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‘मोतीचूर चकनाचूर’Review: घिसी-पिटी कहानी, दर्शकों के अरमान चकनाचूर

मोतीचूर चकनाचूर दो बिल्कुल विपरीत किरदारों, एनी और पुष्पिंदर त्यागी के एकसाथ होने की कहानी है

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बेहतरीन एक्टिंग और छोटे शहर के परिवेश का अच्छा पैकेज है मोतीचूर...

एक लंबी, गोरी और खूबसूरत लड़की है, जो अपने ट्वेंटीज में है. जिसका सपना शादी करके विदेश में सेटल होने का है. वहीं दूसरी तरफ, 36 साल का एक शर्मीला और औसत दिखने वाला पुरुष है, जिसके ऊपर परिवार की जिम्मेदारियां है और शादी को लेकर काफी बेसब्र है. ‘मोतीचूर चकनाचूर’ एनी (आथिया शेट्टी) और पुष्पिंदर त्यागी (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) की कहानी है, जो एक दूसरे के बिल्कुल अपोजिट हैं, लेकिन फिर भी शादी करते हैं, इसके बाद उन दोनों के लिए और उनके आसपास के लोगों के लिए दिक्कतें काफी बढ़ जाती हैं.

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देबमित्रा बिस्वाल की निर्देशित ‘मोतीचूर चकनाचूर’, बेहतरीन अभिनय और एक छोटे से शहर की खूबसूरत कहानी है. वो भी तब जब आप फिल्मों से लगातार निराश हो रहे हों. आथिया शेट्टी का अंदाज बिल्कुल नया है. नवाज के साथ उनकी जोड़ी शुरू में ऑड जरूर लगती है, लेकिन अलग तरीके का अंत संतुष्ट करता है. दोनों एक दूसरे के अपोजिट हैं, पुष्पिंदर में वो सारी चीजें हैं, जो आथिया को बिल्कुल पसंद नहीं है. सिर्फ उसके "दुबई रिटर्न" वाले टैग को छोड़कर, जिसका वह अकड़ दिखाता है.

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एनी एक तुनकमिजाज और सीधी बात करने वाली लड़की है. जो बॉलीवुड की उसी पुरानी महिला किरदार की तरह है जो पूरे आत्मविश्वास के साथ बोल सकती है, लेकिन इसके बावजूद कोई फैसला लेने का साहस नहीं है और खुद के बचाव के लिए किसी पुरुष का इंतजार करती है

एनी एक सक्षम युवती है, लेकिन बावजूद इसके उसे न तो सही तरीके से दिखाया गया है और न ही इसकी कोशिश की गई है. फिल्म में उसे विदेश जाने का सपना देखने वाली एक लड़की के रूप में दिखाया गया है और उसका सपना एक ही तरीके से पूरा हो सकता है शादी करके.

एक तरफ फिल्म आसानी से मुख्य जोड़ी की हाइट के अंतर को खत्म करते दिखाती है, लेकिन दूसरी तरफ खूबसूरती और पसंदीदा जैसी पुरानी सोच को साथ लेकर भी चलती है.  

इस दोहरेपन को संवेदनशील तरीके से खत्म नहीं कर पाना फिल्म की कमी को साफ-साफ दिखाता है.

आथिया ने अपनी भाषा और लहजे पर शानदार काम किया है, वहीं नवाज भी अपने किरदार में मजबूत दिखते हैं. पुष्पिंदर अपने परिवार और उसकी आकांक्षाओं की वजह से मुश्किलों में फंसा हुआ है, लेकिन जिस तरीके से वह इन परेशानियों को सुलझाता है, वह देखना काफी दिलचस्प है. विभा सिंह, नवनी परिहार और सपोर्टिंग एक्टर्स ने अपने दमदार अभिनय पर दर्शकों को बांधकर रखा है. एनी की आंटी के किरदार में करुणा पांडे शानदार दिखती हैं.

मोतीचूर चकनाचूर की समस्या यही है कि नयी तरह की चीजों को फिल्म में रखने के बावजूद अंत तक पहुंचने का तरीका पुराना ही हो जाता है. इसके अलावा, वैवाहिक जिंदगी में हिंसा या दहेज जैसी दकियानूसी सामाजिक प्रथाओं जैसी विषयों पर फिल्म एक अस्पष्ट और विरोधाभासी स्टैंड लेती है. फिल्म पर तरस आती है, क्योंकि इसमें कुछ अच्छे एंटरटेनिंग पल हैं, जिसे सही तरीके से नहीं दिखाया गया है. अगर ऐसा होता तो यह दमदार हो सकती थी. इन सब कमियों के बावजूद, नवाजुद्दीन जो हमेशा की तरह अपने अनोखे अंदाज में हैं और आथिया जिसने खुद को सुधारा है, दोनों के लिए यह फिल्म देखनी चाहिए.

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