूबसूरत गाने भी.
आरडी के साथ एक पूरी पिक्चर, गुलजार ने 1972 में की. फिल्म थी-परिचय. अब अगर पीछे मुड़कर फिल्म का नाम सोचें तो ये भी संजोग ही जान पड़ता है. परिचय...पहचान जो इस फिल्म से दोनों के बीच एक अनौपचारिकता का जामा पहन चुकी थी. यूं तो फिल्म के सभी गाने याद किए जाते हैं लेकिन पंचम के लिए एक गाना बहुत खास था--बीती न बिताई रैना. पंचम के करियर का ये पहला शास्त्रीय राग पर आधारित गीत था.
गुलजार, आरडी बर्मन के उतावलेपन का एक किस्सा याद करते हुए बताते हैं- पंचम में उतावलापन बहुत था. वो बेचैन रहता था. मैंने किसी और कंपोजर को इस तरह नहीं देखा कि कोई चाय रख गया और चाय गरम है तो उसने उसमें थोड़ा ठंडा पानी डाला और पी गया. लेकिन, इस उतावलेपन के बावजूद आरडी के दिल में संगीत के लिए बहुत ठहराव था.
गायक शैलेंद्र सिंह, आरडी पर बनी डॉक्यूमेंट्री- पंचम अनमिक्स्ड, में दोनों के रिश्तों पर बात करते हुए कहते हैं- मैं एक बार जब पंचम से मिला तो वो बड़े टेंशन में थे. मैने कहा- क्या हुआ? पंचम बोले- “मरवा दिया यार. वो जब आता है तो मुझे बुखार हो जाता है. इसका गाना बनाना पड़ता है तो मुझे 10 दिन पहले बुखार रहता है और गाना बनने के 10 दिन बाद तक रहता है पर इसका म्यूजिक अच्छा बन जाता है. मैंने कहा-कौन तो बोले-अरे वही, गुलजार.”
गुलजार ने पंचम के लिए एक बेहद खास नज्म लिखी थी जिसे यूं ही गुलजार की आवाज में सुनना भी सुकून देता है और भूपिंदर के संगीत और गायन में भी. उसी नज्म का ये हिस्सा देखिए...
याद है पंचम
वो प्यास नहीं थी
जब तुम म्यूजिक उड़ेल रहे थे जिंदगी में
और हम सब ओक बढ़ा कर मांग रहे थे
प्यास अब लगी है
जब कतरा-कतरा तुम्हारी आवाज का जमा कर रहा हूं
क्या तुम्हें पता था पंचम
कि तुम चुप हो जाओगे
और मैं तुम्हारी आवाज ढूंढ़ता फिरूंगा
या फिर ये
जब भी कोई धुन बनाकर भेजते थे
तो साथ कह दिया करते थे
' द बॉल इज इन योर कोर्ट '
ये कौन सा बॉल मेरे कोर्ट में छोड़ गये हो तुम...
' पंचम ' जिंदगी का खेल
अकेले नहीं खेला जाता
हमारी तो टीम है
आ जाओ या बुला लो...
तुझ से नाराज नहीं जिंदगी हो या मेरा कुछ सामान या फिर आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे....गुलजार और पंचम की जुगलबंदी हिंदी फिल्मों के इतिहास की वो थाती है जिस पर हर संगीतप्रेमी को फख्र है.
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