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होशियारपुर को ये मंजूर नहीं था? एक लड़की को एक सेक्स क्लीनिक विरासत में मिलता है और उसकी जिंदगी बदल जाती है. सोसायटी के लोग उसे अजीब तरह की नजरों से घूरते हैं. रिश्तेदारों की नजर में उसका ये काम शर्मिंदा करने वाला था. उसकी मां और बहन उससे इसी बात पर हमेशा नाराज रहती थीं.
लेकिन वो खुद को मिली इतनी बड़ी जिम्मेदारी को कैसे संभाले, इस बात को लेकर हमेशा परेशान रहती थी.
फिल्म की शुरुआत होती है हकीम ताराचंद (कुलभूषण खरबंदा) के विज्ञापन से होती है, जिसमें वे सेक्स और सेक्स एजुकेशन को लेकर खुलकर बात करने की वकालत करते हुए नजर आते हैं. इस वजह से उन्हें अश्लीलता के आरोप में हिंदुस्तानी यूनानी अनुसंधान केंद्र से भगा दिया जाता है.
लेकिन फिर भी मामाजी अभी भी सफलतापूर्वक अपने नुस्खों से साथ अपना क्लिनिक चला रहे हैं. बीस साल बाद, उनकी भतीजी बेबी बेदी (सोनाक्षी सिन्हा) को मामाजी सेक्स क्लीनिक की विरासत सौंपते हैं. लेकिन इतने सालों बाद भी कुछ नहीं बदला है.
'खानदानी शफाखाना' की सबसे खास बात यह है कि सोनाक्षी सिन्हा इस फिल्म में बेहतरीन नजर आई हैं. फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा ने 'बेबी' के किरदार के साथ पूरी ईमानदारी की है. फिल्म के सब्जेक्ट को उन्होंने ने सरलता के साथ बखूबी निभाया. आप भी 'बेबी' के किरदार को पसंद किए बिना नहीं रह पाएंगे. 'बेबी' के सपने हैं, लेकिन वास्तविकता पर मजबूत पकड़ के साथ.
जिंदगी की भाग-दौड़ में अपनी प्रोफेशनल लाइफ और पर्सनल लाइफ के बीच तालमेल बिठाते हुए वो झूल रही है. 'बेबी' फार्मास्युटिकल कंपनी में काम करती है और अपनी लालची चाची से अपना घर बचाने की कोशिशों में उलझी रहती है.
फिल्म के हर सीन में सोनाक्षी अपने किरदार में फिट बैठती हैं. वरुण शर्मा ने इस फिल्म में सोनाक्षी के भाई का किरदार निभाया है, जिनकी फिल्म में कॉमिक टाइमिंग का जवाब नहीं है.
पर्दे पर अन्नू कपूर अपने किरदार निभाने में शायद ही फीके नजर आएं. इस फिल्म में भी उन्होंने वकील के किरदार में जान डाल दी. नादिरा बब्बर, कुलभूषण खरबंदा, राजेश शर्मा और राजीव गुप्ता सभी अपने रोल में शानदार हैं.
'बात तो करें' फिल्म का मैसेज बन जाता है, खास तौर पर तब, जब सोनाक्षी अपने सेक्स क्लिनिक के पेम्फलेट बांटना शुरू करती हैं और लोगों से सेक्स पर खुलकर बात करने की अपील करती हैं. सोनाक्षी लोगों से गुजारिश करती हैं कि वो सेक्स से जुड़ी बीमारी पर खुलकर बात करें और इससे जुड़ी बीमारियों को बाकी बीमारियों की तरह सहजता से ले.
डायरेक्टर शिल्पी दासगुप्ता और राइटर गौतम मेहरा ने एक ठोस मुद्दा उठाया है और उस पर ईमानदारी से शानदार काम किया है. मेहरा ने बहुत ही खूबसूरती से सोसायटी को एक मैसेज देने का काम किया है. फिल्म में कई ऐसे सीन हैं, जो सेक्स के प्रति हमारे समाज का चेहरा दिखाते हैं. कुल मिलाकर बात की जाए, तो सोनाक्षी सिन्हा फिल्म में जान डालने का काम करती हैं.
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