Plan A Plan B Film Review: अधूरा रह कर भी पूरा है 'प्लान ए प्लान बी'

Plan A Plan B Movie Review: तलाक को लेकर समाज में नई सोच विकसित करने में यह फिल्म कितनी कामयाब होगी?

हिमांशु जोशी
मूवी रिव्यू
Published:
<div class="paragraphs"><p>Plan A Plan B Film Review: अधूरा रह कर भी पूरा है 'प्लान ए प्लान बी'</p></div>
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Plan A Plan B Film Review: अधूरा रह कर भी पूरा है 'प्लान ए प्लान बी'

(फोटो: स्क्रीनशॉट)

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OTT प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स (Netflix) पर आई फिल्म 'प्लान ए प्लान बी' (Plan A Plan B) में महानगरों की चमक-धमक है. इस फिल्म में उच्च मध्यम वर्ग की कहानी है, जहां महिलाएं फैंसी कपड़े पहनती हैं, पार्टी करती हैं. बॉलीवुड के दर्शकों में हर तरह के दर्शक शामिल होते हैं, वह फिल्मों में दिखाए गए कपड़े, भाषा और संवादों से प्रभावित होते हैं. इस फिल्म के पात्रों द्वारा अंग्रेजी संवाद जम कर बोले गए हैं और पात्रों की जीवन शैली से भी आम बॉलीवुड दर्शक जुड़ नहीं पाते, यही कारण है कि यह फिल्म दर्शकों द्वारा ज्यादा पसंद नहीं की जाएगी. इन सब के बावजूद यह बात जरूर है कि तलाक को लेकर समाज में नई सोच विकसित करने में यह फिल्म कामयाब होती है.

आज नहीं तो कल जरूर कमाएंगे शशांक घोष

'प्लान ए प्लान बी' के निर्देशक शशांक घोष (Shashanka Ghosh) बॉलीवुड में फिल्म 'वीरे दी वेडिंग' (Veere Di Wedding) के लिए जाने जाते हैं. इस रोमांटिक कॉमेडी फिल्म को बनाने के लिए उन्होंने स्क्रीन पर रोमांस वाला माहौल बड़ी ही खूबसूरती के साथ तैयार किया है. ऑफिस का सेटअप हो या फिल्म का क्लाइमेक्स, सब कुछ देखने में अच्छा लगा है. आंख में पट्टी बांध कर साथी की तलाश करने वाला दृश्य अनूठा है.

रिश्तों की बदलती परिभाषा और आजकल 'एप' से बनने वाले रिलेशनशिप को भी इस फिल्म के जरिए दिखाने की कोशिश की है.

यह जानते हुए भी कि हमारा समाज अभी भी सेक्स को लेकर खुलकर बात नहीं करता. निर्देशक ने इस फिल्म के जरिए इस मुद्दे को भी छूने की कोशिश की है. जहां एक मां अपनी बेटी से 'सेक्स कर ले किसी के साथ' कहते हुए दिखाती है.

शशांक घोष की फिल्में भले ही आज लोगों को अच्छी न लगें पर दस साल बाद यह पसंद की जाएंगी.

अंत तक बांधे रखती है फिल्म की कहानी

फिल्म की कहानी, संगीत और संवाद शुरुआत से ही दर्शकों का ध्यान खींचते हैं. फिल्म की कहानी एक मैचमेकर और तलाक कराने वाले एडवोकेट के रिश्ते पर केंद्रित है. लड़ते-झगड़ते कब यह दोनों एक दूसरे के करीब आ जाते हैं, इन्हें पता ही नहीं चलता. फिल्म की कहानी बहुत खूबसूरत है. जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है इसके मुख्य किरदारों के बारे में हमें कुछ न कुछ नया पता चलता रहता है. इस रोमांटिक कॉमेडी के अंत तक दर्शक अनुमान नहीं लग पाते हैं कि वह एक हैप्पी एंडिंग देखेंगे या कहानी का दुखद अंत होगा.

दमदार अभिनय के साथ बला की खूबसूरत लगी हैं तमन्ना भाटिया

फिल्म की मुख्य पात्र निराली है. निराली एक मैचमेकर है और अपने पुराने रिश्ते की वजह से किसी नए रिश्ते में नहीं पड़ना चाहती. निराली का किरदार दक्षिण भारतीय सिनेमा की सुपरस्टार तमन्ना भाटिया (Tamanna Bhatia) ने निभाया है. फिल्म में वह बला की खूबसूरत लगी हैं. अभिनय के मामले में भी वह रितेश देशमुख से एक कदम आगे हैं.

फिल्म के एक सीन में तमन्ना और रितेश

(फोटो: स्क्रीनशॉट)

शीशे के सामने खुद से बात करने वाले दृश्य में वह दमदार अभिनय करती नजर आती हैं.

रितेश (Riteish Deshmukh) ने बॉलीवुड में अपने कॉमिक किरदारों से अलग पहचान बनाई है. फिल्म में वह तलाक कराने वाले एडवोकेट बने हैं. लेकिन इस फिल्म में उनका कॉमेडियन वाला अवतार कम ही देखने को मिलता है.

वहीं पूनम ढिल्लों (Poonam Dhillon) ने एक आधुनिक मां के किरदार को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

नब्बे के दशक की याद दिलाता 'कह दो की'

फिल्म का संगीत रिश्तों की मिठास और कड़वाहट दोनों ही दर्शकों के सामने लाने में कामयाब रहा है. इसके गाने काफी लंबे समय तक लोगों की यादों में बसे रहने का दम रखते हैं. 'टल्ली' गाना पार्टी एंथम बन सकता है.

सौरभ दास का गाया 'दिल हो गया जोगिया' सुनने में अच्छा लगता है.

'कह दो की' गाना फिल्म के अंत में है और यह दिखाता है कि कोई गाना भी किसी फिल्म के क्लाइमेक्स में निर्णायक साबित हो सकता है. इसकी कोरिगोग्राफी को बड़ी ही खूबसूरती से अंजाम दिया गया है. 'कह दो की' सुनकर आपको नब्बे के दशक के गानों की याद भी आने लगती है.

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काफी सोच विचार कर लिखे हुए संवाद

'प्लान ए प्लान बी' के संवाद बड़े प्लान बना कर लिखे गए हैं. इनमें तलाक से जुड़े संवाद बड़े प्रभावी हैं. 'न शादी गलत है न डिवोर्स, गलत शादी में रहना गलत है' इसका उदाहरण है.

कौस्तुभ के ऑफिस में काम करने वाली सेरेना का निराली से बोला हुआ संवाद- 'डिवोर्स के बाद लगा कि इट्स ऑल ओवर. फिर से प्यार करना मुश्किल होगा, मारता था वो'. उन महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता हुआ लगता है जो सामाजिक तिरस्कार के डर की वजह से मानसिक रूप से प्रताड़ित होने के बावजूद तलाक नहीं लेती हैं.

कसी पटकथा, सुंदर दृश्य और कॉस्ट्यूम डिजाइन

फिल्म की पटकथा पर अच्छा काम किया गया है. फ्लैशबैक में जाकर घटनाओं को याद करते हुए दिखाने वाला प्रयोग प्रभावी है. मुंबई में ढलती हुई शाम का सीन दमदार सिनेमेटोग्राफी की गवाही देते हैं.

कलाकारों के मेकअप और कॉस्ट्यूम पर भी अच्छा काम हुआ है. तमन्ना भाटिया की वेस्टर्न ड्रेस हो या रितेश के रंगबिरंगे कपड़े, दोनों ही फिल्म की कहानी के हिसाब से फिट बैठते हैं.

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