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Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai: आसाराम पर मनोज बाजपेयी के कोर्टरूम ड्रामा की कहानी

मनोज बाजपेयी की ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ एडवोकेट पीसी सोलंकी की असल जिंदगी की घटनाओं पर आधारित है.

अदिति सूर्यवंशी
एंटरटेनमेंट
Published:
<div class="paragraphs"><p>आसाराम बापू पर मनोज बाजपेयी के कोर्टरूम ड्रामा की सच्ची कहानी</p></div>
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आसाराम बापू पर मनोज बाजपेयी के कोर्टरूम ड्रामा की सच्ची कहानी

(फोटो: ट्विटर/Altered by Quint Hindi)

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मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) की ताजा कोर्ट रूम ड्रामा ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ (Srif Ek Bandaa Kaafi Hai) का प्रीमियर Zee5 पर 23 मई को हुआ. साल 2013 के आसाराम बापू बलात्कार मामले की लड़ाई लड़ने वाले एडवोकेट पूनम चंद सोलंकी की असल जिंदगी की घटनाओं से प्रेरित, यह फिल्म ट्रेलर रिलीज होने के बाद से ही विवादों में घिर गई है.

यहां तक कि आसाराम के चैरिटेबल ट्रस्ट संत श्री आसारामजी आश्रम चैरिटेबल ट्रस्ट ने निर्माताओं को लीगल नोटिस भी भेजा है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उनकी फिल्म “बेहद आपत्तिजनक और मानहानिकारक” है.

लेकिन आसाराम बापू कौन है? फिल्म की प्रेरणा कुख्यात मुकदमे के पीछे की असल कहानी क्या थी? और इसमें पीसी सोलंकी की क्या भूमिका थी? इसका इतिहास क्या था?

आसाराम बापू कौन है?

भारत के सबसे प्रभावशाली स्वयंभु संतों में से एक आसाराम बापू का जन्म का नाम आसूमल सिरुमलानी हरपलानी था. हालांकि, यह स्वयंभु संत अपने जुर्मों के लिए बदनाम है.

साल 1941 में सिंध (अब पाकिस्तान) में जन्मा आसाराम बंटवारे के बाद अपने परिवार के साथ अहमदाबाद चला आया. बताया जाता है कि अपने पिता के निधन के बाद उसने उनके कोयले और लकड़ी के कारोबार को संभाला और जल्द ही गुजरात में मेहसाणा के विजापुर में बस गया.

अपने आश्रम में युवा आसाराम बापू

(फोटो: ट्विटर)

आसाराम किशोर उम्र में आध्यात्मिकता की तलाश में कई बार घर छोड़ आश्रमों में चला गया था.

अक्टूबर 1964 में आसूमल आखिरकार अपने आध्यात्मिक गुरु, लीलाशाहजी महाराज से मिला और अक्टूबर 1964 में उनका शिष्य बन गया. लीला शाहजी ने उसका नाम संत श्री आसारामजी महाराज रखा. हालांकि, उसे कुछ ही समय बाद लीला शाहजी के आश्रम से निकाल दिया गया था.

आसाराम की एक तस्वीर जिसमें उसने अपनी किताब ‘वंडर्स ऑफ आसाराम बापू’ हाथों में थाम रखी है.

(फोटो: ट्विटर)

गुजरात के मोटेरा गांव में 1972 में उसने अपना पहला आश्रम बनाया, जिसकी शुरुआत सिर्फ पांच-दस अनुयायियों के साथ हुई थी. बाद में, उसके सूरत शिफ्ट हो जाने पर वहां के आदिवासियों के बीच उसे और ज्यादा लोकप्रियता मिली.

आसाराम का चैरिटेबल ट्रस्ट इस समय 400 से ज्यादा आश्रम चलाता है, जिनमें से कुछ विदेशों में हैं. केरल, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर को छोड़कर भारत के हर राज्य में उसका कम से कम एक आश्रम है. इसके अलावा उसके पास 40 गुरुकुल, एक बड़ा प्रिंटिंग प्रेस और एक आयुर्वेद यूनिट है.

द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आसाराम के ट्रस्ट पर कई राज्यों में अतिक्रमण की गई जमीन पर आश्रम बनाने का आरोप है. उसके अनुयायियों की बड़ी संख्या ने कई राजनेताओं का ध्यान उसकी ओर खींचा. बीजेपी और कांग्रेस, दोनों सरकारों ने उसके प्रोजेक्ट के लिए उसे जमीनें आवंटित कीं.

साल 2013 का रेप केस

(चेतावनी: आर्टिकल में आगे यौन उत्पीड़न और शारीरिक शोषण की जानकारी है.)

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की एक 16 वर्षीय लड़की ने साल 2013 में 15 अगस्त को जोधपुर के पास मनाई गांव के आश्रम में ‘संत’ पर उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया.

