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जैसे ही फिल्म शुरू होती है एक बार फिर डिस्क्लेमर हमारे सामने आता है कि 'पद्मावत' एक काल्पनिक फिल्म है.
ये फिल्म मलिक मोहम्मद जायसी की कविता 'पद्मावत' पर आधारित है. डिस्क्लेमर में बताया गया है कि किसी व्यक्ति या समुदाय को आहत या उनकी छवि खराब करने का कोई इरादा नहीं है. साथ ही स्पष्ट किया है कि फिल्म 'सती' प्रथा को बढ़ावा नहीं देती है.
इसके बाद हम सीधे पहुंचते हैं 13वीं सदी के आफगानिस्तान में जहां बर्बर शासक ''हिंद'' पर चढ़ाई का प्लान बना रहे होते हैं. भारत पहले ''हिंद'' कहलाता था.
इसके बाद आप तुरंत एक खूबसूरत से दृश्य में पहुंच जाते हैं, जहां वीरांगना राजकुमारी पद्मावती राजा रतन सिंह से मिलती हैं और दोनों के बीच शब्दों के तीर चलते हैं.
राजा शादीशुदा होता है, लेकिन फिर भी वो पद्मावती की खूबसूरती पर फिदा हो जाता है और तुरंत शादी करने के लिए अपनी इच्छा जाहिर कर देता है. इसके बाद आता है कि गाना 'घूमर' जिसके पीछे भी काफी बवाल हुआ था. यहां दिखता है ग्राफिक्स का कमाल, जिसकी मदद से दीपिका की खुली कमर को पूरे गाने में ढक दिया गया है.
अब एक ही दिक्कत रह गई है कि 'पद्मावत' अब सिर्फ एक फिल्म रह गई है.
एक रिलीज रोकने के लिए इतनी लंबी लड़ाई हो गई. करणी सेना और राजपूताना परिवार के लोगों ने हथियार उठा लिए, क्योंकि उनको लग रहा था राजपूतों की छवि खराब की जा रही है. जबकि उन्होंने फिल्म देखी भी नहीं थी. केवल एक 'i' हटाने से उनको लगता है कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के लिए एक जीत है.
क्या टीम के मन में बढ़ते शोरशराबे को देख ये खयाल आया कि राजपूतों की बहादुरी का महिमामंडन किया जाए? जबकि फिल्म में एक बार नहीं बल्कि कई बार ये बहादुरी बिखरती दिखेगी. क्या खिलजी हमेशा इतना बर्बर था, जितना भयानक उसे दिखाया गया?
इन सब का जवाब किसी को कभी नहीं मिलेगा. लेकिन 163 मिनट लंबी इस फिल्म को जज करें तो कह सकते हैं की संजय लीला भंसाली ने अपनी नजरों से कविता को स्क्रीन पर बड़े ही शानदार तरीके से पेश किया है.
इस फिल्म में आप देख सकते हैं कि अच्छाई और बुराई के बीच फर्क दिखाया है, लेकिन धर्म को किसी प्रकार से बीच में नहीं लाया गया है. खिलजी को 'मर्यादा पुरुषोत्तम' रतन सिंह के सामने 'यमराज' और 'रावण' जैसा दिखाया गया है.
संजय लीला भंसाली में कुछ तो अलग बात है. फिल्म की भव्यता, आलीशान सेट और गहने- आभूषण ये सब आपको 'पद्मावत' 3D में देखने को मजबूर करती है.
इतनी जादूगरी और भव्यता तो दिखाई गई है, लेकिन कहानी कहीं न कहीं लड़खड़ाती नजर आती है. रतन सिंह बहुत बेहतरीन हैं, पद्मावती भी बहादुर हैं और खिलजी को सिर्फ एक जानवर दिखाया गया है.
सम्मोहित करने वाली सुंदरता और एक्टर्स के अपने काम के लिए प्रतिबद्धता के बावजूद ये अच्छाई और बुराई की लड़ाई थोड़ी ऊबाऊ हो जाती है.
यहां खिलजी के दास मलिक कफूर बने जिम सरभ की भी तारीफ करनी होगी. वहीं, दूसरी तरफ रतन सिंह की पहली पत्नी बनी अनुप्रिया गोयंका और खिलजी की पत्नी अदिती राव हैदरी को वो एक्सपोजर नहीं दिया गया है.
एक तरफ पद्मावती की सुंदरता सम्मोहित कर लेती है, लेकिन कहानी उतनी असाधारण नहीं हो पाई. हालांकि करणी सेना के मुंह पर अब ताला लग गया है.
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