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इसे जरा सोचिए, बाल ठाकरे अपनी मीटिंग रूम में एक सिगार के साथ बैठे हैं. तभी दंगों में अपना सबकुछ गंवा चुका एक मुसलमान परिवार आता है और मदद की मांग करता है.
ठाकरे सोचते हैं, फिर उस व्यक्ति से पूछते हैं कि वो बार-बार अपनी घड़ी की तरफ क्यों देख रहा है. जब व्यक्ति बताता है कि उसके नमाज का वक्त हो गया है, तो ठाकरे उसे अपने घर में नमाज पढ़ने के लिए कहते हैं. परिवार चौंक जाता है.
फिर ठाकरे कहते हैं, "मुझे आपके धर्म से कोई शिकायत नहीं है, बस धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों से है."
'ठाकरे' फिल्म शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का बचाव करती है. ऐसी फिल्म, जहां उनकी छवि पर कोई भी दाग नहीं है. फिल्म के राइटर और प्रोड्यूसर संजय राउत खुद शिवसेना से सासंद हैं. फिल्म में बाल ठाकरे की छवि को साफ-सुथरा दिखाने की पूरी कोशिश की गई है.
नवाजुद्दीन सिद्दीकी ठाकरे के रोल में एकदम जमे हैं. उन्होंने इस फिल्म में अपने करियर की बेस्ट परफॉर्मेंस दी है. इस प्रोपेगैंडा फिल्म में नवाजुद्दीन बेस्ट हैं.
'ठाकरे' एक स्मार्ट तरीके से बनाई गई प्रोपेगैंडा फिल्म हैं, जो साथ ही खतरनाक भी है.
फिल्म में ठाकरे के फ्री प्रेस जर्नल के कार्टूनिस्ट से लेकर महाराष्ट्र के नेता बनने तक के सफर को दिखाया गया है. अमृता राव ने फिल्म में ठाकरे की पत्नी का रोल निभाया है, जो कि ठीक-ठाक है. इंदिरा गांधी के रोल में अवंतिका अक्रेकर एकदम कार्बन कॉपी लगी हैं.
'ठाकरे' आने वाले चुनावों में शिवसेना की मदद करने वाला एक प्लान है. लेकिन फिल्म को इसलिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि नवाजुद्दीन ने अपनी एक्टिंग से रोल में जान डाल दी है.
मैं इस फिल्म को 5 में से 3 क्विंट दूंगी.
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