advertisement
सच कहूं तो, मैं इस रिव्यू के पहले पैराग्राफ के लिए कुछ अच्छी और ध्यान खींचने वाली लाइन लिखने की कोशिश की थी. लेकिन मैं इसमें पूरी तरह फेल हो गई. लॉकडाउन पहले से ही काफी कठिन बीत रहा है और उसके बाद 'मिसेज सीरियल किलर' देखना, आपको और ज्यादा बोरियत महसूस करवा सकता है.
इसलिए प्वाइंट पर आते हैं. मैं आपको ये बताकर इतनी बेवकूफ नहीं बनूंगी कि किलर कौन है (हालांकि इसमें कोई सरप्राइज नहीं रखा है) लेकिन मैं आपको इतना बता सकती हूं कि मिसेज सीरियल किलर एक बहुत बड़ी मूड किलर और लॉजिक किलर जरूर है और दुख की बात है कि टाइम किलर भी नहीं है.
नेटफ्लिक्स पर आई इस नई फिल्म को देखने के दौरान आपका सबसे अच्छा दोस्त 10 सेकेंड आगे बढ़ाने वाला बटन होने वाला है. इस तब तक दबाते रहें जब तक कि आपको स्क्रीन पर मनोज वाजपेयी न दिख जाएं. अगर कोई आपके सिर पर बंदूक रखकर ये फिल्म देखने को मजबूर करता है तो आप बाकी कलाकारों को हटाकर बाजपेयी को देख सकते हैं, जैसे भूसे से अनाज को अलग किया जाता है.
उनका कैरेक्टर ही बेढ़ंगा है, ठीक तरीके से यह बताने की कोशिश भी नहीं की गई है कि वे इस फिल्म में इस तरह से हैं, तो क्यों हैं. बाजपेयी फिल्म में डॉ मृत्युंजॉय मुखर्जी का रोल अदा कर रहे हैं जो कि पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. उन पर अविवाहित गर्भवती लड़कियों की हत्या का आरोप लगता है. उनकी पत्नी सोना (जैकलीन फर्नांडीस) मातम में रहती है और अपने पति को बचाने की हरसंभव कोशिश में लगी हुई है. एक पुलिस इंस्पेक्टर हैं, इमरान शाहिद यानी मोहित रैना, जिसका इस कपल के साथ कोई पुराना और अनसुलझा हुआ दुश्मनी मालूम होता है.
फिल्म जब शुरू होती है तो मानसिक रूप से परेशान जैकलीन खुद में बड़बड़ाती हुई दिखती है- "हमारी कहानी खत्म होने वाली है". वहीं पास के बिस्तर पर बंधी एक जवान लड़की जोर से चिल्लाती है, "तुम किससे बात कर रही हो सनकी". वहीं जैकलीन हाथ में एक चाकू लिए उसे धमकाती है- "टॉर्चर तूने देखा ही कहां है... वो तो तुम अब देखोगे". यह ठीक ऐसा ही लगता है कि जैसे वो हमसे सीधे तौर पर कह रही हो और फिर यह टॉर्चर शुरू होता है जो 2 घंटे से थोड़ा कम देर तक चलता है!
मृत्युंजॉय जो अस्पताल चलाता है, उसमें उसकी पत्नी का बड़ा हस्तक्षेप है और यहां तक कि उसे सोना मैटरनिटी होम कहा जाता है, लेकिन हम वहां कभी कोई स्टाफ या अटेंडेंट नहीं देखते हैं. सब कुछ एक सेटअप के जैसा लगता है, जैसे एक आधा-अधूरा रिहर्सल किया जा रहा हो.
सोना की सुंदर तरीके से तैयार की गई लाइनर और हेयरस्टाइल में हमारी दिलचस्पी वैसे भी सबसे कम है. यहां तक कि अंतिम सीन में, जो बंधक अपने आपको किलर से छूटने का प्रयास करने वक्त एक्टिंग करते हैं वो काफी ढुलमुल लगता है. यह ठीक वैसा लगता है कि वे क्रू टीम में से किसी के आने का इंतजार कर रहे हों और उनसे पूछना हो कि अब क्या करना चाहिए. इस फिल्म के कहीं बीच में, हताश जैकलीन फर्नांडीस गेटकीपर को कहती है जो उसे अंदर जाने से रोकता है, "ये जिंदगी और मौत का सवाल है". यहां पर मैं फिल्म को रोक देती हूं. सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला यह "फिल्मी" डायलॉग, अच्छा सीन डिजर्व करता था.
इसके अलावा, मैं जैकलीन फर्नांडीस की एक्टिंग की अच्छाई या बुराई पर ध्यान नहीं देना चाहती हूं, जो कि बाजपेयी जैसे कलाकार के सामने फ्रेम होकर और अधिक एक्सपोज हो गया है.
लेकिन अगर उसे सिर्फ अच्छी दिखने को ही कहा गया हो तो क्या कर सकते हैं? मोहित रैना ने ठीक ठाक काम किया है. आमिर खान की भतीजी जयान मैरी खान ने फिल्म में डेब्यू किया है. वो कुछ फाइटिंग सीन में भी दिखती है जिसे काफी आत्मविश्वास से हैंडल किया है. दर्शन जरीवाला को लॉयर फ्रेंड के रूप में रोल मिला है, जो कि अधूरा कैरेक्टर लगता है. इन सबके बावजूद फिल्म रोचकपूर्ण तरीके से खत्म हो सकती थी! क्या इसके सीक्वल पर भी प्लान हो रहा है? हम चिंतित हैं क्योंकि फिल्म का अंतिम शॉट मनोज बाजपेयी का है. वे एक अच्छी फिल्म के हकदार हैं. इसलिए हम भी हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)