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घर की जिम्मेदारी संभालते वक्त मजबूती की मिसाल बन जाने वाली महिला का वजूद किस तरह अहम मौकों पर नकार दिया जाता है, इसकी ही बानगी पेश करती है शाॅर्ट फिल्म 'चुपचाप'.
करीब 25 मिनट की ये फिल्म समाज में महिलाओं से जुड़े अहम मुद्दों को परत दर परत, बारीकी से खोलती चली जाती है. एक महिला जो जिम्मेदारियों के बीच अपनी इच्छाओं को दबा देती है. एक युवा होती लड़की जिसे उसके मां-बाप किसी अनहोनी के डर से हर वक्त निगरानी में रखना चाहते हैं. सड़कों पर किस तरह शाम ढलते ही महिलाओं के लिए सन्नाटे का खौफ गहरा जाता है. समाज का हवाला देते हुए रेप जैसे भयानक अपराध तक पर महिलाओं को चुप करा दिया जाता है. महिलाओं से जुड़े ऐसे कई विषयों को ध्यान में रखते हुए 2 महिला किरदारों के जरिए फिल्म 'चुपचाप' की कहानी गढ़ी गई है.
महिला दिवस के जश्न से पहले समाज की कई भौंडी सच्चाईयों से रुबरु कराती ये फिल्म 5 मार्च को रिलीज की गई. फिल्म के डायरेक्टर हैं बिलाल हसन. फिल्म की कहानी भी उन्होंने ही लिखी है.
खास बात ये है कि महिला केंद्रित ये फिल्म लास्ट सीन तक कहानी का सस्पेंस बनाए रखती है. संवेदनशील मुद्दे पर दर्शकों को झकझोरने के साथ ही साथ कहानी के साथ बांधे रखने में ये फिल्म कामयाब साबित हुई है.
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