advertisement
Lakadbaggha Film Review: शुक्र है बायकॉट बॉलीवुड के महाट्रेंड वाले दिनों में भी हिंदी फिल्मों ने आना बंद नहीं किया है और साल 2023 की शुरुआत में ही बॉयकॉट को खाने बॉलीवुड ने लकड़बग्घा छोड़ दिया है.
जानवरों के प्रति अत्याचार न करने का संदेश देती फिल्म 'लकड़बग्घा' (Lakadbaggha) तलाक जैसे गंभीर विषय पर भी अपना पक्ष रखती है. फिल्म के कलाकारों ने इस फिल्म के जरिए दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में कामयाबी पाई है. संवादों और तकनीकी पक्ष को देखें तो फिल्म को औसत कहा जा सकता है.
'बब्बर का तब्बर' के निर्देशक विक्टर मुखर्जी (Victor Mukherjee) अपनी पुरानी टीम के कुछ सदस्यों के साथ अब 'लकड़बग्घा' को हमारे सामने लाए हैं. लकड़बग्घा (Lakadbaggha) की कहानी 'बब्बर का तब्बर' के लेखक आलोक शर्मा द्वारा लिखी गई है, जिसमें अर्जुन बख्शी नाम का युवा जानवरों से प्रेम करता है. जानवरों पर अत्याचार करने वालों के खिलाफ लड़ते हुए वो भी उनके जाल में फंसते चला जाता है, इन सब के बीच उसे अपना प्यार भी मिलता है.
फिल्म शुरुआत से ही दर्शकों को एक्शन दृश्यों से प्रभावित करती है और इसकी कहानी तेजी से आगे बढ़ते दर्शकों को बिल्कुल बोर नहीं करती है. फिल्म का साउंड डिजाइन भी दर्शकों को रोमांचित रखने में अहम भूमिका निभाता है. निर्देशक विक्टर मुखर्जी ने मांसाहार पर अपनी बात रखते हुए शांति, अहिंसा और प्रेम की प्रतीक इस कहानी को दर्शकों के दिल पर उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. उनका एक्शन हीरो सीधे आम दर्शकों से जुड़ते हुए तीन सौ रुपए के 'यूनीस्टार' ब्रांड के जूते पहनता है. वो बड़े ही शालीन तरीके से अपनी 'डेट' के साथ डिनर करता है.
फिल्म की कास्टिंग पर ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं थी. मुख्य रूप से तीन किरदारों के इर्द गिर्द सिमटी इस कहानी के लिए तीनों चेहरे सही चुने गए हैं. रंगमंच से निकले हुए अंशुमन झा (Anshuman Jha) साल 2010 में आई फिल्म 'लव सेक्स और धोखा' से हिंदी सिनेमा के दर्शकों की नजरों में आए थे. लकड़बग्घा से पहले वो विक्टर मुखर्जी के साथ 'बब्बर का तब्बर' में भी काम कर चुके हैं. लकड़बग्घा में अंशुमन को खुद में सिमटा हुआ और पशु प्रेमी लगना था और उन्होंने अपने किरदार को पूरी शिद्दत से निभाया है. रिद्धि डोगरा के साथ उनकी कैमिस्ट्री कमाल की लगी है. रिद्धि डोगरा 'पिचर्स' के लिए युवाओं के दिलों में जगह रखती हैं, लकड़बग्घा में एक पुलिस अफसर के रूप में वो जमती है. रिद्धि इस फिल्म में खूबसूरत तो लगी ही हैं साथ में उनके एक्शन सीन भी देखने लायक है. परेश पाहुजा ने नकारात्मक किरदार में अपनी तरफ से पूरी जान लगाई है पर संवाद अदाएगी में उन्हें अभी काफी मेहनत करनी होगी. मिलिंद सोमन का फिल्म में छोटा सा किरदार है पर वो अभी भी स्क्रीन पर तरोताजा दिखते हैं.
फिल्म की पटकथा में कोलकाता बैकग्राउंड का ध्यान तो विशेष रूप से रखा गया है पर कहीं कहीं अंग्रेजी संवादों की अधिकता अखरती है. 'ये सब हॉलीवुड पिक्चर देखके कोलकाता का बच्चा लोग खराब हो रहा है, अपने आप को सुपरहीरो समझ रहा है' सुनकर युवाओं को अपनी याद आती है तो 'एक बार तो ट्राई करूंगा, ट्राई नही करूंगा तो ऐसे गलत रूल्स चेंज कैसे होंगे' संवाद कुछ हटकर करने की हिम्मत देता है.
तलाक को लेकर रिद्धि डोगरा (Ridhi Dogra) का बोला संवाद अपने शादीशुदा रिश्तों को लेकर अवसाद में जी रही लाखों महिलाओं को एक नई राह दिखाता है. वह कहती हैं 'डिवोर्स होना कोई बड़ी बात थोड़ी है. एक शादी में पूरी जिंदगी रहना जिसमें तुम्हारा सांस घुटता हो वो ट्रैजिक होता है.
उसके लिए सॉरी बोलना चाहिए. लोगों को हार्ट अटैक होता है, उसके लिए सॉरी बोलना चाहिए-'दिस इज नॉट समथिंग टू बी सॉरी अबाउट'.
फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर के जरिए दर्शकों के अंदर जानवरों के प्रति दयाभाव भी उमड़ता है. फिल्म के छायांकन और वीएफएक्स को औसत कहा जा सकता है. अंधेरी गलियों के दृश्य शानदार थे तो लकड़बग्घा वाले दृश्यों को और भी ज्यादा खतरनाक बनाया जा सकता था.
लकड़बग्घा में परेश पाहुजा की पार्टनर उसकी शेविंग करती है. सवाल ये है कि अधिकतर हिंदी फिल्मों में क्यों पुरूष किरदारों की पार्टनर ही उनकी शेव करती और उनके लिए खाना बनाती दिखती हैं? आशिकी 2 में भी शेविंग से जुड़ा ही कुछ इस तरीके का दृश्य हमारे सामने आता है. प्यार और अधिकार की ये पतली लकीर है पर अधिकार का ये तराजू पुरुषों की तरफ ज्यादा झुका दिखता है. क्या कभी हिंदी फिल्म मेकर और हिंदी फिल्मों के दर्शक, किसी पुरुष किरदार द्वारा महिलाओं की सर मालिश या पैर दबाना जैसे दृश्यों को स्वीकार करेंगे!
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)