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डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म सम्राट पृथ्वीराज आज रिलीज हो गई. यह फिल्म हमें योद्धा राजा पृथ्वीराज चौहान का लेखा-जोखा दिखाती है. फिल्म चांद बरदाई (पृथ्वीराज के दरबारी कवि) द्वारा रचित महाकाव्य कविता पर आधारित है. इतिहासकारों के अनुसार, इस फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों और काल्पनिक किंवदंतियों का मिश्रण है और इसे ऐतिहासिक रूप से विश्वसनीय नहीं माना जाता है.
चूंकि फिल्म इस तरह के कथागीत पर आधारित है, इसलिए यह बिल्कुल स्पष्ट है कि फिल्म को बनाने के लिए रचनात्मक स्वतंत्रता यानी परमिशन ली गई है. हर फिल्म की तरह यह फिल्म भी एक डिस्क्लेमर के साथ शुरू होती है, जो कहती है कि यह किसी की भावनाओं को आहत करने का इरादा नहीं रखती है. और किसी जानवर को दुख नहीं पहुंंचाया गया है.
ये फिल्म सम्राट पृथ्वीराज की कहानी को बड़े अच्छे से दिखाती है. उनके शौर्य को उनके पराक्रम को काफी दमदार तरीके से दिखाती है. कैसे सम्राट धर्म के लिए जिए. कैसे अपने लोगों के लिए उन्होंने अपनी जान तक की परवाह नहीं की. कैसे वो गौरी जैसे दुश्मन को भी पकड़कर छोड़ देते थे
इतिहासकारों के अनुसार, वास्तविक सम्राट 25- 26 वर्ष से अधिक आयु तक जीवित नहीं रहे थे, लेकिन अक्षय कुमार को इस युवा राजा के रूप में लेना ही फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है. शुद्ध हिंदी बोलना उनके लिए चुनौती रही है.
चूकिं कोई भी सम्राट को पूरी तरह से रोक नहीं सकता, लेकिन जो ऐसा कर सकते हैं वे केवल विश्वासघात और छल से करते हैं. युद्ध में पृथ्वीराज के हाथों शिकस्त हासिल कर चुके गजनी के सुल्तान मोहम्मद गोरी (मानव विज) को पृथ्वीराज को धोखे से बंदी बनाकर उसे सौंप देने की चाल चलता है.
मानव विज को देखकर एक जोरदार विलेन की कमी साफ तौर पर महसूस होती है, वह क्रूर होने की कोशिश कर रहा है और फिर भी इतना नहीं है कि अक्षय कुमार के पृथ्वीराज के किरदार पर अपनी छाप छोड़ सके.
अगर फिल्म के सेट्स और इसमें इस्तेमाल किए गए विजुअल इफेक्ट्स यश राज फिल्म्स की तकनीकी दक्षता की मिसाल हैं तो ये फिल्म इस कंपनी की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाने वाली फिल्म है. फिल्म में एक स्वयंवर वाला सीन है जहां आपको लगेगा कि यह और बेहतर हो सकता है लेकिन वहां पर डायलॉग की कमी देखने को मिली इसके साथ ही उस सीन को एक टीवी सीरियल की तरह एटिड किया गया है.
फिल्म में राजकुमारी संयोगिता का किरदार मानुषी छिल्लर द्वारा निभाया गया है, जिसे पृथ्वीराज से मिलने से पहले उनकी वीरता से प्यार हो जाता है. सुंदरता के मामले में मानुषी बेहद ठीक हैं लेकिन फिल्म में उनके द्वारा बोले गए डायलॉग उनके किरदार से न्याय नहीं करते हैं.
सोनू सूद को ऐसे किरदारों में देखकर उनके प्रशंसकों को अच्छा नहीं लगेगा. आशुतोष राणा अपनी तरफ से पूरी मेहनत करते हैं लेकिन उनसे हिंदी सिनेमा के दर्शकों को उम्मीदें और ज्यादा रहती हैं. संजय दत्त ने अपना काम बखूबी निभाया है. युद्ध के दृश्यों को इतनी मेहनत से कोरियोग्राफ किया गया है और कंप्यूटर जनरेटर सीन से आपको लगेगा भी नहीं कि ये सच में असली जानवर हैं. कुल मिलाकर यह एक थकाऊ फिल्म.
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