‘फन्ने खां’ में अनिल कपूर की अदाकारी ने सजाए सटीक सुर

बड़ा मैसेज देने की चाहत में फिल्म पिता और बेटी के प्यार के मेलोड्रामा में सिमट कर रह जाती है.

स्तुति घोष
मूवी रिव्यू
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फिल्म में अनिल कपूर की एक्टिंग इमोशनल कर देती है
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फिल्म में अनिल कपूर की एक्टिंग इमोशनल कर देती है
(फोटो: ट्विटर)

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“मैं तो मोहम्मद रफी नहीं बन पाया, पर तुझे लता मंगेशकर जरूर बनाऊंगा”

बच्ची के पैदा होते ही प्रशांत उसे गोद में उठाकर ये बात कहता है... और इसी अरमान के इर्द-गिर्द घूमती है फन्ने खां की कहानी. प्रशांत को उसके दोस्त प्यार से फन्ने खां कहते हैं. प्रशांत अपनी बेटी पर उम्मीदों का जो बोझ डालते हैं, उस पर आप सवाल करें, इससे पहले ही प्रशांत की संजीदगी आपका दिल जीत लेती है. प्रशांत की पत्नी के किरदार में दिव्या दत्ता भी बखूबी एक सपोर्टिव मां की तरह नजर आती हैं.

पीहू का काम काबिल-ए-तारीफ

दोनों की बेटी है लता, जिसका किरदार पीहू सैंड निभा रही हैं. वो टैलेंटेड है और मशहूर पॉप सिंगर बेबी सिंह की तरह बनना चाहती है, जिसका किरदार एश्वर्या राय निभा रही हैं. स्टेज पर अपने पसंदीदा सिंगर के डांस और कपड़ों को कॉपी करने की कोशिश में लता को हर बार दर्शकों के नकारे जाने पर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है.

ये किरदार एक ऐसी मोटी लड़की का है, जो कभी अपना आपा खोती है, तो कभी अपना रास्ता बनाती हुई दिखती है. इस चुनौती भरे किरदार को पीहू ने बेहद असरदार तरीके से निभाया है.

अतुल मांजरेकर के निर्देशन में बनी ये फिल्म एक बेल्जियन फिल्म ‘Everybody’s Famous’ पर आधारित है. लेकिन फन्ने खां का फोकस सिर्फ लता और उसका संघर्ष नहीं, बल्कि एक पिता की कहानी है, जो अपने बेटी का सपना पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है.

अनिल कपूर अपनी एक्टिंग से आपको इमोशनल कर पाने में कामयाब हुए हैं. फिल्म में अपनी बेटी के लिए एक पिता का प्यार और प्रशांत के साथ फैक्ट्री में साथ काम करने वाले अधीर (राजकुमार राव) के साथ दोस्ती बिलकुल असली लगती है.

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प्रशांत अपनी बेटी के लिए बेबी सिंह की किडनैपिंग का प्लान बनाता है. इसी के साथ कहानी में मोड़ आता है. बेबी के किरदार में ऐश्वर्या खूबसूरत तो लगती हैं, लेकिन थोड़ी बनावटी भी नजर आती हैं. फिल्म में राजकुमार राव जैसे बढ़िया एक्टर का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं किया गया.

कहानी से पकड़ छूटती है

फन्ने खां समाज में सुंदर दिखने के आदर्शों और मशहूर होने की चाहत पर सवाल करते हुए शुरू होती है. लेकिन जल्द ही बड़ा मैसेज देने की चाहत में फिल्म पिता और बेटी के प्यार के मेलोड्रामा में सिमट कर रह जाती है. एक वक्त के बाद डायरेक्टर की कहानी से पकड़ छूटती हुई नजर आती है. 'अच्छे दिन' और 'तेरे जैसा तू है' को छोड़कर फिल्म के गाने भी कुछ खास नहीं हैं.

5 में से 2 क्विंट ! डेब्यू कर रही पीहू सैंड और अनिल कपूर की दमदार एक्टिंग के अलावा फिल्म में सब कुछ मेलोड्रामा है.

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