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द ताशकंद फाइल्स: इस राजनीतिक माहौल में, ये फिल्म पचती नहीं

इस समय के राजनीतिक माहौल में, ये फिल्म बिना किसी पार्टी का नाम लिए बताती है कि इस गलत खेल के लिए किसपर आरोप लगाना है

स्तुति घोष
मूवी रिव्यू
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(फोटो: ट्विटर)
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(फोटो: ट्विटर)

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'द ताशकंद फाइल्स' को विवेक अग्निहोत्री ने लिखा और डायरेक्ट किया है. ये फिल्म देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के पीछे के रहस्य को सुलझाने की कोशिश करती है. कई सालों से उनकी मौत को लेकर कई बातें और थ्योरी चल रही हैं.

क्या इसमें विदेशी ताकतों का हाथ था? ये हत्या थी या दिल के रुक जाने से हुई सामान्य मौत? ये सवाल और थ्योरी, इसके कई वर्जन और ‘वैकल्पिक सत्य’ इस कहानी में मिलेगा.

हमारी मुलाकात रागिनी फुल (श्वेता बासू प्रसाद) से होती है, एक यंग जर्नलिस्ट जो एक कहानी की तलाश में है. उसे कहीं से एक फोन आता है, जिसके बाद वो शास्त्री की मौत के पीछे का सच ढूंढ निकालती है- ये कुछ ‘गलत’ की ओर इशारा करता है.

‘ताशकंद फाइल्स’ एक डिस्क्लेमर के साथ शुरू होती हैं, जिसमें कहा गया है कि फिल्म लाल बहादुर शास्त्री की मौत से जुड़ी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है, जिसे कई सूत्रों ने रिकॉर्ड किया है, जैसे- संसद, नेशनल आर्काइव, विशेषज्ञों की किताबें, न्यूज रिपोर्ट, खुफिया रिपोर्ट, पर्सनल इंटरव्यू और एक्सपर्ट अनुज धर और शास्त्री के पोते संजय नाथ सिंह की देखरेख में विभिन्न आरटीआई से मिली जानकारी.

हालांकि, डायरेक्टर उन संदर्भों की किसी भी ऐतिहासिक प्रामाणिकता का दावा नहीं करते.

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एंगेज नहीं करती फिल्म

सिनेमैटिक नजरिए से भी देखें तो फिल्म ऑडियंस को उस तरह से एंगेज नहीं करती, जैसे कि पॉलिटिकल थ्रिलर फिल्में करती हैं.

मिथुन चक्रवर्ती ने फिल्म में एक विपक्षी नेता का रोल निभाया है, जिसका हर चीज को लेकर अपना नजरिया है. फिल्म में नसीरुद्दीन शाह भी हैं, जो डैमेज कंट्रोल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. इन लोगों की कमेटी में एक इतिहासकार है, एक सामाजिक कार्यकर्ता है, एक साइंटिस्ट है, एक पूर्व-इंटेलिजेंस चीफ और एक रिटायर्ड जज है, जो अलग-अलग षडयंत्रों के बारे में फालतू बातें कर रहे हैं.

फिल्म की ये बातें पचती नहीं

पंकज त्रिपाठी और राजेश शर्मा जैसे शानदार एक्टर्स को ऐसी फिल्म में देखकर दुख होता है. एक तरफ विनय पाठक रशियन फर कैप पहनकर प्रशासन से छिपते नजर आते हैं, तो दूसरी ओर रागिनी को 'सच' देने के लिए सड़कों पर आराम से घूमते दिखते हैं- ये बात पचती नहीं.

इस समय के राजनीतिक माहौल में, ये फिल्म बिना किसी नेता या पार्टी का नाम लिए बताती है कि इस 'गलत खेल' के लिए किसपर आरोप लगाना है.

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