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Satyaprem Ki Katha Review: फिल्म अहम मुद्दों पर बोल गई या हमारी उम्मीदें कम थीं?

Satyaprem Ki Katha Review: 'सत्यप्रेम की कथा' में कियारा आडवाणी और कार्तिक आर्यन हैं

प्रतीक्षा मिश्रा
मूवी रिव्यू
Published:
<div class="paragraphs"><p>सत्तू और कथा कप्पल गोल्स</p></div>
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सत्तू और कथा कप्पल गोल्स

फोटो- Satyaprem ki katha

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फिल्म सत्यप्रेम की कथा ( Satya Prem ki Katha) को वास्तविकता में देखे तो आपको एहसास होगा कि फिल्म काफी बेहतर होती अगर इसमें 'कथा का सत्यप्रेम' वाला दृष्टिकोण शामिल होता. फिल्म में सत्यप्रेम का किरदार कार्तिक आर्यन (Kartik Aryan) निभा रहे हैं. सत्यप्रेम एक कुंवारा युवक है जिसकी प्यार के मामले में किस्मत बेहद खराब रही है. लेकिन फिर, 'कथा' जिसका किरदार कियारा आडवाणी (Kiara Advani) ने निभाया है वो उसके जीवन में प्रवेश करती है.

इस तथ्य के बावजूद कि कथा किसी के साथ डेटिंग कर रही है, वह इस बात पर जोर देता है कि उनका एक साथ रहना ही तय है क्योंकि उनके नाम हैशटैग में एक साथ फिट बैठते हैं. फिल्म अपने प्रारंभिक आधार से ऊपर उठती है लेकिन मुझे आश्चर्य है कि क्या मैंने इस फिल्म से अपनी उम्मीदें बहुत कम रखी थी. वे यौन उत्पीड़न, आपसी सहमति और सर्वाइवर्स पर विश्वास करने की आवश्यकता जैसे विषयों पर बात करने के लिए बॉलीवुड फॉर्मूले का उपयोग करते हैं. यह सब अच्छा है और सुरक्षा की झूठी भावना को लगभग शांत कर देता है और लोगों को अवगत कराता है, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है थीम चेंज हो जाता है.

सत्तू अहमदाबाद के एक मध्यमवर्गीय परिवार में पला-बढ़ा है. वह और उसके पिता घर के कामकाज में हाथ बंटाते हैं, ज्यादातर काम वह खुद करते हैं और उसकी मां दिवाली (सुप्रिया पाठक शाह) गरबा सिखाती हैं और बहन सेजल (शिखा तल्सानिया) जुंबा सिखाती है. कुछ ऐसा जो श्रम विभाजन के बारे में एक टिप्पणी हो सकता था, उसे फिल्म में हंसाने के लिए उपयोग किया गया है और दिखाया गया है कि घर की महिलाओं ने सत्तू की जिंदगी मुश्किल कर दी है.

ट्रोल अक्सर महिलाओं को रसोईघर में वापस जाने के लिए कहते हैं, क्या वे इस बारे में बात करते हैं कि सत्तू जिस स्थिति में दिख रहा है वह दुर्भाग्य से दुनिया भर की महिलाओं के लिए सामान्य है? नहीं. क्या वे इस बात का पता लगाते हैं कि पितृसत्तात्मक सोच पुरुषों पर कमाने वाला बनने का दबाव डालती है जो श्रम के विषम विभाजन में महत्वपूर्ण योगदान देता है? बिल्कुल भी नहीं. जोय बेबी की The Great Indian Kitchen और नीरज घायवान की Juice इस विषय पर ऐसी अद्भुत फिल्म/शार्ट फिल्म हैं. मैं आपसे उन्हें देखने के लिए आग्रह करती हूं.

सत्तू और कथा की शादी की तस्वीर

फोटो- Instagram

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सत्तू की शादी हो जाने के बाद दिवाली और सेजल घर का काम करना शुरू कर देती हैं, इस बात से शर्मिंदा होकर कि उनका परिवार उस पैर्टियार्कल कंडीशन का पालन नहीं करता है जैसा कि अधिकांश लोग करते हैं. क्या इसका मतलब यह है कि उन्होंने परिवार के लिए कमाई बंद कर दी है? बिल्कुल नहीं.