आरोप लगाया गया कि आसाराम ने “बुरी आत्मा से बचाने” के मकसद से एक अनुष्ठान करते हुए लड़की का यौन उत्पीड़न किया. आश्रम में पढ़ने वाली लड़की ने आसाराम पर गलत तरीके से छूने और ओरल सेक्स करने के लिए कहने का आरोप लगाया.

लड़की के माता-पिता दोनों आसाराम के अनुयायी थे. उन्होंने आसाराम के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद उसे गिरफ्तार कर जोधपुर लाया गया.

आसाराम बापू को 2018 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

(फोटो: ट्विटर)

81 वर्षीय आसाराम को गांधीनगर की जिला अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. उसने कई जमानत याचिकाएं लगाईं और अपनी उम्रकैद की सजा को निलंबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सजा के खिलाफ अपील की, मगर उसकी सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया.

उसके खिलाफ दाखिल चार्जशीट में चार और लोगों पर सेक्शुअल लाभ के बदले ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया गया था.

रिपोर्ट्स के अनुसार आसाराम पर IPC की धारा 376 (बलात्कार), 342 (बंधक बनाने), 506 (आपराधिक धमकी), और 509 (किसी महिला का शील भंग करना) के साथ-साथ प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन अगेंस्ट सेक्शुअल अफेंसेज (POCSO) की धारा 8 और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 23 और 26 के उल्लंघन का मुकदमा चलाया गया था.

गवाहों को प्रभावित करने का आरोप

आसाराम के जेल में कैद रहने के दौरान इस मामले के कई महत्वपूर्ण गवाह गायब हो गए या उन पर जानलेवा हमला किया गया. इनमें उसके डॉक्टर अमृत प्रजापत, उसके रसोइये अखिल गुप्ता और गवाह कृपाल सिंह शामिल थे, जिनकी अलग-अलग घटनाओं में गोली मारकर हत्या कर दी गई.

मुकदमे के दो और गवाहों महेंद्र चावला और राहुल सचान पर 2015 में जोधपुर अदालत परिसर में हमला किया गया. हालांकि, वे बच गए और बाद में आसाराम के खिलाफ गवाही दी.

मुख्य गवाह राहुल सचान की फोटो

(फोटो: ट्विटर)

कौन हैं पीसी सोलंकी?

एडवोकेट पूनम चंद सोलंकी उर्फ पीसी सोलंकी आसाराम के खिलाफ साल 2013 के बलात्कार मुकदमे में 16 साल की लड़की के कानूनी सलाहकार थे.

खबरों के अनुसार, पूनम चंद सोलंकी का जन्म राजस्थान के जोधपुर में एक रेलवे मैकेनिक के घर हुआ था. वह तीन बहनों के इकलौते भाई हैं. सीमित आमदनी के बावजूद उनके परिवार ने सोलंकी की पढ़ाई पूरी कराई और इसके बाद वह लॉ कॉलेज गए.

1996 में पीसी सोलंकी बार के सदस्य बने.

एडवोकेट पूनम चंद सोलंकी का पोर्ट्रेट

(फोटो: ट्विटर)

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नाबालिग के मां-बाप ने आसाराम के खिलाफ केस लड़ने के लिए साल 2014 में सोलंकी से संपर्क किया था. रिपोर्ट्स बताती हैं कि सोलंकी सलमान खुर्शीद, सुब्रमण्यम स्वामी, राम जेठमलानी और केटीएस तुलसी जैसे दिग्गज वकीलों के खिलाफ लड़े, जो मुकदमे में आसाराम की तरफ से रखे गए वकीलों में शामिल थे.

सोलंकी ने द टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए अपने एक इंटरव्यू में पर्दाफाश किया था कि उन्हें शुरुआत में करोड़ों रुपये की पेशकश की गई थी और बाद में मुकदमे से हट जाने के लिए धमकी दी गई थी. लेकिन वह डटे रहे.

आसाराम के खिलाफ केस जीतने के बाद पीड़ित परिवार के सदस्यों के साथ एडवोकेट पीसी सोलंकी

(फोटो: ट्विटर)

“हम सच्चाई के लिए लड़ रहे थे और मैं यह पैसे के लिए नहीं कर रहा था. यहां अलग हालात थे, जहां बचाव पक्ष के वकीलों ने हर सुनवाई के लिए लाखों रुपये लिए थे. मुझे अनगिनत धमकियां मिलीं और लोगों ने मुझे करोड़ों रुपये की पेशकश भी की. लेकिन मेरे लिए लड़की और उसके पिता के चेहरे की मुस्कान और उम्मीद ज्यादा सुखदायी और इत्मीनान देने वाली थी.”
पीसी सोलंकी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा

सोलंकी को जब मुकदमे के लिए वकील रखा गया, तो उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वह नाबालिग के परिवार से एक पैसा नहीं लेंगे, क्योंकि वे उस समय आर्थिक रूप से सक्षम नहीं थे.

