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फिल्म ‘पानीपत’ को हम आशुतोष गोवारिकर का इतिहास कह सकते हैं. एक ऐसी कहानी जिसे पचाना दर्शकों के लिए मुश्किल होगा. फिल्म की शुरुआत होती है पुणे के शनिवारवाडा से, मराठा साम्राज्य की राजधानी जो पानीपत तक पहुंची. जहां मराठाओं और अफगानिस्तान के सुल्तान अहमद शाह अब्दाली के बीच युद्ध लड़ा गया था. 173 मिनट की फिल्म, लेखकों की उलझी हुई कहानी, गोवारिकर की ये फिल्म युद्ध की तरह लंबी नजर आती है.
मराठाओं के बढ़ते रुतबे को देख अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली (संजय दत्त) को मुगल बुलाते हैं. वहीं दूसरी तरफ नाना साहेब पेशवा (मोनिष बहल) अपने भरोसेमंद सदाशिवराव भाऊ (अर्जुन कपूर) को अपने बेटे और सेना के साथ उत्तर की ओर आगे बढ़ने का आदेश देते हैं.
जो कि इतिहास में पानीपत की तीसरी लड़ाई के नाम से दर्ज है. लेकिन मराठा शासकों का गौरव और हिंदुस्तान का शौर्य बताने में गोवारिकर का प्यार थोड़ा फीका पड़ गया और फिल्म बोझिल हो गई. फिल्म में "राष्ट्र राज्य" का कांसेप्ट बहुत देर में सामने आया.
अर्जुन कपूर फिल्म में सदाशिवराव भाऊ के किरदार में नजर आए. युद्ध और शांति दोनों सिचुएशन में उनके रिएक्शन लगभग एक जैसे ही थे. लेकिन सबसे ज्यादा अजीब वो तब लगते हैं, जब वो कृति कृति सेनन के इर्द गिर्द घुमते नजर आते हैं, फिल्म में कृति सेनन ने सदाशिवराव की पत्नी का किरदार निभाया है. फिल्म में दर्शक संजय लीला भंसाली के लार्जर देन लाइफ सेट को हर फ्रेम में और म्यूजिक को मिस जरूर करेंगे.
बैकग्राउंड स्कोर और खराब सीजीआई शायद ही आपको मराठा समाज और पानीपत के मिशन में डूबे सदाशिवराव और पार्वती की केमिस्ट्री के साथ कनेक्ट कर पाएं.
इतिहास की फिल्मों में महारत हासिल करने वाले गोवारिकर की इस फिल्म पानीपत में जबरदस्ती के इमोशनल सीन और स्क्रीनप्ले को 3 घंटे तक इतना खींचा गया है कि फिल्म बोरिंग हो जाती है.
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