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कथा का अपने प्रेमी के साथ रिश्ता खत्म होने के बाद, सत्तू का मानना ​​है कि यह उसके लिए अपने प्यार का इज़हार करने का सही मौका है, लेकिन जब वह उसके घर में घुसता है, तो उसे पता चलता है कि उसने आत्महत्या का प्रयास किया है. एक वास्तव में अच्छी तरह से लिखा गया मेल कैरेक्टर आपातकालीन देखभाल और आराम प्रदान करने का प्रयास करेगा और यदि पूछा जाए तो वास्तव में मदद करने का प्रयास करेगा.

लेकिन फिल्म को तो 'हीरो' चाहिए और सत्तू 'हीरो' बनने के अवसर के रूप में इस मौके को देखता है. स्वाभाविक रूप से, वह पुरुष रक्षक है जो नायिका की जान बचाता है.

जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, ऐसे कई क्षण आते हैं जहां आप यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या सत्तू वास्तव में एक अच्छा इंसान है या सिर्फ Nice Guy ™ कपड़ों में एक अनाड़ी व्यक्ति है. इन सबके बावजूद, समीर विदवान और लेखक करण श्रीकांत शर्मा कुछ चीजें समझ पाते हैं. ऐसी दुनिया में जहां वैवाहिक बलात्कार अभी भी बहस का विषय है, दोनों ने एक मजबूत रुख अपनाने की कोशिश की है और यह सराहनीय है, खासकर यह देखते हुए कि बॉलीवुड में सहमति को चित्रित करने का कोई अच्छा इतिहास नहीं रहा है. यहां तक ​​कि जिस तरह से फिल्म भारतीय परिवारों के भीतर संघर्ष को संभालती है वह उल्लेख के योग्य है.

दुनिया जो देखती है वो अक्सर बंद दीवारों के अंदर होने वाली हकीकत से परे होता है और यह कथा के अपने पिता के साथ इक्वेशन के माध्यम से बहुत अच्छी तरह से दिखाया गया है और कितनी जल्दी सत्तू का परिवार उसे कुछ समझाने का मौका दिए बिना उसके खिलाफ हो जाता है . सत्यप्रेम उर्फ ​​सत्तू के रूप में, कार्तिक आर्यन वही करते हैं जो वह सबसे अच्छा करते हैं; बैड-बॉय इमेज में सबका दिल जीतने की कोशिश. लेकिन क्या हमने ऐसा पहले नहीं देखा? मेरे लिए यहां उनके किरदार को शहजादा के किरदार से अलग करना मुश्किल होगा.

हालांकि, कियारा आडवाणी का प्रदर्शन ईमानदार और प्रभावी है. एक ऐसे चरित्र को चित्रित करना जो अपने पास्ट के ट्रॉमा से निपटने की कोशिश कर रही है, जबकि उसका जीवन लगातार नई चुनौतियां पेश कर रहा है, आसान नहीं है, लेकिन कियारा हर भावना को लगभग सहज रूप से पकड़ लेती हैं.

जब तकनीकी पहलुओं की बात आती है, तो सत्यप्रेम की कथा एक खूबसूरत फिल्म है; अयानंका बोस का कैमरावर्क रिफाइंड है और बॉलीवुड रोमांस की भावना को दर्शाता है. इस फिल्म को संगीतमय मानकर प्रचारित किया गया, इसका संगीत ज्यादातर जगहों पर फिट बैठता है. अधिकांश गाने आकर्षक और कुछ भावपूर्ण हैं, और इसका श्रेय मीत ब्रदर्स, तनिष्क बागची और पायल देव सहित लंबी संगीतकार सूची को जाता है. पसूरी का रीमेक एक अच्छा गाना होता अगर यह ऐसे ब्रह्मांड में मौजूद होता जहां ओरिजिनेलिटी नहीं है.

सत्यप्रेम की कथा का सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि यह हीरो की यात्रा की ज़ोरदार आवाज़ के नीचे अपना सभ्य संदेश खो देती है. अपने हीरो को "हीरो" बनाने में, यह भूल जाते है कि वास्तविक सरवाइवर कौन है. एक से अधिक बार, सत्यप्रेम ने दावा किया कि वह कथा की यात्रा में एक साइड-हीरो होंगे, लेकिन यह फिल्म में ही साकार नहीं होता है.

क्विंट स्टार- 2.5/5

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