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गली गुलियां (Gali Guleiyan) जैसी फिल्म बनाने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए, वह हिम्मत निर्देशक दीपेश जैन (Dipesh Jain) ने दिखाई. ऐसी फिल्मों को निर्देशक के अनुसार दिखा पाने के लिए जिस कला की आवश्यकता होती है, मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) ने उसे अपने जीवन का सबसे बेहतरीन अभिनय करते बखूबी प्रदर्शित किया है. गली गुलियां अगर हॉलीवुड में बनी होती तो आज शायद ऑस्कर के लिए सबसे प्रबल दावेदार रहती. पुरानी दिल्ली की गलियों, तारों, पुरानी इमारतों से निर्देशक ने दर्शकों के लिए ऐसा जाल बुना है, जिसमें दर्शक फिल्म देखते-देखते खुद को भी उलझा हुआ महसूस करते हैं.
साल 2018 में 'गली गुलियां' को भारत के सिनेमाघरों में रिलीज हो गई थी, तब इस फिल्म को भारत में तो चर्चा नहीं मिली थी पर विदेशों में इसे खूब सराहा गया था. अब इसे अमेजन प्राइम पर रिलीज किया गया है.
इस फिल्म की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो पेशे से इलेक्ट्रिशियन है और पूरी दुनिया से कट चुका है. वो अपने पुराने घर में अकेला रहता है और उसका सिर्फ एक दोस्त है जो उससे मिलने आता रहता है.
घरेलू हिंसा, विवाहेतर संबंध के खतरनाक परिणाम की वजह से फ़िल्म का अंत दर्शकों को अवाक कर देता है. एक मां के संघर्ष और बच्चे के मस्तिष्क में चल रही उथल पुथल को दिखाती, ऐसी फिल्म शायद ही आज तक इतिहास में कभी बनी हो.
फिल्म की कास्टिंग बहुत सही है, हर कोई अपने किरदार पर फिट बैठता है. मनोज बाजपेयी फिल्म की शुरुआत से ही दर्शकों को प्रभावित करना शुरू कर देते हैं.
इस फिल्म में अपने हावभावों से उन्होंने हिंदी फिल्म जगत में अभिनय के मामले में खुद का बहुत ऊंचा स्तर स्थापित कर लिया है. शराब पीते होटल में लड़ने का दृश्य हो या अपने कटे हाथ को खुद सिल लेना, इस फिल्म में शानदार अभिनय के लिए मनोज को हमेशा याद किया जाएगा.
मनोज बाजपेयी के बाद गली गुलियां में ओम सिंह ने अपने अभिनय के झंडे गाड़े हैं. ओम सिंह ने इस फिल्म में 'इदरीस' नाम के बच्चे का किरदार निभाया है. इदरीस ने फिल्म में अपनी उम्र के बच्चों के कई सवालों को खोजने की कोशिश की है. ओम सिंह का मासूम चेहरा, दर्शकों की आंखों के सामने कई दिनों तक घूमता रहेगा.
नीरज काबी की संवाद अदायगी, उनकी आंखों के साथ बहुत ही दमदार हो जाती है. रणवीर शौरी ने भी मनोज बाजपेयी के दोस्त का किरदार निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
फिल्म 'रॉक ऑन' में दिख चुकी सहाना गोस्वामी ने इतनी दमदार स्टार कास्ट के बीच खुद को साबित किया है. सायरा बनकर उन्होंने इस फिल्म के जरिए समाज में महिलाओं की बुरी स्थिति को दर्शकों के सामने रखा है. उन्होंने एक महिला के उस दर्द को पूरी तरह से स्क्रीन पर दिखाने में कामयाबी पाई है, जिसमें वह अपने पति के लिए सिर्फ एक वस्तु है. शादी के पहले और बाद में महिलाओं की स्थिति किस तरह बदल जाती है, ये हम सायरा को देखकर समझ सकते हैं.
फिल्म का सम्पादन प्रभावी है. दीवार की दोनों तरफ के दृश्यों को जिस तरह से दिखाया गया है, वह फिल्म की गतिशीलता को बनाए रखता है. मनोज बाजपेयी के नीरस जीवन की तरह ही फिल्म का फीका रंग इसे देखते हुए दर्शकों को एक अलग दुनिया में रखता है.
फिल्म का पटकथा लेखन भी सही तरीके से लिखा गया है. मेकअप और कपड़ों पर काफी मेहनत की गई है. मनोज बाजपेयी को देखते हुए, उनके चेहरे और कपड़ों से ही कोई हारा हुआ व्यक्ति झलकता है. नीरज काबी (Neeraj Kabi) और रणवीर शौरी (Ranvir Shorey) का मेकअप भी फ़िल्म में उनके व्यक्तित्व को दमदार बनाता है.
गली गुलियां का बैकग्राउंड स्कोर बहुत ही शानदार है. इसमें आवाजें तभी सुनाई देती हैं, जब उसकी जरूरत महसूस होती है. आवाजों का प्रयोग इस तरह किया गया है कि यदि दर्शकों को पानी टपकने की आवाज से विचलित करना है तो वह इस आवाज से खुद को विचलित होता महसूस करेंगे.
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