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नेटफ्लिक्स (Netflix) पर अनिल कपूर (Anil Kapoor) और हर्षवर्धन कपूर (Harshvardhan Kapoor) की फिल्म थार (Thar) रिलीज हो चुकी है. फिल्म राजस्थान के पृष्ठभूमि पर बनी है. राज सिंह चौधरी (Raj Singh Chaudhary) ने फिल्म की कहानी लिखी है साथ ही इसका निर्देशिन भी किया है. फिल्म के डायलॉग्स अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) ने लिखे हैं. फिल्म हमें साल 1985 में मुनाबो नाम के एक गांव में लेकर जाती है. जहां हत्या और लूट की वारदात होती है. इन मामलों की जांच इंस्पेक्टर सुरेखा सिंह (Anil Kapoor) और उनके मातहत भूरा के जिम्मे रहती है.
यह केस इंस्पेक्टर सुरेखा के करियर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वह अपने इतने साल के करियर का मतलब खोजने के लिए संघर्ष कर रहा है.
थार (Thar) की सबसे खास बात इसकी सिनेमैटोग्राफी है. DOP श्रेया देव दूबे का कैमरा शुष्क रेगिस्तानी जमीन पर टेक्सचर जोड़ते हुए आगे बढ़ता रहा है. यहां के लोगों की तरह यहां का परिदृष्य प्यासा है और राहत पाने के लिए बेताब है. गोपनीयता के धूल भरे कफन में कई असहज सत्य भी शामिल हैं.
जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ता है हम कहानी से जुड़ते जाते हैं. खासकर तब जब अनिल कपूर और सतीश कौशिक उस सहजता के साथ परफॉर्म करते हैं, जो सिर्फ उन जैसा अनुभवी अभिनेता ही कर सकते हैं. हालांकि, फिल्म की कहानी और पटकथा बिखरी और कमजोर है.
एक क्राइम थ्रिलर-रिवेंज ड्रामा के रूप में थार (Thar) ज्यादा कमाल करती नहीं दिखती है. फिल्म में हिंसा का इस्तेमाल दर्शकों को झटका देने के लिए किया गया है. शुरुआत में एक दो बार दर्शक सहम जाते हैं, लेकिन बाद में ये रिपिटेटिव लगती है.
बेहतरीन दृश्यों के बावजूद कहानी अपनी चमक खो देती है. फिल्म में महिलाओं की स्थिति और जाति की राजनीति को दिखाया गया है, लेकिन यह सिर्फ सतही है.
अगर एक्टिंग की बात करें तो अनिल कपूर अपने चेहरे की थकान और बुद्धि को उत्साह के साथ दूर करते हैं. हर्षवर्धन कपूर ने पूरी फिल्म में एक खोखले लुक के साथ भूमिका निभाई है. फिल्म में उनका कुछ खास एक्सप्रेशन देखने को नहीं मिलता है. फातिमा सना शेख, जितेंद्र जोशी, राहुल सिंह और मुक्ति मोहन ने अपने स्तर पर अच्छा काम किया है. लेकिन फिल्म की कहानी निराश करती है.
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