सोलंकी ने द टाइम्स ऑफ इंडिया से आगे कहा, “हमें भ्रष्ट और आपराधिक प्रवृत्ति वाले तांत्रिक से लड़ना था, तो हमें खुद को कानूनी ढांचे के भीतर मजबूत और प्रतिबद्ध दिखाने की जरूरत थी. मैं बहुत से सीनियर्स का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मेरे प्रैक्टिस शुरू करने के समय मुझमें सही मूल्य रोपे.”

आसाराम के खिलाफ दूसरे आरोप

सूरत रेप केस: जब आसाराम जेल में था, तो उसके खिलाफ बलात्कार की एक और शिकायत सामने आई थी. अक्टूबर 2013 में सूरत की दो बहनों ने आसाराम और उसके बेटे नारायण साईं, पत्नी लक्ष्मी और बेटी भारती सहित सात अन्य के खिलाफ बलात्कार और बंधक बनाने का मामला दर्ज कराया था.

अहमदाबाद के चांदखेड़ा थाने में FIR दर्ज कराने वाली बड़ी बहन ने आसाराम पर अहमदाबाद आश्रम में रहने के दौरान 2001 से 2006 के बीच कई बार उसका यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया. छोटी बहन का आरोप था कि आसाराम के बेटे नारायण साईं ने अपने सूरत आश्रम में उससे बलात्कार किया.

आसाराम पर दो दूसरे कानूनों के तहत आरोप लगाए गए थे, जिससे उम्रकैद की सजा के साथ उसकी कैद 20 साल और बढ़ गई.

आसाराम बापू और उसका बेटा नारायण साईं पुलिस की गिरफ्त में

(फोटो: ट्विटर)

काला जादू और बच्चों की मौतः बलात्कार के मामलों के अलावा आसाराम और उसके चेलों पर काला जादू करने और इंसानी बलि देने का भी आरोप लगाया गया था. 2008 में दो किशोर आसाराम के मोटेरा आश्रम से लापता हो गए थे और बाद में उनके क्षत-विक्षत शव मिले थे. घटना के बाद बच्चों के माता-पिता ने आसाराम के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी.

इस मामले में आसाराम और उसके बेटे को बरी कर दिया गया था. मगर न्यायमूर्ति डी.के. त्रिवेदी की अध्यक्षता वाले न्यायिक आयोग ने मौतों के लिए आश्रम प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया.

आसाराम बापू इस समय कहां है?

बलात्कार के कई आरोपों के बाद, जोधपुर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति न्यायालय ने अप्रैल 2018 में आसाराम को बलात्कार का दोषी ठहराया और उसको आजीवन कारावास की सजा सुनाई. फैसले में 5,00,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया, जो आसाराम के ट्रस्ट द्वारा पीड़ितों को भुगतान किया जाना था. आसाराम अभी भी जेल में बंद है.

विवाद पर मनोज बाजपेयी की प्रतिक्रिया

मनोज बाजपेयी की फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ के ट्रेलर रिलीज के बाद हाल ही में आसाराम के चैरिटेबल ट्रस्ट ने फिल्म के निर्माताओं को लीगल नोटिस भेजा, जिसमें आसाराम के वकीलों ने अदालत से फिल्म की रिलीज पर पाबंदी लगाने की मांग की है. वकीलों ने आरोप लगाया है कि “इससे उनके मुवक्किल की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचती और उसके श्रद्धालुओं और अनुयायियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाती है.”

मनोज बाजपेयी की फिल्म सिर्फ एक बंदा काफी है का ऑफिशियल पोस्टर

(फोटो: ट्विटर)

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, नोटिस के जवाब में फिल्म के निर्माता आसिफ शेख ने कहा कि उन्होंने एडवोकेट पीसी सोलंकी के जीवन पर फिल्म बनाने के अधिकार खरीदे हैं. उन्होंने आगे कहा कि “फिल्म जब रिलीज होगी तभी लोग सच्चाई और तथ्यों को जान पाएंगे.”

मनोज बाजपेयी ने भी विवाद पर टिप्पणी की है. उन्होंने PTI को दिए बयान में कहा, “मामला पहले से ही पब्लिक डोमेन में है और फैसला आ चुका है. हमें उन सभी घटनाओं के प्रति ईमानदार रहना होगा जो घटित हुई हैं. साथ ही हमारी फिल्म में सबसे खास बात यह है कि हम पीड़ित के साथ कितना अच्छा बर्ताव करते हैं.”

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