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बे-सिर-पैर की पुरानी कहानी- ‘मरजावां’ लेती है सब्र का इम्तहान

फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा और रितेश देशमुख की मेहनत पर पानी फेर दिया गया है. 

स्तुति घोष
मूवी रिव्यू
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फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा और रितेश देशमुख की मेहनत पर पानी फेर दिया गया है. 
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फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा और रितेश देशमुख की मेहनत पर पानी फेर दिया गया है. 
(फोटो: द क्विंट/श्रुति माथुर)  

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'मरजावां' का मतलब होता है - 'I'll die',और मेरी तो सच में 'डेथ' ही हो गयी ये फिल्म देखते हुए. आप बनाने को तो कुछ भी बना सकते हो- जैसे कि पिक्चर, उल्लू. कई बार आप पिक्चर बनाकर भी उल्लू बना देते हो. पूरे 135 मिनट मैंने इसे झेला और फिर सोचा कि इसे बनाने वालों ने तो बनाकर सोचा होगा की 'हमने तो कमाल कर दिया है.' तो असल में गलती आखिर कहां पर हुई? डायरेक्टर मिलाप जवेरी ने खुद को बहुत सीरियसली ले लिया, इसलिए फिल्म को सीरियसली नहीं लिया. अगर मजाक-मजाक में कॉमेडी भी बना लिया होता, तो भी बहुत अच्छा होता. लेकिन यहां उन्होंने सीरियस फिल्म बनाई भी, लेकिन वो बिलकुल 'फनी' हो गई...हालांकि अनजाने में. फिल्म का जो वर्जन मुझे समझ वो मैं आपके साथ साझा कर रही हूं. क्या पता, इसके चलते फिल्म आपको मजेदार लगे.

जो कॉरपोरेट हथकंडा होता है कि अपना काम खुद नहीं करना है, उसे दूसरों के ऊपर मढ़ देना, वही हो रहा है इस फिल्म में. इसमें एक भी किरदार अपना काम खुद करते हुए नहीं दिखता है. सब अपना काम किसे सौंप रहे हैं- रघु को, यानी सिद्धार्थ मल्होत्रा. फिल्म में तो वे अच्छे लगे हैं, लेकिन वो ‘ओवर बर्डेन’ हैं, क्योंकि हर कोई इनपर अपना काम लाद चुका है.   
फिल्म ‘मरजावां’ से एक स्टिल शॉट (फोटो: Pinterest)

तो हम शुरुआत करेंगे वॉटर माफिया वाले 'अन्ना' यानी एक्टर नासिर के साथ. वैसे तो ये बॉस बने हुए हैं, लेकिन इन्होंने सारा काम सौंप रखा है रघु को. तो रघु बेचारा इनकी वजह से दूसरों को डरा रहा है. बार डांसर 'आरजू' यानी रकुलप्रीत सिंह ने अपनी इज्जत-आबरू की सुरक्षा का काम रघु को आउटसोर्स कर रखा है. 'जोया' यानी तारा सुतारिया वैसे तो बोल नहीं सकतीं, लेकिन इन्होंने भी बिना बोले ही रघु को काम सौंप दिया है, यानी रघु को अपना 'माउथऑर्गन' बना लिया है. जिस दुश्मन ने उसके अपने दोस्तों की बुरी हालत की, उसका बदला वो खुद नहीं लेती, बल्कि ये काम भी रघु को करना पड़ता है. इसके लिए वो रघु के जेल से बाहर आने का इंतजार करती है. और तो और, एक पुलिसवाला है (रवि किशन) भी अपना काम उससे करवाना चाहता है, और उसे अपने बॉस के खिलाफ बयान देने को कहता है.

इन सब में सिर्फ एक बंदा है, जो रघु से कोई काम नहीं करवाना चाहता, लेकिन अफसोस, रघु की उससे ही नहीं बनती. वो शख्स है- विष्णु (रितेश देशमुख), जिसे एक बौना किरदार दिखाया गया है. विष्णु चाहता है कि रघु दूसरों के काम छोड़कर आराम करे, लेकिन नहीं, सारी लड़ाई इन दोनों के बीच.   
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ये वर्जन तो मेरा था. लेकिन मेकर्स का आइडिया थोड़ा अलग है. 'मरजावां' को देखकर लगता है कि एक प्रोडक्ट अपनी एक्सपायरी डेट से पहले ही खराब हो गया. 80 के दशक की फिल्मों में जो 'एंग्री यंग मैन' होते थे, जो विलेन से जंग लड़ता था. हर वक्त मारधाड़ और विलेन के कहने पर सौ गुंडे खड़े हो जाते थे, और फिर एक-एक करके सब पटके जाते हैं, वो सब यहां पर हो रहा है. आप फिल्म देखते हुए सोचते हैं कि ये सब क्यों हो रहा है.

फिल्म ‘मरजावां’ से एक स्टिल शॉट (फोटो: Pinterest)

फिल्म में हीरो के पास एक सबसे बड़ा और ताकतवर हथियार भी है- वो है उसके डायलॉग्स. एक जगह खून से लथपथ रघु कहता है - "मैं मारूंगा तो मर जाएगा, दोबारा जनम लेने से डर जाएगा." एक जगह पर 'ढाई किलो का दिमाग' का भी जिक्र किया गया है. ऐसे ही कई डायलॉग्स और ड्रामा फिल्म में देखने को मिलते हैं. फिल्म में ज्यादातर गाने भी पुराने हैं, जिनका रीमिक्स वर्जन इस्तेमाल किया गया है.

फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा और रितेश देशमुख को देखकर दुख होता है, क्योंकि उन्होंने सच में मेहनत की है, लेकिन फिल्म की कहानी ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया. रितेश देशमुख की हाइट कम करने से बेहतर होता की फिल्म की लंबाई कम कर देते. ये फिल्म वाकई हमारे सब्र का इम्तहान लेती है.

मेरी तरफ से 'मरजावां' को 5 में से 1 क्विंट.

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