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आज कल फिल्मों के ट्रेलर जारी होने के बाद सोचने के लिए कुछ ज्यादा बचता नहीं है. आधी से ज्यादा चीजें ट्रेलर में आपको बता दी जाती हैं. इसलिए जब हम 'जवानी जानेमन' देखते हैं, तो ज्यादा सरप्राइज बचते नहीं. हालांकि, डायरेक्टर नितिन कक्कड़ और लेखक हुसैन दलाल ने फिल्म में स्मार्ट तरीका अपनाया है. ऑडियंस का ध्यान खींचने के लिए वो प्लॉट पर ज्यादा निर्भर नहीं हुए.
फिल्म में ये बात छिपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की गई है कि फिल्म का हीरो बाप की उम्र का है. उसके बालों को डाई करने से लेकर उसे उसकी उम्र के हिसाब से बर्ताव करने की सलाह से ये बार-बार बताने की कोशिश की गई है. जैज सेटल होने के नाम से ही घबराता सा दिखता है. वो बार-बार कहता है, 'मैं आजाद पंछी हूं' या 'मैं अकेले अपने स्वैग के साथ रहता हूं'. जिस लड़की के साथ होने का वो सोचता है, वो उसकी बेटी की उम्र की है. जैज के छोटे भाई का रोल कुमुद मिश्रा ने निभाया है, जो बिल्कुल भी उसके जैसा नहीं है.
ये चीजें हालांकि तब बदल जाती हैं जब जैज की जिंदगी में उसकी बेटी टिया (आल्या) की एंट्री होती है. जैज के रोल में सैफ अली खान ने इमोशन्स को काफी अच्छी तरह से बयां किया है. इस कैरेक्टर में वो काफी जच रहे हैं.
तबु हमेशा की तरह अपने रोल में फिट बैठती हैं. वो इतनी शानदार एक्टर हैं कि अपने हर सीन में, हर एक्सप्रेशन में फिट लग रही हैं. 'हिप्पी मां' के रोल में तबु की एंट्री इंटरवल के बाद होती है, फिर भी वो अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहती हैं.
सैफ सिंगलहुड के पोस्टरबॉय हैं! 'जवानी जानेमन' और भी बेहतर हो सकती थी, अगर ये लीग से थोड़ी अलग चलती. अगर इस फिल्म में भी एक उम्र के बाद 'सेटल' होने का प्रेशर दिखाने की बजाय एक 'कमिटेड सिंगल लाइफ' के प्लॉट को दिखाने की कोशिश होती.
फिर भी, एक पिता और बेटी की कहानी बताती इस फिल्म को देखा जा सकता है. इस फिल्म में नयापन है.
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